Shimla Town Hall: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला ऐतिहासिक इमारतों का शहर है. यहां की ऐतिहासिक इमारतें ही इस शहर को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. यहां ऐसी ही एक इमारत टाउन हॉल की है. इसका निर्माण साल 1908 में हुआ था. नगर निगम शिमला अब अपनी आर्थिक हालत सुधारने के लिए इस ऐतिहासिक इमारत के एक हिस्से को हाई एंड कैफे के लिए देने जा रहा है. इसके लिए दिल्ली की एक बड़ी कंपनी के साथ नगर निगम शिमला ने समझौता कर एमओयू भी साइन कर लिया है.


शिमला के टाउन हॉल के ग्राउंड फ्लोर पर 3 हजार 800 वर्ग फुट क्षेत्र में एक हाई एंड कैफे शुरू होगा. इस हाई एंड कैफे में अंतरराष्ट्रीय स्तर के बड़े-बड़े ब्रांड अपने प्रोडक्ट को यहां बेचेंगे. इसके लिए नगर निगम शिमला की ऐतिहासिक इमारत में इन कंपनियों को काउंटर मुहैया करवाए जाएंगे और ग्राहक एक छत के नीचे अलग-अलग खानपान का स्वाद चख सकेंगे. आने वाले तीन महीने में इस हाई एंड कैफे को शुरू करने का प्रस्ताव है.


13 लाख रुपए की कमाई करेगा नगर निगम शिमला


शिमला नगर निगम के आयुक्त आशीष कोहली का कहना है कि हाई एंड कैफे खोलने से नगर निगम शिमला को अतिरिक्त आय प्राप्ति होगी. कंपनी को इस जगह की एवज में हर महीने नगर निगम को 13 लाख का भुगतान करना पड़ेगा. एमओयू में नगर निगम शिमला की इमारत का एक हिस्सा 10 साल के लिए कंपनी को दिया गया है. नगर निगम शिमला इससे हर साल एक करोड़ 56 लाख की कमाई करेगा.


लोगों ने किया विरोध


नगर निगम शिमला के इस फैसले का लोगों ने विरोध भी किया है. आम लोग नहीं चाहते कि ऐतिहासिक इमारत में खानपान की चीजें शुरू की जाए. इससे ऐतिहासिक इमारत की विरासत पर बुरा असर पड़ेगा. शिमला की विरासत पर कई किताबें लिख चुके इतिहासकार सुमित राज वशिष्ठ का कहना है कि नगर निगम शिमला का यह फैसला सही नहीं है. शिमला घूमने के लिए आने वाले पर्यटक यहां की परंपरा और विरासत को देखना चाहते हैं, लेकिन यहां बड़े-बड़े शहरों की तरह अंतरराष्ट्रीय ब्रांड को लाने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह बड़े-बड़े ब्रांड तो बड़े शहरों में भी देखने को मिल जाते हैं, लेकिन पहाड़ों कि संस्कृति यहां अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है.


स्थानीय परंपरा को मिलना चाहिए बढ़ावा: सुमित राज 


सुमित राज वशिष्ट ने नगर निगम की ओर से बाहरी कंपनी के साथ एमओयू साइन करने पर भी सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि अगर नगर निगम को कोई एमओयू साइन करना ही था, तो इसके लिए किसी स्थानीय व्यापारी के साथ एमओयू साइन किया जाना चाहिए था. इससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार पैदा होता. उन्होंने कहा कि शिमला घूमने के लिए आने वाले पर्यटक यहां की संस्कृति और खानपान को जानना चाहते हैं. अंतरराष्ट्रीय ब्रांड का हाई एंड कैफे शुरू कर इससे कमाई तो की जा सकती है, लेकिन सांस्कृतिक तौर पर इसका नुकसान देखने को मिलेगा.


1908 में निर्माण, 2014 में जीर्णोद्धार 


इतिहासकार सुमित राज वशिष्ट ने बताया कि यह बिल्डिंग ब्रिटिश शासनकाल के दौरान साल 1908 में बनी थी. शुरुआती दौर में यहां पर मुंसिपल कमेटी होती थी, जिसमें कुल 18 मेंबर हुआ करते थे. बाद में इस कमेटी को कॉरपोरेशन का रूप दिया गया. उन्होंने कहा कि इस इमारत की पहचान ब्रिटिश शासन काल के दौरान देश की सबसे बड़ी कमेटी के तौर पर थी. इस ऐतिहासिक इमारत में हाई एंड कैफे की शुरुआत दुरुस्त नजर नहीं आती. साल 2014 में टाउन हॉल का जीर्णोद्धार करने का फैसला लिया गया. इसके जीर्णोद्धार का काम 2017 में पूरा होना था, लेकिन देरी के चलते यह काम साल 2018 में पूरा हुआ.


इसके बाद इस इमारत के मालिकाना हक को लेकर पर्यटन निगम और नगर निगम शिमला के बीच ठन गई. मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा. हाईकोर्ट ने कहा कि यहां दफ्तर की जगह  कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे नगर निगम को आय मिल सके. मौजूदा वक्त में यहां पर नगर निगम शिमला के मेयर और डिप्टी मेयर कार्यालय के लिए ही जगह दी गई है. यहां नगर निगम शिमला के पार्षदों को बैठने के लिए कोई स्थान नहीं है.


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