Shimla News: देश में दिव्यांग (Divyang) बच्चों को समान अधिकार दिलाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें और दावे किए जाते हैं. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश (Himachal Praesh) में भी दिव्यांग बच्चों को समाज का अभिन्न हिस्सा बात कर खूब वाहवाही बटोरने की कोशिश होती है, लेकिन जमीनी स्तर पर सच्चाई कुछ और ही है. शिमला के ढली इलाके में दिव्यांग बच्चों के लिए एक विशेष स्कूल है. यह दिव्यांग लड़कों के लिए प्रदेश भर का एक मात्र स्कूल है. इसमें 133 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. इस स्कूल में दृष्टिबाधित बच्चों को पढ़ने के लिए ब्रेल इंस्ट्रक्टर ही नहीं है. हैरानी की बात है कि साल 2016 से यह पोस्ट खाली है.


यहां प्राथमिक स्तर पर मूकबधिर बच्चों के लिए भी विशेष शिक्षक नहीं है. यहां ऐसे शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं, जिन्हें खुद ब्रेल का ज्ञान ही नहीं है. इस विशेष संस्थान में अनुस्थिति और चलिष्णुता अनुदेशक (Position and Mobility Instructor) और टीजीटी (एनएम) और पीजीटी (विशेष शिक्षा) भी नहीं है. ऐसे में सवाल यह है कि जब दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई स्पेशल इंस्ट्रक्टर है ही नहीं, तो आखिर यह बच्चे कैसे करेंगे? हिमाचल प्रदेश में दिव्यांग बच्चों के लिए पढ़ाई पीएचडी तक मुफ्त है, लेकिन जब बच्चों का आधार ही मजबूत नहीं होगा तो बच्चे पीएचडी तक की पढ़ाई कैसे कर सकेंगे?


सीएम सुक्खू को सौंपा है मांग पत्र 


देश में लागू शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत यह प्रावधान है कि किसी बच्चे को शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता, तो सवाल है कि इन बच्चों के भविष्य के साथ आखिर खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? हिमाचल प्रदेश में दिव्यांग बेटियों के लिए जिला मंडी के सुंदरनगर में सरकारी संस्थान है. इसके अलावा दूसरा संस्थान शिमला के ढली में है. सुंदरनगर स्थित दिव्यांग बालिकाओं का संस्थान सरकार खुद चलती है.


शिमला के विशेष योग्यता रखने वाले बच्चों के लिए बनाए गए इस संस्थान में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों ने मांग उठाई है कि यहां विशेष इंस्ट्रक्टर की तैनाती की जाए. साथ ही सरकार इसे पूरी तरह अपने अधीन कर ले. मौजूदा वक्त में यह संस्थान हिमाचल प्रदेश बाल कल्याण परिषद की ओर से चलाया जा रहा है. अभिभावकों का कहना है कि प्रदेश में जब दो ही ऐसे संस्थान हैं, तो ऐसे में दोनों की व्यवस्था अलग-अलग नहीं होनी चाहिए. इस संदर्भ में दिव्यांग बच्चों के अभिभावकों ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को मांग पत्र भी सौंपा है.


दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण बने हिमाचल


बता दें कि साल 2021-22 के आंकड़ों के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में पहली से बारहवीं तक पढ़ाई कर रहे दिव्यांग बच्चों की संख्या 6 हजार 692 हैं. इनमें 3 हजार 679 लड़के और 3 हजार 013 लड़कियां शामिल हैं. शिमला के ढली स्थित विशेष बच्चों के लिए बनाए गए संस्थान में पढ़ रहे छात्रों के अभिभावकों की मांग है कि सरकार इस संस्थान को जल्द से जल्द अपने अधीन कर ले, ताकि यहां बच्चों को बेहतर सुविधा मिल सके और साथ ही शिक्षकों की कमी को भी पूरा किया जा सके. मौजूदा वक्त में यह संस्थान हिमाचल प्रदेश बाल कल्याण परिषद की ओर से चलाया जा रहा है. ऐसे में यहां स्थाई शिक्षक की तैनाती हो ही नहीं पा रही.


अभिभावकों की मांग है कि सरकार जिस तरह निराश्रित बच्चों के लिए सुखाश्रय योजना में बेहतरीन काम कर रही है. इसी तरह इन दिव्यांग बच्चों के विशेष शिक्षकों की तनाती के बारे में भी विचार किया जाए. अभिभावकों की मांग है कि हिमाचल प्रदेश सरकार इस क्षेत्र में ऐसा काम करे, जिससे पहाड़ी राज्य अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण के तौर पर स्थापित हो. दिव्यांग बच्चे न तो कभी किसी से कम थे और न ही कम हैं, लेकिन इन बच्चों को वह शिक्षा मिलनी चाहिए, जिसके यह हकदार हैं.


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