Shimla Water Supply: यूं तो ब्रिटिश शासनकाल के दौरान की बेजोड़ इंजीनियरिंग के उदाहरण शिमला में खूब नजर आते हैं, लेकिन कमाल की बात है कि इन्हें आज सालों बाद भी इस्तेमाल में लाया जा रहा है. शिमला शहर से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर कैचमेंट एरिया में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान एक पानी का टैंक तैयार किया गया था.
यह टैंक साल 1901 में कमीशन हुआ था. शुरुआत में शिमला शहर की मामूली आबादी के लिए यहीं से पानी की व्यवस्था होती थी. धीरे-धीरे वक्त बीता और शहर में आबादी बढ़ती चली गई. फिर यह टैंक भी वक्त के साथ बंद पड़ गया.
कैचमेंट एरिया में वॉटर टैंक का साफ पानी
अब करीब 123 साल बाद नगर निगम शिमला ने कैचमेंट एरिया में वॉटर टैंक को रिस्टोर कर दिया है. इसे 'ग्रैविटी वॉटर सप्लाई सेओग' के नाम से जाना जाता है. यहां 90 लाख लीटर पानी स्टोर किया जा रहा है. इसके साथ ही सेओग वॉटर टैंक से ढली वॉटर टैंक के लिए भी पानी पहुंच रहा है. ढली टैंक में भी 10 लाख लीटर पानी स्टोर हो रहा है.
इस पीने के स्वच्छ पानी को लोगों के घरों तक पहुंचाने के लिए पंपिंग की जरूरत नहीं है. गुरुत्वाकर्षण यानी ग्रैविटी की मदद से ही पानी टैंक तक पहुंच रहा है. नगर निगम का इसमें कोई खर्च नहीं आ रहा. हालांकि यहां सिर्फ बरसात और बर्फबारी के दौरान ही पानी उपलब्ध हो सकता है. चूंकि यहां अपनी प्राकृतिक स्रोतों से जोड़ा गया है. ऐसे में गर्मियों के दौरान यहां पानी मिलाने की संभावना न के बराबर है.
पानी के प्राकृतिक चश्मों से मिल रहा साफ पानी
नगर निगम शिमला के मेयर सुरेंद्र चौहान ने बताया कि बीते साल यहां अपनी टीम के साथ दौरे पर आए थे. तभी उन्हें इस टैंक के बारे में जानकारी मिली. इसके बाद उन्होंने इसे रिस्टोर करने का काम शुरू करवाया. अब यह वॉटर टैंक पूरी तरह रिस्टोर हो गया है. यहां मरम्मत का काम पूरा किया गया और अब इसमें पानी स्टोर हो रहा है.
टैंक में पहले की तरह अब कोई लीकेज भी नहीं है. यहां से शहर के लोगों को नौ एमएलडी तक पानी पहुंचाया जा सकता है. इसमें नगर निगम का एक रुपये खर्च नहीं हो रहा. यहां करीब 18 प्राकृतिक चश्मे हैं. इनमें नौ को इस टैंक में जोड़ दिया गया है. आने वाले वक्त में अन्य प्राकृतिक चश्मा को ठीक कर पानी के टैंक में जोड़ा जाएगा. नगर निगम शिमला के मेयर ने बताया कि यहां से शहर के बड़ी आबादी को पीने का पानी उपलब्ध हो रहा है.
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