Hiamchal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश की दम तोड़ रही पारंपरिक वास्तुकला को संजोने में जुटे मुंबई के रहने वाले स्वप्निल श्रीकांत भोले और नेहा राजे. राजधानी शिमला में प्रदर्शनी लगाकर लोगों को जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं. अपने सौंदर्य के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश ढेरों कलाओं और परंपराओं के खजाने से भरा पड़ा है. ऐसे ही खजाने में से एक है प्रदेश की पारंपरिक वास्तुकला. काठ-कूणी से बने यहां के पुराने मंदिर और घर किसी भी नजर खींच लेने में सक्षम हैं, लेकिन यह शैली धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है. इस सब के बीच दिलचस्प बात है कि प्रदेश के बाहर से आए कुछ वास्तुकार इन इमारतों की खूबसूरती से इतने प्रभावित हुए कि इन खूबसूरत इमारतों और इस कला को बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
पुरानी तकनीक को बचाने की कोशिश
मुंबई से ताल्लुक रखने वाली वास्तुकारों की यह टीम सराहन प्रोजेक्ट के अंदर प्रदेश में काठ-कूणी तकनीक से बने इन भवनों और भवन निर्माण की तकनीक को बचाने में जुटे हुए हैं. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करने वाले स्वप्निल श्रीकांत भोले बताते हैं कि जब शिमला आए, तो इस कला को देखकर बहुत प्रभावित हुए. स्वप्निल बताते हैं कि इस तरह की कला हिमाचल के अलावा सिर्फ उत्तराखंड की कुछ लगते हिस्सों में देखने को मिलती है. यह कला बेहद अलग और यूनिक है. ऐसे में इस कला को बचाने के लिए कुछ करना बेहद जरूरी है.
बेहद अलग है काठ-कूणी वास्तुकला
प्रोजेक्ट में काम कर रही नेहा राजे का कहना बताती हैं कि, काठ-कूणी वास्तुकला तकनीक बेहद यूनिक और भूकंप विरोधी है. नेहा राजे का कहना है की यह वास्तुकला तकनीक एक सेकुलर तकनीक है. बड़े मंदिरों से लेकर छोटे घरों तक इस तकनीक से हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में बनाए गए हैं. नेहा राजे ने प्रदेश में इस तकनीक से बनी इमारतों की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त की और इसे बचाने की दिशा में और कदम बढ़ाने की बात कही है. इसी उद्देश्य से उन्होंने शिमला में प्रदर्शनी लगाने की बात कही.
लोगों ने की पहल की सराहना
वहीं, प्रदर्शनी देखने पहुंचे लोगों ने भी मुंबई से आए इन वास्तुकारों की पहल को खूब सराहा है. इसी दौरान प्रदर्शनी देखने पहुंचे हिमाचल काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी और भारत सरकार में सेक्रेटरी के पद पर रहे अशोक ठाकुर ने इस पहल की सराहना की है. अशोक ठाकुर ने कहा कि मुंबई से आए इन वास्तुकार ने हिमाचल के लोगों की आंखें खोलने का काम किया है. खुद कला और संस्कृति विभाग में रहे अशोक ठाकुर बताते हैं कि काठ-कूणी के बने यह भवन पूर्वजों की देन है, लेकिन हम इन्हें संजोकर रखने में पीछे रह गए हैं. उन्होंने कहा कि वे ख़ुद इस कला की अहमियत को समझते हैं. आज जरूरत है कि लोग जागरूक हो और सरकार लोगों के साथ मिलकर इस कला को बचाने के लिए कोशिश करें.