प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) आज हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) को बिलासपुर (Bilaspur) एम्स (AIIMS) समेत 36 सौ करोड़ से अधिक की विकास योजनाओं की सौगात देंगे. इसमें नालागढ़ में मेडिकल डिवाइस पार्क और सरकारी हाइड्रो इंजीनियरिंग कॉलेज का उद्घाटन शामिल है. वो एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री कुल्लू दशहरा समारोह (Kullu Dussehra Festival) में भी शामिल होंगे. वो दशहरा महोत्सव में भगवान रघुनाथ जी का दर्शन करने के बाद उनका रथ भी खींचेंगे.प्रधानमंत्री मोदी कुल्लू के दशहरा में शामिल होने वाले पहले प्रधानमंत्री होंगे.इस बार कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव 5 से 11 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. आइए जानते हैं कि सैकड़ों साल से मनाए जा रहे इस दशहरा उत्सव का इतिहास क्या है.
कितना पुराना है कुल्लू का दशहरा
कुल्लू का दशहरा पिछले 372 साल से मनाया जा रहा है. इसकी अध्यक्षता भगवान रघुनाथ करते हैं. दशहरा उत्सव समिति ने हर साल इसके लिए देवी देवताओं को निमंत्रण पत्र भेजती है. इस उत्सव के लिए 332 देवी-देवता पंजीकृत हैं.कुल्लू के साथ खराहल,ऊझी घाटी,बंजार,सैंज,रूपी वैली के सैकड़ों देवी-देवता दशहरा की झांकियां यहां शोभा बढ़ाने के लिए पहुंचेंगी.
कुल्लू दशहरा महोत्सव पहली बार 1660 में आयोजित किया गया था. उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी. वहां के राजा जगत सिंह ने 1637 से 1662 तक शासन किया. कहा जाता है कि उनके शासनकाल में ही मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी निवासी गरीब ब्राह्मण दुर्गादत्त ने राजा की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया था. इसका दोष राजा जगत सिंह पर लगा. इससे उन्हें एक असाध्य रोग हो गया. राजा को बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वो अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाएं. मूर्तियों को कुल्लू के मंदिर में स्थापित कर अपना राज-पाट भगवान रघुनाथ को सौंप दें. इससे उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी.
अयोध्या से लाई गई हैं राम-सीता और हनुमान जी की मूर्तियां
राजा ने भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति लाने के लिए बाबा किशनदास के शिष्य दामोदर दास को अयोध्या भेजा था.वो मूर्तियों को कुल्लू लेकर आए थे. रघुनाथ जी की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया. उनके आगमन में राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. इसके बाद राजा ने राजपाट त्याग कर रघुनाथ जी के मुख्य सेवक बन गए. यह परंपरा आज भी चल रही है. इसमें राज परिवार का सदस्य रघुनाथ जी का छड़ीबरदार होता है.
कुल्लू में दशहरा उत्सव का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है. लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ जी की सवारी को मोटे-मोटे रस्सों से खींचकर दशहरे की शुरआत होती है.राज परिवार के सदस्य शाही वेशभूषा में छड़ी लेकर वहां मौजूद होते हैं. इसके आसपास कुल्लू के देवी-देवता विराजमान रहते हैं. कु्ल्लू के दशहरे में रावण,मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाते. भगवान रघुनाथ मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे बनाई लकड़ी की सांकेतिक लंका जलाते हैं.
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