Shimla News: पहाड़ की सियासी चढ़ाई चढ़ने में आम आदमी पार्टी का दूसरा प्रयास भी बुरी तरह विफल रहा. पहले विधानसभा चुनाव और अब नगर निगम शिमला चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. कुल 34 में से 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी एक भी सीट पर अपनी जमानत नहीं बचा सके. इससे पहले हिमाचल आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष सुरजीत सिंह ठाकुर विधानसभा चुनाव में 60 सीटों पर जीत का दावा कर रहे थे. दावे से इतर जीत तो दूर, लेकिन पार्टी अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी थी.
NOTA को AAP से ज्यादा वोट
नगर निगम शिमला चुनाव में आम आदमी पार्टी के सभी प्रत्याशियों को कुल-मिलाकर सिर्फ 362 वोट पड़े. आम आदमी पार्टी से ज्यादा भरोसा लोगों ने NOTA पर जताया. शहर के लोगों ने 446 लोगों ने नोटा का बटन दबाया. ऐसे में आम आदमी पार्टी की सियासी स्थिति हिमाचल प्रदेश में सहज ही समझी जा सकती है. शिमला को मिनी हिमाचल भी कहा जाता है. क्योंकि यहां हर जिले के लोग बसते हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी का भविष्य अंधेरे में ही नजर आ रहा है. लोकसभा चुनाव को भी एक साल से कम का वक्त रह गया है. अरविंद केजरीवाल को संयुक्त विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के लिए पहाड़ी राज्य हिमाचल चाहिए अच्छे संकेत नहीं हैं.
AAP प्रत्याशियों की पड़े केवल 362 वोट
नगर निगम शिमला चुनाव में आम आदमी पार्टी के आठ प्रत्याशी तो ऐसे थे, जिन्हें नोटा से भी कम वोट मिले. समरहिल वार्ड से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी बाबू राम को 15 जबकि नोटा को 18 वोट मिले. लोअर बाजार से मीरा कुकरेजा को 13 और नोटा को 14 वोट मिले. कृष्णानगर वार्ड से अनीता को 16 और नोटा को 17 वोट मिले. फागली वॉर्ड से धीरज को 17 और नोटा को 26 वोट मिले. इसी तरह कसुम्पटी से संगीता को 8 और नोटा को 10 वोट मिले. बेनमोर से अपूर्व शर्मा को 16 और भराड़ी से श्याम लाल को 11 वोट मिले. रुल्दूभट्टा से अतुल सूद को 16 और नोटा को 13 वोट मिले. न्यू शिमला वॉर्ड से सत्या भरयाल को 13 और नोटा को 8 वोट मिले. शांति विहार से हरविंदर सिंह को 18 और नोटा को 9 वोट पड़े. इसके अलावा इंजन घर वॉर्ड सुधीर को 42, टूटीकंडी से रमला बिजलवान को 39, कंगनाधार से जीवन कुमार शर्मा को 36, कच्चीघाटी से सरिता सिंह को 27 और बालूगंज से राम गोपाल को 21 वोट मिले.
तीसरा विकल्प कैसे बनेगी आम आदमी पार्टी?
हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य पंजाब में सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी को पहाड़ी राज्य में मेहनत करने की जरूरत है. साल 1998 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए, तो हमेशा ही यहां तीसरा विकल्प विफल ही रहा है. ऐसे में कांग्रेस-भाजपा के बीच पारंपरिक लड़ाई को तोड़ने में आम आदमी पार्टी को अभी काफी वक्त लगने वाला है. जानकार मानते हैं कि जिस तरह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार लगातार सवालों के घेरे में आ रही है, उससे भी पार्टी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में यह माना जा सकता है कि भाजपा आम आदमी पार्टी को दिल्ली तक सीमित करने में ही सफल हो रही है.
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