Shimla: तारा देवी मंदिर में टौर के पत्तों पर परोसा जायेगा लंगर, जानें कब से लागू होगी व्यवस्था?
Tara Devi Temple: टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन खाने का मजा अलग है. सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन को पत्तल बनाने का जिम्मा दिया गया है. हरी पत्तल पर्यावरण संरक्षण के साथ रोजगार भी उपलब्ध करायेगा.
Tara Devi Temple Shimla: शिमला के ऐतिहासिक तारा देवी मंदिर में लंगर की नयी व्यवस्था शुरू की गयी है. 14 जुलाई से श्रद्धालुओं को लंगर टौर की पत्तल में परोसा जाएगा. उपायुक्त अनुपम कश्यप ने बताया है संस्कृति और धरोहर को सहेजने के लिए जिला प्रशासन ने अहम कदम उठाया है.
अब भक्तों को टौर के पत्तों से तैयार पत्तल में प्रसाद दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सुन्नी खंड में कार्य कर रहे सक्षम क्लस्टर लेवल फेडरेशन को पत्तल बनाने का जिम्मा दिया गया है.
पहले चरण में पांच हजार पत्तल बनाने का ऑर्डर दिया जा चुका है. आने वाले वक्त में और विस्तार किया जाएगा. हरी पत्तल पर्यावरण संरक्षण के साथ रोजगार का अवसर भी उपलब्ध करायेगा. सक्षम कलस्टर लेवल फेडरेशन को बढ़ावा देने का उद्देश्य अन्य स्वयं सहायता समूहों को भी प्रेरित करना है. बता दें कि प्रदेश में प्लास्टिक से बनी प्लेट, गिलास और चम्मच के उपयोग पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है.
टौर की बेल में औषधीय गुण के पाये जाते हैं तत्व
कचनार परिवार से संबंधित टौर की बेल में औषधीय गुण पाए जाते हैं. इससे भूख बढ़ाने में भी सहायता मिलती है. एक तरफ से मुलायम होने वाले टौर के पत्ते को बतौर नैपकिन इस्तेमाल किया जा सकता है. टौर के पत्ते शांतिदायक और लसदार होते हैं. यही वजह है टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन खाने का मजा अलग है. अन्य पेड़ों के पत्तों की तरह टौर के पत्ते भी गड्ढे में डालने से दो से तीन दिन के अंदर गल-सड़ जाते हैं. इन पत्तों से फसलों के लिए बेहतरीन खाद तैयार होती है.
ऊंची पहाड़ी पर स्वर्ग की देवी मां तारा विराजमान
शिमला के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर मां तारा विराजमान हैं. मां तारा के दर्शन करने लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. मान्यता है कि मातारानी के दरबार में पहुंचने वाले भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध तारा देवी मंदिर आस्था का भी केंद्र है.
शिमला से 18 किलोमीटर दूर मातारानी का दरबार
तारा देवी मंदिर शिमला से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर है. शोघी की पहाड़ी पर बना मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क की सुविधा है. कुछ लोग वादियों की सुंदरता देखने के लिए मंदिर ट्रैकिंग कर भी पहुंचते हैं. फिलहाल सड़कों को चौड़ा करने का काम तेजी से चल रहा है.
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