Himachal Govt School: खस्ताहाल है राज्य सचिवालय से 5 KM दूर बना स्कूल, डर के साए में पढ़ाई कर रहे नौनिहाल
सचिवालय से पांच किलोमीटर की दूरी पर बना सरकारी स्कूल खस्ताहाल है. यहां बारिश के वक्त छत से पानी टपकता है और स्कूल की नींव पर बना डंगा खिसक रहा है. यहां नौनिहाल डर के साए में पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
Himachal News: किसी इलाके को जब प्रदेश की राजधानी बनाया जाता है, तो वहां सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाने का भी दावा होता है. खासकर शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क सुविधा तो ऐसी मूलभूत जरूरत है, जिसके लिए लोग अपना घर-परिवार छोड़कर शहरों में आकर बस जाते हैं. 'हिमालय के दिल' हिमाचल प्रदेश में खुशहाली के इतने बड़े-बड़े दावे होते हैं. जिससे ऐसा लगता है कि यहां तो सब सुख-सुविधा संपन्न है. लेकिन हैरानी की बात है कि हिमाचल प्रदेश राज्य सचिवालय से सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी पर रामनगर में ऐसा सरकारी स्कूल है जहां नौनिहाल अपना जीवन खतरे में डालकर रोजाना पढ़ाई करते हैं.
हादसे का इंतजार कर रहा शिक्षा विभाग?
रामनगर के इस सरकारी स्कूल में पहली क्लास से लेकर आठवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है. इसी स्कूल में आंगनवाड़ी में पढ़ने वाले बच्चों को भी कमरा उपलब्ध करवाया गया है. यहां बारिश के वक्त छतों से पानी टपकता है और स्कूल के शौचालय की तरफ जाने वाला रास्ता किसी खतरे से खाली नहीं है. बारिश की वजह से यहां रास्ते में फिसलन है और इस रास्ते में बच्चों की सुरक्षा के लिए न तो रेलिंग है और न ही कोई अन्य इंतजाम. शौचालय के ठीक सामने तेज बहाव वाला नाला है. यहां पैर फिसलने से कोई बड़ा हादसा भी हो सकता है. रामनगर के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली इशिता और सायरा ने सरकार से मांग की है कि उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जल्द से जल्द जरूरी कदम उठाए जाएं.
बीमारियों को बुलावा देने वाले शौचालय
शौचालय के हालात ही ऐसे हैं, जो सीधे बीमारियों को आमंत्रण देते हैं. स्कूल में पढ़ने वाली बेटियों के लिए इन बीमारियों का खतरा और भी ज्यादा है. यहां एक दूसरा शौचालय भी बना है, जिस पर स्कूल प्रशासन ने ताला जड़ा हुआ है और यह इस्तेमाल नहीं होता. शौचालय के नजदीक ही किचन है, जहां बच्चों के लिए मिड डे मील योजना के तहत खाना तैयार होता है. सरकारी स्कूल में ग्राउंड के नाम पर मुट्ठी भर जगह है और यहां भी स्थानीय लोग गाड़ी पार्क कर बच्चों को खेलने से भी महरूम कर रहे हैं. हिमाचल प्रदेश के सत्ताधीशों को इतना समय नहीं कि वह ग्राउंड जीरो पर जाकर स्कूल के हालात देख सकें और न ही विभाग में कार्यरत आला अधिकारियों को इतनी चिंता है कि बच्चे आखिर किस हालत में पढ़ कर रहे हैं? इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि यहां न तो किसी नेता का बच्चा और न ही किसी बड़े साहब का बच्चा पढ़ाई करता है. यहां आम घरों से आने वाले मजदूरों के बच्चे पढ़ाई करते हैं. ऐसे में यहां इन गरीब बच्चों को न तो कोई पूछने वाला है और न ही सुरक्षा का ध्यान रखने वाला.
बच्चों को है सुधार का इंतजार
वहीं, मामले में रामनगर स्कूल प्रशासन का कहना है कि उन्होंने पूरा मामला आला अधिकारियों के ध्यान में लाया है. अधिकारियों को पत्र लिखकर भी स्कूल के हालात के बारे में बताया गया है. स्कूल की मरम्मत के लिए कुछ आर्थिक मदद की भी बात हुई थी, लेकिन फिलहाल ऐसा अब तक नहीं हुआ है. स्कूल में पहली से आठवीं तक पढ़ने वाले बच्चों की संख्या करीब 40 है और यहां एक कमरे में आंगनवाड़ी के भी करीब 25 बच्चे पढ़ाई करते हैं. यहां पढ़ने वाले बच्चों को सिर्फ यह उम्मीद है कि सत्ताधीशों की नजर उन पर भी पड़ेगी और खस्ताहाल स्कूल के हालात कुछ सुधर सकेंगे.