Shimla News: हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ प्रदेश राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे सुखविंदर सिंह सुक्खू चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. आम-ओ-खास उनसे जुड़ी छोटी से छोटी चीज को जानने की चाह रखता है. ऐसे में लोगों के मन में यह भी जिज्ञासा है कि एक के बाद एक लिए जा रहे फैसलों के पीछे आखिर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की प्रेरणा कौन है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का संघर्ष तीन दशक से भी अधिक समय का रहा है. जाहिर है कि उन्हें समय-समय पर कई तरह की सीख मिलती रही हैं. पिता के संघर्ष से लेकर मां की सीख और दोस्तों के साथ ने उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है.
संकट के वक्त याद आते हैं भगवान हनुमान
वक्त हमेशा एक-सा नहीं रहता. समुद्र की तरंगों की तरह दिन भर में कई बार उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं और जब कोई मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा हो, तो उतार-चढ़ाव यह संकट और भी ज्यादा हो जाता है. बात जब संकट की आती है, तो अनायास ही भगवान हनुमान की याद आ जाती है. भगवान हनुमान हर संकट से पार लगाने वाले आराध्य के रूप में जाने जाते हैं. भक्त, अनुयायी और सहयोगी में के बीच एक महीन रेखा होती है. इस रेखा को चिन्हित किया जाना उतना ही जरूरी है, जितना जीवन में आगे बढ़ने के लिए सकारात्मक रवैया.
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह के पीछे खड़ा चेहरा कौन?
आपके मन में भी यह जानने की जिज्ञासा जरूर होगी कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के पीछे ऐसा कौन-सा चेहरा होगा, जो उन्हें संकट से पार लगाने का काम करता है. हालांकि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि मुख्यमंत्री फैसलों में दूसरों से ज्यादा राय मशवरा नहीं करते, लेकिन वे बौद्धिक योग्यता वाले लोगों से सलाह लेने में भी गुरेज नहीं करते.
कौन है मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का हनुमान?
पहली बार हिमाचल प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे सुखविंदर सिंह सुक्खू के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन उन्हें इन चुनौतियों से पार लगाने में उनकी बड़ी मदद धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर से मिलती है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर बौद्धिक क्षमता के साथ कई मुद्दों को लेकर संवेदनशील हैं. जरूरी नहीं कि हर संकट की घड़ी में अपने हनुमान से बात कर रही समस्या का समाधान पाया जाए. जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर मिली सीख भी चुनौती को पार पाने में मदद करती है.
भगवान हनुमान के भूमिका में उनकी अर्धांगिनी
समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति की मदद से लेकर मूलभूत सुविधाओं को सुदृढ़ करने को लेकर मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर का विजन है. वे कई बार स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सुधार को लेकर भी अपनी बात रख चुकी हैं. हिंदू धर्म में भी धर्मपत्नी को अर्धांगिनी माना जाता है. मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर उनके हर अधूरे अध्याय को पूरा करने में मदद करती रही हैं.
हर मोर्चे पर मुख्यमंत्री को धर्मपत्नी का साथ
साधारण पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाली मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर का राजनीति से दूर दूर तक कोई लेना-देना नहीं रहा है. 1990 के दशक में जब सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बतौर पार्षद राजनीति की शुरुआत करते हुए साल 2003 में विधायक का चुनाव जीता. तब से लेकर अब तक हर मोर्चे पर उनकी धर्मपत्नी का साथ उन्हें मिलता रहा है.
मुख्यमंत्री के पीछे धर्मपत्नी का भी बड़ा संघर्ष
कमलेश ठाकुर ने न केवल मुख्यमंत्री को राजनीति में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया बल्कि वह कई मुद्दों को लेकर उन्हें संवेदनशीलता के साथ सलाह भी देती रही हैं. कहा जाता है कि हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का संघर्ष होता है. वह संघर्ष मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के साथ भी रहा है. बड़ी बात यह है कि उनकी धर्मपत्नी उन्हें चुनौतियों से पार पाने में भी मदद करती हैं. समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति की मदद का विजन हाल ही में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की ओर से शुरू किए गए सुखाश्रय सहायता कोष में भी साफ तौर पर झलकता है.
बिना क्रॉस चेक किए फैसला नहीं लेते मुख्यमंत्री
इसके अलावा भी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के सिपहसालारों की सूची में किया अन्य नाम भी शामिल किए जाते है. कुछ लोग उनके राजनीतिक सलाहकार सुनील कुमार बिट्टू को भी उनका नजदीकी मानते हैं. कुछ लोगों का मत यह भी है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का थिंक टैंक हिमाचल में न होकर दिल्ली के बड़े चेहरों के पास है, जो नेपथ्य में काम कर रहे हैं.
राज्य सचिवालय में गोपनीयता के साथ हो रहा काम
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रदेश की सत्ता पर काबिज होते ही सबसे पहले गोपनीयता बनाए रखने की बात कही थी. इसके लिए बकायदा एक सर्कुलर जारी किया गया था. इन दिनों इसका असर साफ तौर पर देखा भी जा रहा है. सरकार की ओर से लिए जाने वाले फैसले अब लिखित ऑर्डर हो जाने के बाद ही मालूम होते हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के करीबी बताते हैं कि दाएं हाथ से साइन करने पर मुख्यमंत्री इसका पता बाएं हाथ को भी पता नहीं चलने देते. यही नहीं, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कम से कम तीन बार क्रॉस चेक कर ही कोई फैसला लेते हैं.
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