Yulla kanda Temple: भगवान श्री कृष्ण के इस मंदिर में टोपी तय करती है भाग्य, परिक्रमा करते ही भक्तों के धुल जाते हैं सारे पाप!
HP News: हिमाचल प्रदेश के यूला कंडा में एक खूबसूरत झील में भगवान श्री कृष्ण का मंदिर है. कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था, जहां टोपी भक्तों का भाग्य तय करती है.
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Yulla kanda Shree Krishna Temple: विश्व भर में हिमाचल प्रदेश की पहचान देवभूमि के रूप में है. यहां बसे देवी-देवता खूबसूरत धरती को पावन और पवित्र बनाए रखने का काम करते हैं. ऐसी ही एक खूबसूरत पावन पवित्र झील में भगवान श्री कृष्ण का मंदिर है. आराध्य भगवान श्री कृष्ण के मंदिर के बारे में एक बेहद दिलचस्प मान्यता प्रचलित है. सदियों से लोग यह मानते आए हैं कि भगवान श्री कृष्ण के सबसे अधिक ऊंचाई पर बने इस मंदिर में टोपी भक्तों का भाग्य तय करती है. आपको यह जानकर हैरानी होगी, लेकिन यह सच है. हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के यूला कंडा में झील के बीचों-बीच भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है. कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान झील के बीच भगवान श्री कृष्ण के मंदिर का निर्माण किया था.
भगवान श्रीकृष्ण मंदिर के साथ बहती झील में जन्माष्टमी के दिन किन्नौरी टोपी उल्टी करके डाली जाती है. अगर टोपी बिना डूबे तैरती हुई दूसरे छोर तक पहुंच जाए, तो समझो, आपकी मनोकामना पूरी होगी. भाग्य आपका साथ देगा और आने वाला साल भी आपके लिए खुशहाली लेकर आएगा. लेकिन, अगर टोपी डूब गई तो आने वाला साल आपके लिए कष्टदायक हो सकता है. टोपी के डूबने का अर्थ होता है कि आपके साथ कुछ बुरा होने वाला है. खास बात यह है कि यहां सिर्फ किन्नौर ही नहीं बल्कि शिमला और अन्य जिलों के लोग भी अपना भाग्य आजमाने के लिए आते हैं. यहां पहुंचने पर पर्यटक भी अपने आप को ऐसा करने से रोक नहीं पाते हैं. यहां आने वाले भक्त इस पवित्र झील की परिक्रमा करना नहीं भूलते. मान्यता है कि इस झील की परिक्रमा करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं.
बुशहर रियासत से जुड़ा है यूला कंडा का इतिहास
यूला कंडा की जन्माष्टमी बेहद मशहूर है. इस जन्माष्टमी उत्सव का इतिहास बुशहर रियासत से जुड़ा है. मान्यता है कि बुशहर रियासत के तत्कालीन राजा केहरी सिंह के समय इस उत्सव को मनाने की परंपरा शुरू हुई थी. उस समय छोटे स्तर पर मनाए जाने वाले इस उत्सव को आज जिलास्तरीय दर्जा मिल चुका है. मेले को मनाने की परंपरा आज भी सदियों पुरानी है. इस मेले को देखने के लिए ग्रमीणों के साथ-साथ बाहर से आए लोगों की भी असंख्य भीड़ जमा हो जाती है.
समुद्र तल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर बना है मंदिर
दूरदराज क्षेत्रों के लोग उत्सव से एक दिन पहले ही यूला कंडा पहुंच जाते हैं. यहां मंदिर कमेटी की ओर से उनके रहन-सहन और खानपान की उचित व्यवस्था की जाती है. यह मंदिर समुद्र तल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. प्राचीन मंदिर तक पहुंचने के लिए 14 किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करना पड़ता है. भगवान श्री कृष्ण के इस मंदिर तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है, लेकिन भक्तों की आस्था इस राह को आसान बना देती है.
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