(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
शिमला के जाखू मंदिर का प्रबंधन देख प्रसन्न हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, जानिए मंदिर की तारीफ में क्या कहा?
Himachal News: शिमला के जाखू मंदिर का प्रबंधन देख स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बेहद प्रसन्न नजर आए. यहां उन्होंने जाखू मंदिर ट्रस्ट की तारीफ भी की. जाखू मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है.
Himachal Pradesh News: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद गुरुवार को शिमला के जाखू मंदिर पहुंचे. भगवान हनुमान के भक्तों की आस्था का केंद्र जाखू मंदिर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को भी खूब पसंद आया. यहां उन्होंने मंदिर के वातावरण और मंदिर कमेटी की ओर से स्वच्छता की प्रशंसा की.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि यह मंदिर बेहद अद्भुत है और यहां का वातावरण भी भक्तिमय है. जाखू मंदिर ट्रस्ट के सदस्य इशू ठाकुर ने बताया कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यहां पहुंचने पर प्रसन्नता जाहिर की और ट्रस्ट के साथ मंदिर के कर्मचारियों की भी तारीफ की. उन्होंने कहा कि स्थान बेहद पवित्र है और इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए सभी सनातनियों को अपना योगदान देने की जरूरत है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का भक्तों को प्रवचन
जाखू मंदिर पहुंचे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने पहले भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना की. इसके बाद उन्होंने जाखू मंदिर के प्रांगण में गौ ध्वज स्थापित किया और यहां मंदिर में बनी भगवान हनुमान की 108 फीट ऊंची मूर्ति के भी दर्शन किए. भगवान हनुमान की मूर्ति के नजदीक ही स्वामी ने अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण किया.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भक्तों से सनातन धर्म की राह पर आगे बढ़ने और गाय माता को राष्ट्र माता घोषित करने के बारे में भी संवाद किया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जाखू मंदिर के बाद राम मंदिर जाने का भी कार्यक्रम था, लेकिन वे मंदिर के बाहर साईं प्रतिमा होने की वजह से यहां कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. जाखू मंदिर से स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सीधा देहरादून के लिए रवाना हो गए. रास्ते में भी स्वामी भक्तों से मिले और गौ माता को राष्ट्र माता घोषित करने संबंधी बातचीत की.
जाखू मंदिर का क्या है इतिहास?
शिमला में करीब 8 हजार 048 फीट की ऊंचाई पर विश्व प्रसिद्ध जाखू मंदिर स्थित है. ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के दौरान जब मेघनाथ के बाण से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए, तो सुखसेन वैद ने भगवान राम को संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा. इसके लिए भगवान राम ने अपने अनन्य भक्त हनुमान को चुना. अपने प्रभु भगवान श्रीराम के आदेशों पर हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणागिरी पर्वत की ओर उड़ चले.
इसी स्थान पर प्रकट हुई भगवान की स्वयंभू मूर्ति
हिमालय की ओर जाते हुए भगवान हनुमान की नजर राम नाम जपते हुए ऋषि यक्ष पर पड़ी. इस पर हनुमान यहां रुककर ऋषि यक्ष के साथ भेंट की और कुछ देर आराम भी किया. भगवान हनुमान ने वापस लौटते हुए ऋषि यक्ष से भेंट करने का वादा किया, लेकिन वापस लौटते समय भगवान हनुमान को देरी हो गई. समय के अभाव में भगवान हनुमान छोटे मार्ग से चले गए. ऋषि यक्ष भगवान हनुमान के न आने से व्याकुल हो उठे. ऋषि यक्ष के व्याकुल होने से भगवान हनुमान इस स्थान पर स्वयंभू मूर्ति के रूप में प्रकट हुए.
भगवान हनुमान की चरण पादुका भी है मौजूद
इस मंदिर में आज भी भगवान हनुमान की स्वयंभू मूर्ति और उनकी चरण पादुका मौजूद हैं. माना जाता है कि भगवान हनुमान की स्वयंभू मूर्ति प्रकट होने के बाद यक्ष ऋषि ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया. ऋषि यक्ष से याकू और याकू से नाम जाखू पड़ा. दुनियाभर में आज इस मंदिर को जाखू मंदिर के नाम से जाना जाता है. साल 2010 ने इस मंदिर में भगवान हनुमान की 108 फीट ऊंची मूर्ति भी स्थापित की गई, जो शिमला में प्रवेश करने पर दूर से ही नजर आ जाती है.