Himachal Pradesh News: साल 1961 की बात है. हिमाचल निर्माता कहे जाने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार (Yashwant Singh Parmar) अपने बेटे लव परमार (Love Parmar) को कॉलेज में दाखिला लौटा कर वापस लौटे थे. 14 मार्च 1961 को डॉ. परमार ने अपने बेटे लव परमार को एक पत्र लिखा. इस पत्र में ईमानदार जननेता डॉ. यशवंत सिंह परमार की आर्थिक असमर्थता भले ही झलकती हो, लेकिन इससे उनकी सहजता और सरलता का भी अंदाजा लगता है.


क्या लिखा था पत्र में?


इस पत्र में परमार ने लिखा कि उन्हें इस बात का बेहद खेद है कि वो अब तक उन्हें चेक नहीं भेज सके. डॉ. परमार पत्र में लिखते हैं, "मैं भाई साहब को एक चेक भेज रहा हूं. तुम इसे अपने कॉलेज में वैसे ही दे दोगे. जब ये तुम्हें मिलेगा. मुझे ये याद है कि तुम्हें एक जोड़ी क्रिकेट बूट चाहिए. अभी मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि तुम्हें ये दे सकूं. जैसे ही मेरे पास कुछ पैसा होगा, मैं तुम्हें क्रिकेट बूट की जोड़ी भेज दूंगा. मुझे पता है कि तुम्हें क्रिकेट का शौक है. इसे बनाए रखो, लेकिन अपनी पढ़ाई करना मत भूलना. वास्तविकता यह है कि जितना तुम खेलते हो, उतनी ही ऊर्जा मिलती है. जिससे पढ़ाई में अधिक मन लगता है. जब मैं आऊंगा, तो तुम्हें क्रिकेट का कुछ और सामान भी ले लूंगा".


बेटे लव को दिया था अपना बिस्तर बंद


डॉ. यशवंत सिंह परमार अपने बेटे लव परमार को अपना बिस्तर बंद दिया था. बेटे लव के पास सोने के लिए अतिरिक्त बिस्तर न होने की वजह से वो परेशान थे. परमार ने अपने पत्र में लिखा था कि तुम्हारे पास सोने के लिए बिस्तर नहीं है. सिर्फ चारपाई है. तुम अपने बिस्तर को पूरी तरह से ढक कर रख सकोगे. इसलिए मैंने सोचा कि अब बिस्तर बंद तुम्हारे पास रहेगा. मैं दूसरा बिस्तर बंद खरीद लूंगा.


अपने समर्पण, प्रतिबद्धता और दमखम के साथ राजनीति करने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार बेहद सरल और सहज स्वभाव के थे. वो मानते थे कि चढ़ाई और शत्रु को धीरे-धीरे समाप्त किया जाना चाहिए. उनके प्रहार से उनके विरोधी हाशिए पर चले जाते थे, लेकिन डॉ. परमार ने कभी न तो अपनी ताकत का दुरुपयोग किया और न ही सत्ता का.


खाली वक्त में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की सलाह


14 मार्च 1961 को बेटे लव परमार को लिखे अपने खत में डॉ. यशवंत सिंह परमार उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित करते हैं. डॉक्टर परमार कहते हैं कि जीवन में सम्मानजनक आजीविका कमाने के लिए परिवार के सदस्यों से दूर ही रहना पड़ता है. इस खत में डॉक्टर परमार अपने बेटे को खाली वक्त में बच्चों को पढ़ाने की भी सलाह देते हैं, ताकि इससे उनका अनुशासन, अनुभव, समय की उपयोगिता और आत्मविश्वास जगने के साथ जीवनयापन के साधन उपलब्ध हो सके. डॉ. परमार ने इस खत में लिखा कि जो तुम्हारी आलोचना करते हैं वो भविष्य में देखेंगे कि तुम्हारी कितनी दूरगामी सोच थी.


सहज स्वभाव के मालिक थे डॉ. परमार


डॉ. यशवंत सिंह परमार बेहद सहजता व्यक्तित्व के मालिक थे. उनकी सहजता का अंदाजा 17 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद उनके बैंक बैलेंस से लगाया जा सकता है. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी श्रीनिवास जोशी को परमार के राजनीतिक साथी हितेंद्र सिंह ने बताया था कि 17 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद परमार के पास केवल पांच हजार रुपये थे. मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी वो बस में यात्रा करते थे. सब्जी मंडी से सब्जी खरीद कर पैदल धीरे-धीरे अपनी पत्नी सत्यवती के घर 'द रूट्स' फल-सब्जी का थैला कंधे पर लेकर चलते थे.


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