यूरोप-अमेरिका में कश्मीर की पेपरमेशी कला की धूम, क्रिसमस से पहले मिले ऑर्डर, कारीगरों की क्या है परेशानी
Heritage of Kashmir: क्रिसमस से पहले कश्मीरी पेपर माशी हस्तशिल्प की विदेशी बाजारों में डिमांड बढ़ गई है. डिमांड को पूरा करने के लिए कारीगर जुटे हुए हैं लेकिन आमदनी काम के हिसाब से नहीं है.
Jammu Kashmir News: क्रिसमस से पहले कश्मीरी पेपरमेशी कारीगरों की कला डिमांड में है. यूरोप और अमेरिका से मिले ऑर्डर ने कारीगरों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी है. क्रिसमस के खास सामानों की मांग को पूरा करने में कारीगर दिन रात जुटे हैं. 700 साल पुरानी लुप्त होती पेपर-माशी कला की विदेशों में धूम है.
श्रीनगर के हाजी मोहम्मद अख्तर मीर बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों में लघु सांता क्लॉज गुड़िया, सितारे, गेंद और अन्य क्रिसमस आइटम विदेश भेजे गए हैं, लेकिन अब स्थानीय बाजार के लिए प्रक्रिया तैयार की जा रही है. उन्होंने कहा, "क्रिसमस की सजावटी वस्तुएं पहले ही अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में भेज दी गई हैं.
क्रिसमस के पेड़ों को सजाने में हमारे आइटम की बहुत मांग में है. कागज से बने आइटम पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं." पेपर माशी आइटम पेपर पल्प से बनाए जाते हैं. इस प्रक्रिया में विभिन्न स्तरों के विशेषज्ञों की शिल्प कौशल शामिल होती है. पर्यावरण के अनुकूल होने की वजह से खरीददार मिल जाते हैं.
कश्मीरी पेपर माशी की विदेश में धूम
त्योहार से ठीक पहले क्रिसमस बल्ब, घंटियां, छोटे सांता क्लॉज हिरन, लटकते सितारे और चांद के आभूषण खूब बिकते हैं. कश्मीर में सिर्फ 0.28 प्रतिशत ईसाई आबादी है. इसलिए क्रिसमस पेपर माशी आइटम मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचे जाते हैं. सबसे ज्यादा मांग अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और दूसरे देशों से आती है. क्रिसमस के ऑर्डर पिछले कुछ समय से थोड़े कम रहे हैं, लेकिन इस साल बढ़ गए हैं. कारीगरों का कहना है कि नए ऑर्डर आने के बावजूद काम वैसा नहीं है जैसा 2019 से पहले होता था और कारोबार में करीब 70 प्रतिशत की कमी आई है.
कारीगरों के सामने क्या है परेशानी?
कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स के मुताबिक पिछले तीन सालों से हस्तशिल्प कारोबार संकट में है. इस दौरान 600 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है, जबकि चरम पर 1700 करोड़ रुपये था. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में पेपर माशी कारोबार से जुड़े लोग काम छोड़कर चले गए हैं. पेपर माशी की कला कभी समृद्ध मानी जाती थी.
कश्मीर में हजारों परिवार की आजीविका का साधन पेपर माशी आइटम होते थे. अब क्रिसमस के ऑर्डर की बढ़ती मांग अन्य स्थानीय कारीगरों के लिए अच्छे समय का संकेत हो सकती है. लेकिन सरकारी मदद के बिना प्राचीन कला से जुड़े लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गई है. अख्तर ने कहा, "कारीगर सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक काम करते हैं, लेकिन आमदनी काम के हिसाब से नहीं होती है. क्रिसमस से पहले व्यापार में थोड़ी तेजी आने के बावजूद कारीगर रोजाना 200-250 रुपये ही कमा पाते हैं."
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