Indian Institute of Advanced Study Shimla: भारत में लंबे ब्रिटिश शासनकाल के बाद संघर्ष से आज़ादी हासिल की. आज भारत देश को आजाद हुए 78 साल का वक्त पूरा होने जा रहा है. इस 78 साल में भारत ने विकास के बड़े आयाम छुए हैं और विश्व भर में अपना नाम बनाया है. आज जिस तेजी के साथ भारत आगे बढ़ रहा है, उसके पीछे हमारे पुरखों का बड़ा संघर्ष है. भारत देश को आजादी दिलाने के लिए हमारे पुरखों ने अपने खून का हर कतरा तक दाव पर लगा दिया. लंबे संघर्ष, लड़ाई और कई आंदोलन के बाद भारत को आजादी मिली. 


ब्रिटिश शासनकाल के दौरान ग्रीष्मकालीन राजधानी रही शिमला में एक ऐसी इमारत है, जो आजादी की हर बड़ी घटना की गवाह रही है. मौजूदा वक्त में इस इमारत का इस्तेमाल इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एडवांस स्टडी के तौर पर हो रहा है. ब्रिटिश शासनकाल के दौरान यह वाइसरीगल लॉज हुआ करता था. इसके बाद यह राष्ट्रपति निवास बना और फिर साल 1965 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे शिक्षा के लिए समर्पित कर दिया.


साल 1888 में 38 लाख रुपए से हुआ था निर्माण 
देश की आजादी और विभाजन से जुड़े तमाम दस्तावेजों पर इसी इमारत में चर्चा हुई. भारत देश की आजादी के परवाने पर हुए दस्तखत की इबारत भी इस इमारत ने देखी है. साल 1884 में वाइसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ. कुल 38 लाख रुपए खर्च कर साल 1888 में यह इमारत बनकर तैयार हुई. इस इमारत में देश की आजादी तक कुल 13 वायसराय रहे. लॉर्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे. यह इमारत स्काटिश बेरोनियन शैली की है. यहां का फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है. इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है. 


ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह है इमारत 
इस ऐतिहासिक इमारत में साल 1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस हुई थी. इसके बाद साल 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई, जिसमें देश की आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई थी. इस बैठक में पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद सहित कई अन्य नेता शामिल थे. महात्मा गांधी भी उस दौरान शिमला में थे, लेकिन वे यहां हो रही बैठकों में शामिल नहीं हुए थे. अलबत्ता वे शिमला में ही एक स्थान पर कांग्रेस के नेताओं को मश्विरा देते रहे. देश की आजादी से पूर्व की दो महत्वपूर्ण बैठकों के ब्यौरे से पहले यहां इस इमारत के संक्षिप्त इतिहास को जानना जरूरी है.  साल 1945 में हुई थी शिमला कॉन्फ्रेंस
साल 1945 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेबल की अगुवाई में यहां शिमला कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया. यह कान्फ्रेंस वायसराय की कार्यकारी परिषद के गठन से जुड़ी हुई थी. इस परिषद में कांग्रेस के कुछ नेताओं को शामिल किया जाना प्रस्तावित था. लॉर्ड वेबल के साथ कुल 21 भारतीय नेता कॉन्फ्रेंस में शिरकत कर रहे थे.


कुल 20 दिन तक ये सम्मेलन चला, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. बताया जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना कार्यकारी परिषद में मौलाना आजाद को मुस्लिम नेता के तौर पर शामिल करने में सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि मौलाना आजाद कांग्रेस के नेता हैं न कि मुस्लिम नेता. इस कान्फ्रेंस में बापू गांधी, नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलाना आजाद के साथ कुल 21 भारतीय नेता थे.  


कैबिनेट मिशन की बैठक में देश की आजादी पर हुई थी चर्चा 
दूसरे विश्वयुद्ध ने ग्रेट ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका दे दिया. जबरन हुकूमत कर रहे अंग्रेज शासक अब भारत पर शासन करने में कामयाब होते नहीं दिख रहे थे. ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने की प्रक्रिया शुरू की. इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई.


यह बैठक 1946 की गर्मियों में हुई थी. इसमें कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेता मौजूद थे. कैबिनेट मिशन की बैठक में भारत को आजाद करने के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई. साथ ही विभाजन की नींव भी इसी बैठक में पड़ी. इस बात पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं कि विभाजन के ड्राफ्ट पर वाइसरीगल लॉज में दस्तखत हुए थे या फिर थोड़ी दूरी कर बनी पीटरहॉफ की इमारत में हुए. लेकिन, यह तथ्य है कि इस ड्राफ्ट पर शिमला में ही चर्चा हुई और यहीं इस पर हस्ताक्षर भी किए गए.


ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश: पुलिसकर्मियों के समर्थन में आए नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर, सुक्खू सरकार से कर दी ये मांग