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Shimla: मां काली के तेज से चल गए थे इस कलाकार के बाल, ब्लैंक चेक मिलने के बावजूद नहीं बेचा महाविद्या के चित्र

Shimla Himachal Pradesh News: सनत कुमार चटर्जी ने 13 साल की उम्र में मां सरस्वती की अद्भुत मूर्ति बनाई. मां की इस जीवंत मूर्ति को देखकर असित कुमार हल्दर हैरान थे.

Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला (Shimla) के मशहूर कालीबाड़ी मंदिर (Kalibari temple) के गर्भ गृह के चारों ओर लगे दस महाविद्याओं के चित्र अध्यात्म और कला का बेजोड़ नमूना हैं. इन चित्रों को विश्व प्रसिद्ध कलाकार सनत कुमार चटर्जी (World Famous Artist Sanat Kumar Chatterjee) ने बनाया है. मंदिर की परिक्रमा स्थल पर लगे यह चित्र न केवल हिंदू धर्म में मान्यता रखने वालों के लिए बल्कि विदेशों से आने वाले सैलानियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं.

महाविद्याओं के चित्र बेचने के लिए मिला ब्लैंक चेक
एक बार जर्मनी से आए विद्वानों ने सनत कुमार चटर्जी को ऑयल पेंट से बने इन महाविद्याओं के चित्र के बदले ब्लैंक चेक ऑफर किया. इस ब्लैंक चेक को सनत चटर्जी ने यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि महाविद्याओं के चित्र उनके लिए धन का नहीं बल्कि आस्था का विषय हैं. इसके बाद ही संत कुमार चटर्जी ने 10  महाविद्याओं के इन चित्रों को मशहूर कालीबाड़ी मंदिर को भेंट किया. सनत कुमार चटर्जी ने 10 महाविद्याओं के चित्रों में मां के अलग-अलग स्वरूपों को दर्शाया है. महाविद्या का अर्थ है ग्रेट नॉलेज सिस्टम. यह ऐसी विद्या है जिसमें सृष्टि का सार समाया हुआ है.

अपनी कला का जादू बिखेरने पहाड़ों पर आए सनत
साल 1960 में सनत कुमार चटर्जी अपने गुरु असित कुमार हल्दर के आदेश पर पहाड़ों में अपनी कला का जादू बिखेरने के लिए पहुंचे. शिमला पहुंचने पर वे मशहूर कालीबाड़ी मंदिर में रुके. यहां मंदिर प्रबंधन को पता चला कि चटर्जी एक कलाकार हैं. उन्होंने सनत कुमार चटर्जी से आग्रह किया कि मां काली की आंखें किसी वजह से खराब हो गई हैं. ऐसे में वे इन आंखों को ठीक कर दें.
Shimla: मां काली के तेज से चल गए थे इस कलाकार के बाल, ब्लैंक चेक मिलने के बावजूद नहीं बेचा महाविद्या के चित्र

सनत कुमार ने ठीक की थी मां काली की आंखें
मंदिर प्रबंधन का आग्रह मानकर सनत कुमार चटर्जी ने मां काली की आंखें ठीक की. कहा जाता है कि उस समय मां काली के तेज से सनत कुमार चटर्जी के शरीर के सभी बाल झड़ गए थे. इसके 10 साल बाद सनत कुमार चटर्जी ऐसे घने बालों के मालिक बने जिसके साथ वे जीवन भर जिए.

मिट्टी में तैयार हुआ सोना
आजादी के दौरान विभाजन के बाद सनत कुमार चटर्जी के पिता के भाई के बच्चे भी साथ ही घर पर रहने लगे. वह घर पर 14 भाई-बहन थे. सनत कुमार चटर्जी पढ़ने में कुछ कमजोर थे और हमेशा मिट्टी में ही खेलते रहते थे. उनके घरवाले उन्हें मिट्टी का नालायक कहकर पुकारा करते थे, लेकिन उनके घर वालों को मालूम नहीं था कि मिट्टी में सोना तैयार हो रहा है.

13 साल की उम्र में बनाई मां सरस्वती की अद्भुत मूर्ति
सनत कुमार चटर्जी ने 13 साल की उम्र में मां सरस्वती की अद्भुत मूर्ति बनाई. एक बार मां की इस जीवंत स्वरूप मूर्ति को असित कुमार हल्दर ने देखा. हल्दर यह देखकर हैरान थे कि इस मूर्ति को 13 साल के एक छोटे से बच्चे ने बनाया है. इसके बाद उन्होंने सनत कुमार चटर्जी के पिता से आग्रह किया कि वह अपने बेटे को उन्हें दे दें. हल्दर के इस आग्रह पर चटर्जी के पिता ने बालक माना को विश्व विख्यात कलाकार असित हल्दर को सौंप दिया. सनत कुमार चटर्जी के घर का नाम माना था.

14 साल तक हल्दर के पास सीखी कलाकारी
बालक माना असित कुमार हल्दर के साथ संपर्क में आने के बाद 14 साल तक अद्भुत कलाकारी के मालिक बने. इसके बाद साल 1960 में वे अपने गुरु के आदेश पर ही पहाड़ों में अपनी कला का जादू बिखेरने आए. असित कुमार हल्दर रविंद्र नाथ टैगोर के बहन के बेटे थे.

ब्रह्मांड का स्वरूप हैं मां काली
विश्व विख्यात कलाकार सनत कुमार चटर्जी के बेटे प्रो. हिम चटर्जी बताते हैं कि उनके पिता की मां काली में अटूट आस्था थी. उनके पिता कहा करते थे कि भले ही समाज में काले रंग को शुभ न माना जाता हो, लेकिन मां काली का काला रंग भक्तों के लिए प्रेम का कारण है. वे कहा करते थे कि हिंदू धर्म में सभी देवी-देवता प्रत्यक्ष तौर पर विज्ञान के साथ जुड़े हुए हैं. मां काली का काला रंग ब्रह्मांड और उनकी लाल जीभ सूर्य की परिचायक है. इसलिए मां काली को ब्रह्मांड का स्वरूप माना जाता है.

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