Employees Transfer Rules in Himachal: हिमाचल प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए कर्मचारियों का सहयोग हमेशा से ही बेहद महत्वपूर्ण माना जाता रहा है. हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की संख्या करीब 2 लाख 25 हजार है. एक आंकड़ा यह भी दिया जाता है कि सरकारी कर्मचारियों के परिवार का वोट मिला दिया जाए, तो यह आंकड़ा करीब 10 लाख तक पहुंचाता है.


न केवल पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति अन्य राज्यों से अलग है, बल्कि यहां की राजनीति भी बेहद अनूठी है. हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों की ट्रांसफर की राजनीति सालों पुरानी है. प्रदेश में जब-जब सत्ता परिवर्तन होता है, तब-तब सत्ताधीश अपने मुताबिक समर्थकों को मनचाही जगह पर ट्रांसफर करते हैं. ऐसा उच्च अधिकारी से लेकर क्लास-फोर के कर्मचारियों में देखने के लिए मिलता है. हर सरकार के लिए कर्मचारियों को संतुष्ट रखना बड़ी चुनौती रहता है. यह चुनौती मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार के सामने भी है. करीब सात महीने पहले हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ, अब सूबे के नए मुखिया सुखविंदर सिंह सुक्खू भी ट्रांसफर की राजनीति के फेर में फंसते हुए नजर आ रहे हैं.


ट्रांसफर पर सरकार के नए आदेश


मई महीने में हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से आदेश जारी हुए. इन आदेशों में ट्रांसफर पर बैन लगाने की बात कही गई. साथ ही आदेशों में यह भी स्पष्ट किया गया कि अब ट्रांसफर सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के आदेशों पर होगी. मुख्यमंत्री केवल विशेष मामलों में ही ट्रांसफर करेंगे. सामान्य ट्रांसफर पर आगामी आदेशों तक रोक रहेगी. सरकार की ओर से इन आदेशों के बाद विशेष मामलों में ट्रांसफर होती रही. जून महीने के अंत में सरकार की ओर से एक और आदेश जारी किए गए. इन आदेशों में कहा गया कि अब हर महीने के आखिरी चार कार्य दिवसों पर ही मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ट्रांसफर करेंगे. पूरे महीने ट्रांसफर की कोई फाइल मुख्यमंत्री के कार्यालय में नहीं पहुंचेगी. सरकार की ओर से ट्रांसफर को लेकर बार-बार जारी किए गए आदेश इस बात को साफ तौर पर बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार ट्रांसफर के फेर में फंस चुकी है. इससे मुख्यमंत्री कार्यालय पर विकास कार्यों की जगह ट्रांसफर की फाइल निपटाने का दबाव बनता चला जा रहा है.


विकास कार्य पर दिया जा सकेगा ध्यान- भारद्वाज


इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भारद्वाज का कहना है कि मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से जारी आदेश प्रदेश के हित में है. हर महीने हजारों की संख्या में तबादलों के आवेदन मुख्यमंत्री और मंत्रियों के कार्यालय में आते हैं. इससे अन्य अहम विकास कार्यों पर असर पड़ता है. अब सरकार के इन आदेशों से विकास कार्य पर ज्यादा ध्यान दिया जा सकेगा.


क्या बोले सत्तापक्ष के विधायक?


वहीं, सत्तापक्ष कांग्रेस के एक विधायक ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि ट्रांसफर न होने की वजह से उनके समर्थक लगातार नाराज चल रहे हैं. कार्यकर्ताओं और समर्थकों को यह उम्मीद थी कि सरकार बदलने के बाद उनके दिन भी बदलेंगे. सत्ता परिवर्तन होने के बाद कर्मचारियों को उम्मीद जगी थी कि अब उन्हें मनचाही जगह पर ट्रांसफर मिल सकेगा, लेकिन ट्रांसफर नहीं हो पा रही है. पहले से भी ट्रांसफर के जो आर्डर हो रहे हैं, उनमें खांसी देरी हो रही है. इसके अलावा कई अधिकारी भी सरकार की ओर से जारी ट्रांसफर ऑर्डर पर ध्यान नहीं दे रहे. यही नहीं, मुख्यमंत्री कार्यालय से पारित होने वाले डीओ नोट पर को भी अधिकारी हल्के में ले रहे हैं. ऐसे में सत्तापक्ष कांग्रेस के विधायक खासे परेशान चल रहे हैं. विधायकों के साथ कांग्रेस के समर्थक भी परेशान हैं. लेकिन, सवाल यह है कि जब सत्तापक्ष के विधायक ही परेशान चल रहे हैं तो समर्थकों को तो आखिर पूछेगा ही कौन?


क्या ठोस ट्रांसफर पॉलिसी ला सकेगी सरकार?


हिमाचल प्रदेश में ट्रांसफर की राजनीति चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. ऐसे में सरकार को ट्रांसफर पर एक सख्त नीति लाने की जरूरत है. पूर्व भाजपा सरकार ने भी शिक्षा विभाग में ट्रांसफर पॉलिसी लाने की कोशिश की, लेकिन इसी राजनीति के दबाव में तत्कालीन भाजपा सरकार यह फैसला नहीं ले सकी. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार के सामने भी अब यही बड़ी चुनौती है. सरकार को ट्रांसफर पॉलिसी पर कोई ठोस निर्णय लेना होगा अन्यथा सरकार के लिए आने वाले वक्त में परेशानी बढ़ना तय है.


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