शिमला में भगवान हनुमान का अति प्राचीन मंदिर, यहां भक्तों के कष्ट हरते हैं महावीर
Himachal News: शोघी के महावीर हनुमान मंदिर में राधा-कृष्ण और हनुमान जी की प्राचीन मूर्तियां हैं. जनश्रुति के अनुसार, हनुमान जी ने यहाँ संजीवनी बूटी रखते हुए पर्वत को नीचे गिरा दिया था.
Hanuman Temple Shoghi Shimla: हिमाचल प्रदेश में शिमला शहर से कुछ दूरी पर शोघी से ठीक नीचे सड़क मार्ग से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर महावीर हनुमान जी का अति प्राचीन सिद्ध स्थान है. स्थानीय गुंबद शैली में चूना सुर्वी से बने इस मंदिर में चिरकाल से राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है.
यहां प्रत्यक्ष प्रमाण स्वरूप राधा कृष्ण की प्राचीन धातु मूर्तियां आज भी यथावत विद्यमान हैं. इसी वजह से इस मंदिर को ठाकुरद्वारा के नाम से पुकारा जाता था. एक समय यह ठाकुरद्वारा बेहद ऊंचे शिखर पर स्थित था.
एक जनश्रुति के मुताबिक, त्रेतायुग में हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर इस ऊंचे शिखर पर रूके, तो उनके पाद प्रहार से वह पर्वत नीचे गहरी खाई में धंस गया. वहीं, बाबा जानकी दास जी ध्यानस्थ थे. उन्होंने महावीर के चरण पकड़ नतमस्तक होकर प्रार्थना की. प्रार्थना करते हुए जानकी दास जी ने हनुमान जी से कहा- "हे महावीर ! आपने भगवान श्री राम की कार्यसिद्धि के क्रम में यहां विश्राम करते हुए मुझे दर्शन देकर आनंदित किया. आपकी कृपा से यह स्थान सिद्ध स्थान हो गया. कृपा करके आप सदा-सदा के लिए यहां मूर्तिमान रूप में विराजमान रहें, ताकि यहां आने वाले प्रत्येक भक्त को आनंद और कुशलता का आशीर्वाद मिले". महावीर हनुमान ने बाबा जानकीदास की प्रार्थना सुन ली और इसके बाद पूरे परिक्षेत्र का नाम कुशाला या खुशाला पड़ा.
मंदिर में हनुमान जी की दो मूर्तियां
यहां महावीर हनुमान की दो विशाल प्रस्तर मूर्तियां बना कर स्थापित की गई हैं. यह दोनों विशाल प्रस्तर मूर्तियां, जिनमें एक पश्चिम मुखी और दूसरी दक्षिण मुखी है. यह आज भी दूर-दूर तक जनमानस की आस्था का केंद्र बनी हुई है. इस गुंबदीय शैली वाले मंदिर का निर्माण 2 हजार 500 साल पहले बताया जाता है, जिसमें प्राकृतिक रंगों से बनाई गई पहाड़ी और कांगड़ा चित्रकला शैली की पारंपरिक चित्रावली आज भी अपनी मूल चमक बरकरार रखे हुए है, जो प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के उत्कृष्ट नमूने हैं.
संतों का पारंपरिक केंद्र रहा है यह पवित्र स्थान
यहां स्थित अनेक साधु-संतों की समाधियों से प्रमाणित होता है कि यह स्थान संतों का पारंपरिक केंद्र रहा है और इसी कारण इस गांव का नाम डेराजमातिया यानी साधु-संतों की जमातों का डेरा पड़ा. लोगों की अगाध आस्था के कारण दूर-दूर से लोग जेष्ठ और कार्तिक महीने में अपनी फसल का पहला हिस्सा पहले यहां अर्पित करते हैं. महावीर के भक्तों का विश्वास है कि लोगों की मन्नतें यहां पूरी होती हैं. राधा अष्टमी, जन्माष्टमी, हनुमान जयंती और शिवरात्रि जैसे बड़े हिंदू पर्वों पर यहां भव्य आयोजन एवं भंडारे होते हैं.
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