Muharram 2023: 34 साल बाद जम्मू में मुहर्रम का जुलूस निकालकर क्या BJP मुस्लिम वोट पा लेगी? फारूख अब्दुल्लाह ने पूछा सवाल
Jammu Kashmir: फारूख अब्दुल्लाह ने कहा, बीजेपी के राज में यह जुलुस निकालने से बीजेपी को क्या लगता है कि बीजेपी मुस्लिमों का वोट पा लेगी उसकी यह मंशा कभी पूरी नहीं होने वाली है.
Jammu Kashmir Muharram Procession: जम्मू कश्मीर घाटी में करीब 34 साल के बाद बिना प्रतिबंध के मुहर्रम का जुलूस (Muharram Procession) निकाला गया. घाटी में 1989 के बाद बिगड़े हालातों की वजह से इस जुलूस को निकालने की इजाजत नहीं मिलती थी. वहीं इस बार कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच जुलूस निकालने की अनुमति दी गई थी. वहीं इस जुलूस को लेकर पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्लाह ने बीजेपी सरकार पर तंज किया है.
दरअसल, फारूख अब्दुल्लाह ने ट्वीट कर कहा कि, 'मुहर्रम का जुलुस जम्मू कश्मीर में कई सालों बाद निकला है. इससे पहले जब में जम्मू कश्मीर का सीएम था तब ऐसा मुहर्रम का जुलुस निकलता था, लेकिन बीजेपी के राज में यह जुलुस निकालने से बीजेपी को क्या लगता है कि बीजेपी मुस्लिमों का वोट पा लेगी उसकी यह मंशा कभी पूरी नहीं होने वाली है. बीजेपी ने देश में साम्प्रदायिक माहौल बना दिया है.'
34 साल बाद मिली जुलूस की इजाजत
गौरतलब है कि 34 साल के प्रतिबंध के बाद हजारों शिया मातमदारों को पारंपरिक गुरु बाजार-डलगेट मार्ग के माध्यम से 8वीं मुहर्रम जुलूस निकालने की अनुमति दी गई थी. 1989 में कश्मीर में अधिकारियों की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद 34 वर्षों में पहली बार जुलूस आयोजित किया गया. हालांकि, पारंपरिक आशूरा जुलूस का मार्ग, जो लाल चौक में आभीगुजर से शुरू होता था और पुराने शहर के जदीबल में समाप्त होता था, 1989 में बुट्टा कदल से शुरू होकर जदीबल पर समाप्त होने वाले वर्तमान मार्ग से छोटा कर दिया गया था. पुराने 12 किलोमीटर के मार्ग पर सुरक्षा कारणों से जुलजिना की अनुमति नहीं दी गई थी.
बता दें कि, मुहर्रम इस्लाम के सबसे पवित्र महीनों में से एक है जब दुनिया भर के शिया इमाम हुसैन (एएस) की शहादत पर शोक मनाने के लिए जुलूस निकालते हैं, जो इराक में कर्बला की लड़ाई में 680 ईस्वी में शहीद हुए थे.