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Opposition Parties Meeting: शिमला में होने वाली विपक्षी एकता की बैठक में क्या होगा खास, क्या यहीं तय होगा संयोजक का नाम?

हिमाचल की राजधानी शिमला में विपक्षी एकता की बैठक होने जा रही है. इस बैठक में विपक्षी दल साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए ब्लूप्रिंट बनाने के साथ विपक्षी एकता का संयोजक नियुक्त कर सकते हैं.

Shimla News: आने वाले कुछ दिनों तक अब हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला देशभर की राजनीति के केंद्र में रहने वाली है. शुक्रवार को बिहार की राजधानी पटना में हुई विपक्षी एकता की पहली बैठक में विपक्ष ने एक साथ चुनाव लड़ने पर चर्चा की. अब विपक्षी एकता को मजबूती देने के लिए दूसरी बैठक हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में होने जा रही है.

इस बैठक में विपक्षी नेता साल 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करेंगे. जानकारों की मानें, तो इस बैठक में ही विपक्षी एकता का संयोजक (Opposition Unity Convenor) भी तय किया जा सकता है. इसकी वजह यह है कि संयोजक बनाए जाने पर नेता अधिकार के साथ विपक्षी नेताओं के बीच समन्वय स्थापित करने का काम कर सकेगा.

पहाड़ करेंगे विपक्ष का बेड़ा पार?

बिहार की राजधानी पटना में हुई बैठक का सारा बीड़ा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपने कंधों पर लिया हुआ था. अब यह जिम्मेदारी कांग्रेस की है. बैठक हिमाचल कांग्रेस शासित हिमाचल प्रदेश में हो रही है. ऐसे में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) और कांग्रेस नेता पर रहे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर रहेगी. हिमाचल प्रदेश में सात महीने पहले ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार का गठन हुआ है. ऐसे में अब कांग्रेस हिमाचल में बने सकारात्मक माहौल का सियासी इस्तेमाल करेगी.

शिमला में दूसरी बैठक प्रस्तावित

विपक्षी एकता में शामिल कई नेता कांग्रेस शासित प्रदेश में बैठक किए जाने का विरोध कर रहे थे. बावजूद इसके कांग्रेस ने अपना राष्ट्रीय प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए बैठक को शिमला में आयोजित करने का फैसला लिया है. पटना में हुई विपक्षी एकता की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में दूसरी बैठक शिमला में की जाने की जानकारी दी गई. फिलहाल इसके लिए 10 जुलाई से 12 जुलाई की तारीख रखी गई है, जिसे अभी फाइनल किया जाना बाकी है.

कांग्रेस का लकी चार्म है शिमला!

पहाड़ों की रानी और हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का कांग्रेस के लिए अत्याधिक महत्व है. साल 2003 में शिमला में हुई बैठक के बाद साल 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली और यूपीए सरकार के गठन के साथ मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साल 2004 से साल 2014 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे. इसके अलावा हाल ही में सात महीने पहले हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को मिली जीत का प्रभावी माहौल कर्नाटक तक पहुंचा. हिमाचल की जीत का फायदा सीधे तौर पर करीब दो हजार 100 किलोमीटर दूर कर्नाटक में भी देखने को मिला. अब आने वाले वक्त में जिन राज्यों में चुनाव है, वहां भी कांग्रेस मजबूत स्थिति में नजर आ रही है. अगर कांग्रेस को इन राज्यों में जीत मिलती है, तो इससे कांग्रेस के कॉन्फिडेंस में और ज्यादा बढ़ोतरी होगी.

क्या त्याग करने के लिए तैयार है कांग्रेस?

विपक्षी एकता के नाम पर साथ आए सभी दलों में कांग्रेसी सबसे बड़ी पार्टी है. कांग्रेस का देश के हर राज्य में फूट प्रिंट है. ऐसे में जब त्याग करने की बात सामने आएगी, तब सबसे ज्यादा त्याग किसे करना होगा. अब सवाल यह है कि कांग्रेस आखिर कितना त्याग करने के लिए तैयार है? हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि बहुमत की स्थिति में राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे. हालांकि यह बात अलग है कि फिलहाल राहुल गांधी के चुनाव लड़ने तक पर संशय है. क्योंकि उनकी लोकसभा सदस्यता से जुड़ा मामला फिलहाल कोर्ट में लंबित है. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी शिमला में होने वाली विपक्षी एकता की बैठक का स्वागत किया है.

कांग्रेस के सामने यह बड़े सवाल

1. विपक्षी एकता बनाने के लिए कांग्रेस किस हद तक समझौता करने के लिए तैयार है?

2. क्या सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना लक्ष्य है? या कांग्रेस अपना प्रधानमंत्री देखना चाहती है.

3. राहुल गांधी को कोर्ट से राहत न मिली, तो कांग्रेस का प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन?

4. एक वक्त में उत्तर प्रदेश गांधी नेहरू परिवार का गढ़ रहा. गांधी परिवार के बड़े नेताओं ने उत्तर प्रदेश की ही अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ा. क्या अब कांग्रेस साल 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ समझौता करने के लिए तैयार है?

बैठक में विपक्षी दलों को चुनाव का कन्वीनर 

विपक्षी एकता को लेकर जानकारों का कहना है कि विपक्षी दलों को मिलकर अब अपना संयोजक यानी कन्वीनर चुनना ही होगा. पहली बैठक का आयोजन तो नीतीश कुमार की सियासी कसरत के चलते हो गया. अब विपक्षी दलों को एक ऐसे संयोजक की जरूरत है, जो अधिकार के साथ सभी दलों के प्रमुख नेताओं के साथ संपर्क कर सके और उन्हें बैठक के लिए तैयार करें.

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