Virbhadra Singh News: हिमाचल के पूर्व CM वीरभद्र सिंह नहीं बनना चाहते थे नेता, जानें- 'राजा' में कहां से आए राजनीतिक गुर?
Virbhadra Singh News: साल 1962 में वीरभद्र सिंह ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था. वहीं साल 1983 में वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति छोड़ हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
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Story of Virbhadra Singh: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की राजनीति पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के जिक्र के बिना अधूरी है. बात जब भी हिमाचल की राजनीति की होती है, तो आंखों के सामने खुद-ब-खुद वीरभद्र सिंह की तस्वीर उतर आती है. वीरभद्र सिंह की कुशल राजनीति और सशक्त नेतृत्व से हर कोई वाकिफ है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर वीरभद्र सिंह के अंदर यह गुर आए कहां से. वीरभद्र सिंह का जन्म राज परिवार में हुआ था. उनके परिवार से राजनीति का कोई खास संबंध नहीं था.
वीरभद्र सिंह वह शख्सियत हैं, जो छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और पांच बार सांसद रहे. यूपीए-2 के दौरान वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय इस्पात मंत्री का प्रभार भी संभाला. वीरभद्र सिंह के भीतर राजनीति और नेतृत्व करने की क्षमता उनकी शुरुआती शिक्षा के दौरान आई. वीरभद्र सिंह शिमला के ऐतिहासिक बिशप कॉटन स्कूल में पढ़े. यहां आज भी हर किसी को वह रजिस्टर बेहद गर्व के साथ खोलकर दिखाया जाता है, जहां 5359 रोल नंबर के आगे वीरभद्र सिंह का नाम लिखा है. जब बुशहर रियासत का राजकुमार इस स्कूल में पढ़ने आया, तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि एक दिन यह छोटा बच्चा हिमाचल प्रदेश की राजनीति का कद्दावर नेता साबित होगा.
हिस्ट्री के प्रोफेसर बनना चाहते थे वीरभद्र सिंह
एक दिलचस्प बात यह भी है कि वीरभद्र सिंह कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे. वीरभद्र सिंह की इच्छा थी कि वे हिस्ट्री के प्रोफेसर बने, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर वे राजनीति में आए. वीरभद्र सिंह उन चंद शख्सियतों में से एक हैं, जिन्होंने जवाहर लाल नेहरू, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ काम किया है. साल 1962 में वीरभद्र सिंह ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा. साल 1983 में वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति छोड़ हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री बनकर आए.
'राजा साहब' के नाम से किया जाता है याद
इसके बाद साल 2012 तक वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के सामने विद्या स्टोक्स, आनंद शर्मा, गुरमुख सिंह बाली, कौल सिंह ठाकुर और पंडित सुखराम सरीखे दिग्गज नेताओं ने समकक्ष गुट खड़ा किया, लेकिन वीरभद्र सिंह हमेशा ही इक्कीस साबित हुए. 8 जुलाई 2021 को लंबी बीमारी के बाद वीरभद्र सिंह का निधन हो गया, लेकिन वे हिमाचल प्रदेश की जनता के दिलों में आज भी जिंदा हैं. यह जनता का ही प्यार है कि देश में राजशाही खत्म होने के बाद लोकतंत्र में भी वीरभद्र सिंह को 'राजा साहब' के नाम से याद किया जाता है.
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