Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई और हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में करीब 1 हजार 712 किलोमीटर की दूरी है. बावजूद इसके महाराष्ट्र की सियासी हलचल का असर पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश पर भी देखने को मिल रहा है. महाराष्ट्र में एनसीपी नेता अपने समर्थक विधायकों के साथ एनडीए का हिस्सा बन गए. इस बीच अब हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर मिशन लोटस पर चर्चा जोरों पर है. सोशल मीडिया में पर कांग्रेस नेताओं के बीच फैले असंतोष को लेकर मिशन लोटस के बारे में चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है. अब सवाल यह है कि कुल 68 में से 40 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस के लिए आखिर परेशानी क्या है?



कांग्रेस के लिए आखिर परेशानी क्या है?
सियासत अनिश्चितता, उथल-पुथल और परेशानी से भरी रहती है. प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुए सात महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है. ऐसे में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार के सामने भी कई परेशानियां खड़ी हुई हैं. जानकारों के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार न होना नेताओं के बीच असंतोष का सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा होली लॉज गुट को हाशिए पर धकेलने की कोशिश भी कांग्रेस के लिए परेशानी का की बड़ी वजह है. यही नहीं, कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी सात महीने के छोटे से वक्त में ही खुलकर सामने आने लगी है. जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियों और प्रतिस्पर्धा के बीच सुखविंदर सिंह सुक्खू को प्रदेश के मुखिया की कमान मिली, वह तो पहले से ही सभी के सामने है. इसके लिए आखिरी वक्त में मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़े प्रतिभा सिंह और मुकेश अग्निहोत्री वाला फैक्टर भी गिना जा रहा है.

क्या कहती है भाजपा?
एनसीपी को एनडीए में शामिल होने पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि देश के सभी दल एनडीए के साथ विकास के लिए मिलना चाहते हैं. एनसीपी से इसकी शुरुआत हुई है. हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से लगातार ऑपरेशन लोटस की चर्चाएं जोरों पर रही. महाराष्ट्र में हुई सियासी उथल-पुथल के बाद एक बार फिर इस चर्चा को जोर मिल रहा है. भारतीय जनता पार्टी के नेता भी गाहे-बगाहे ऑपरेशन लोटस सरकार को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश कर रही है. फिर बात चाहे चुनाव के परिणाम के बाद कांग्रेस के विधायकों के गायब होने की चर्चा की हो या फिर अब कांग्रेस विधायकों में असंतोष की.

कांग्रेस का ऐसी संभावनाओं से इनकार
हिमाचल प्रदेश सरकार में उद्योग मंत्री और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के बेहद करीबी हर्षवर्धन चौहान का कहना है कि महाराष्ट्र में हुई सियासी उथल-पुथल का हिमाचल प्रदेश पर कोई असर नहीं है. महाराष्ट्र में इस तरह की घटनाएं नई नहीं है. शरद पवार चार साल पहले भी भाजपा के साथ जा चुके हैं. ऐसे में महाराष्ट्र की सियासत की हिमाचल प्रदेश के साथ कल्पना करने का तुलना करने का कोई अर्थ नहीं है. हर्षवर्धन चौहान ने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार पूरी तरह स्थिर है और प्रदेश के विकास के लिए काम कर रही है.

हिमाचल प्रदेश विधानसभा की स्थिति

कुल सीटें- 68

कांग्रेस- 40

भाजपा- 25

अन्य- 03 (कांग्रेस सरकार को समर्थन)