Rashtrapati Niwas Shimla News: देश भले ही तेजी से आधुनिकता की ओर आगे बढ़ रहा हो, लेकिन आज भी संस्कृति और धरोहर की अलग ही महत्ता है. आपको बचपन का वह वक्त याद होगा ही, जब गांव में सब लोग नीचे बैठकर एक साथ खाने का स्वाद लिया करते थे. सामाजिक कार्यक्रमों में खाना परोसने के लिए प्राकृतिक टौर के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता था. धीरे-धीरे वक्त बदला और टौर के पत्तों की जगह प्लास्टिक और थर्माकोल की प्लेट ने ले ली. इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान हुआ, बल्कि वक्त के साथ हम लोग अपनी संस्कृति को भी भूल गए.

 

अपनी संस्कृति और धरोहर को सहेजने के लिए जिला शिमला प्रशासन ने एक और अहम कदम उठाया है. तारादेवी मंदिर के बाद अब शिमला स्थित राष्ट्रपति निवास 'दि रिट्रीट' में भ्रमण पर आने वाले सरकारी स्कूल के छात्रों को धाम हरे पत्ती वाले टौर के पत्तल में परोसी जाएगी. शिमला जिला उपायुक्त अनुपम कश्यप के साथ राष्ट्रपति निवास के अधिकारियों की बैठक में यह फैसला लिया गया है.

 

एक्स्पोजर टूर के लिए राष्ट्रपति निवास आते हैं स्कूली बच्चे

14 जुलाई को तारा देवी मंदिर में हुए प्रसाद वितरण में टौर के पत्तल का इस्तेमाल किया गया. अब राष्ट्रपति निवास 'दि रिट्रीट' में भी टौर के पत्तल को ही इस्तेमाल में लाया जाएगा. गौर हो कि शिमला के छराबड़ा में राष्ट्रपति निवास है. यहां रोजाना बड़ी संख्या में लोग भ्रमण करने के लिए आते हैं. स्कूली बच्चों को भी यहां पर एक्सपोजर टूर के लिए लाया जाता है. स्कूली बच्चों के लिए यहां धाम यानी लंच का आयोजन होता है. इस धाम को अब टौर के पत्तों में परोसा जाएगा. आने वाले वक्त में शिमला के अन्य मंदिरों में भी इसी तरह टौर के पत्तल पर प्रसाद वितरण की योजना बनाई जा रही है.

 

पर्यावरण पर विपरीत असर होगा कम

राष्ट्रपति निवास छराबड़ा के प्रबंधक संजू डोगरा ने कहा कि अभी तक राष्ट्रपति निवास छराबड़ा में भ्रमण पर आने वाले सरकारी स्कूल के बच्चों को राष्ट्रपति निवास की ओर से धाम परोसी जाती है. उन्होंने बताया कि अभी तक धाम कागज़ के पत्तलों में परोसी जाती थी जिसे अब टौर के पत्तलों में परोसा जायेगा. उन्होंने कहा कि इन पत्तलों का निष्पादन आसान होता है और इससे पर्यावरण पर भी कोई विपरीत असर नहीं पड़ेगा.

 

टौर के पत्तों से बनी पत्तलों से मिलेगा रोजगार

हरी पत्तल पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत मददगार साबित होगी. इतना ही नहीं, इससे रोजगार के अवसर भी मिलेंगे. सक्षम कलस्टर लेवल फेडरेशन को बढ़ावा देने का उद्देश्य अन्य स्वयं सहायता समूहों को भी इस ओर प्रेरित करना है. बता दें कि प्रदेश में प्लास्टिक से बनी प्लेट, गिलास और चम्मच के उपयोग पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है.

 

टौर की पत्तल की खूबियां

टौर की बेल कचनार परिवार से ही संबंधित है. इसमें औषधीय गुण को लेकर भी कई तत्व पाए जाते हैं. इससे भूख बढ़ाने में भी सहायता मिलती है. एक तरफ से मुलायम होने वाले टौर के पत्ते को नैपकिन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. टौर के पत्ते शांतिदायक व लसदार होते हैं. यही वजह है इनसे बनी पत्तलों पर भोजन खाने का मजा भी आता है. अन्य पेड़ों के पत्तों की तरह टौर के पत्ते भी गड्ढे में डालने से दो से तीन दिन के अंदर गल-सड़ जाते हैं. इन पत्तों से फसलों के लिए बेहतरीन खाद तैयार होती है.

 

'दि रिट्रीट' है राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास


राजधानी शिमला से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर मशोबरा में 'दि रिट्रीट' की ऐतिहासिक इमारत है. इस ऐतिहासिक इमारत का निर्माण साल 1850 में कोटि के राजा ने करवाया था. मौजूदा वक्त में इस ऐतिहासिक इमारत का इस्तेमाल राष्ट्रपति निवास के तौर पर होता है. देशभर में केवल चार ही राष्ट्रपति निवास हैं और इनमें एक शिमला में स्थित है. शिमला के अलावा राष्ट्रपति निवास दिल्ली, हैदराबाद और देहरादून में स्थित है.

 

साल 1860 में वायसराय को चुकाने पड़े थे 2 हजार 825 रुपये

साल 1860 में कोटि के राजा ने इस ऐतिहासिक इमारत का निर्माण करवाया था. उस वक्त सिर्फ यहां एक ही मंजिल थी. साल 1860 में एम.सी. कमिश्नर लॉर्ड विलियम ने कोटि के राजा से इस इमारत को लीज पर लिया. उस वक्त उन्होंने इस भवन को लीज पर लेने के लिए 2 हजार 825 रुपये की भारी-भरकम राशि चुकाई थी. साल 1890 में चल कर इस इमारत में दो मंजिल बनवाई गई. यह ऐतिहासिक इमारत 10 हजार 628 वर्ग फीट में फैली है.

 

आजादी से पहले यहां रहते थे वायसराय

आजादी से पहले इस ऐतिहासिक इमारत में वायसराय रहा करते थे. वे ऑब्जर्वेटरी हिल पर बने वायसराय लॉज की इमारत से वीकेंड पर यहां आया करते थे. वायसराय लॉज की इस इमारत को आज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी के नाम से जाना जाता है, जो साल 1888 में बनकर तैयार हुई थी.