Teachers Day 2023: सर्वशक्तिमान नियति कई बार दुर्लभ संयोग रचती है. देश के राष्ट्रपति रहे सर्वपल्ली राधाकृष्णन (SarvepalliRadhakrishnan) शिक्षा के लिए समर्पित थे. दुर्लभ संयोग यह कि जिस साल सर्वपल्ली का जन्म हुआ, उसी साल शिमला (Shimla) में एक भव्य इमारत बनकर तैयार हुई. सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति बने और शिमला में बनी उस इमारत में राष्ट्रपति भवन चलता था. बाद में देश के शिक्षक राष्ट्रपति ने शिमला के राष्ट्रपति निवास को उच्च अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया. 


शिमला की वह इमारत आजादी से पहले वायसरीगल लॉज, आजादी के बाद राष्ट्रपति निवास और अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान कहलाती है. इसे उच्च अध्ययन के लिए समर्पित करने का श्रेय डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को जाता है. उनके जन्मदिन को हर साल शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. देश भर में 5 सितंबर यानी आज शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. शिक्षक दिवस और राधाकृष्णन का नाम एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा है. उनके साथ ही जुड़ी है- शिमला की एक भव्य इमारत.


डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का बड़ा योगदान
यह इमारत साल 1888 में ही बनकर तैयार हुई थी. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वायसरीगल लॉज के नाम से जाना जाता था. यहां ब्रिटिश वायसराय रहा करते थे. आजादी के बाद यह इमारत राष्ट्रपति निवास कहलाने लगी. बाद में सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत को ज्ञान के महाकेंद्र के रूप में विकसित करने की सोची. उन्हीं की दूरदर्शी सोच अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तौर पर कार्य कर रही है.


20 अक्टूबर 1965 को हुआ था विधिवत शुभारंभ
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वायसरीगल लॉज यानी राष्ट्रपति निवास को उच्च अध्ययन और शोध का केंद्र बनाने के लिए एक कार्य योजना तैयार की थी. साल 1965 में 20 अक्टूबर को इस इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान बना दिया गया. हालांकि संस्थान की सोसायटी का पंजीकरण 6 अक्टूबर, 1964 को हुआ. इसका विधिवत शुभारंभ 20 अक्टूबर 1965 को किया गया था. संस्थान की स्थापना का मकसद मानविकी और सामाजिक अध्ययन के लिए वातावरण तैयार करना और उसे प्रोत्साहित करना था. भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के पहले अध्यक्ष भारत के तत्कालीन उप राष्ट्रपति जाकिर हुसैन थे.


संस्थान की लाइब्रेरी में डेढ़ लाख से अधिक किताबों का खजाना
वहीं इसके उपाध्यक्ष तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला बने. संस्थान के प्रथम निदेशक प्रो. निहार रंजन रॉय थे. उच्च अध्ययन संस्थान में सामाजिक और मानविकी के क्षेत्र में अध्ययन और शोध किया जाता है. हर साल देश-विदेश की विख्यात बौद्धिक हस्तियां यहां अध्येता और राष्ट्रीय अध्येता यानी फैलो और नेशनल फैलो के तौर पर शोध करती हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में डेढ़ लाख से अधिक किताबों का खजाना है. तिब्बती भाषा सहित संस्कृत और गुरुमुखी के हस्तलिखित दुर्लभ ग्रंथ यहां रखे गए हैं. लाइब्रेरी की सारी किताबों की जानकारी ऑनलाइन है. संस्थान में केंद्र सरकार ने देश का पहला टैगोर सेंटर भी स्थापित किया है. 


राधाकृष्णन के सपनों का संसार
ब्रिटिश काल में यह इमारत 1884-1888 यानी चार साल में बनकर तैयार हुई थी. इसमें बर्मा से खासतौर पर टीक की लकड़ी का काफी निर्माण है. पत्थरों से बनी यह इमारत वास्तुकला का शानदार नमूना है. राष्ट्रपति राधाकृष्णन इसे देश के राष्ट्रपति निवास के तौर पर नहीं रखना चाहते थे. वे चाहते थे कि इस इमारत का सदुपयोग देश के बौद्धिक विकास के रूप में हो. संस्थान में बर्मा की महान नेता आंग सान सू की भी अध्येता रही हैं. लेखन जगत की विख्यात हस्तियां भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती, ओमप्रकाश वाल्मीकि, दूधनाथ सिंह यहां चिंतन-मनन के लिए अध्येता के तौर पर रहे हैं. 


कवि-लेखक और फिल्मकार गुलजार का भी यहां से गहरा लगाव रहा है. देश और विदेश के कई बड़े नेता संस्थान का दौरा करने आते रहे हैं. विजिटर्स बुक में उनके इस इमारत के प्रति विचार दर्ज हैं. इस तरह शिक्षक दिवस पर देश के राष्ट्रपति और शिक्षाविद् के सपनों का संसार शिमला में खूब फल-फूल रहा है.


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