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चिनार के पेड़ों के संरक्षण के लिए अनूठी पहल, जियो टैग और QR कोड से मिलेगी पूरी जानकारी

Jammu Kashmir News: चिनार के पेड़ों को शहरीकरण, वनों की कटाई और आवास क्षरण जैसे खतरों से बचाना है. श्रीनगर के अनुसंधान वन प्रभाग की तरफ से महत्वपूर्ण परियोजना शुरू की गई है.

Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर के सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी प्रतीक चिनार को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है. वन विभाग ने जम्मू और कश्मीर वन अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर जीआईएस-आधारित, क्यूआर-सक्षम संरक्षण परियोजना शुरू की है. अभिनव पहल का उद्देश्य चिनार के पेड़ों को शहरीकरण, वनों की कटाई और आवास क्षरण जैसे खतरों से बचाना है. श्रीनगर के अनुसंधान वन प्रभाग की तरफ से शुरू की गई परियोजना में सटीक निगरानी और प्रबंधन को सक्षम करने के लिए चिनार के पेड़ों की जियो टैगिंग और क्यूआर कोडिंग शामिल है. 

एक अधिकारी ने बताया, "डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाकर, इस पहल का उद्देश्य इस विरासत प्रजाति के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करना है, जो कश्मीर घाटी के लिए अत्यधिक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखती है." सर्वेक्षण से न केवल चिनार के पेड़ों की संख्या का पता लगाया जाएगा, बल्कि चिनार ट्री रिकॉर्ड फॉर्म (CTR-25) के तहत प्रत्येक पेड़ के महत्वपूर्ण विवरण भी दर्ज किए जाएंगे. जियोटैगिंग प्रक्रिया पूरे क्षेत्र में चिनार के पेड़ों के सटीक स्थानों का मानचित्रण करती है, जिससे उनके प्रबंधन के लिए एक व्यापक डेटाबेस उपलब्ध होता है. 

चिनार के संरक्षण की दिशा में अभिनव पहल

प्रत्येक पेड़ पर लगे क्यूआर कोड उसके स्वास्थ्य, आयु और विकास पैटर्न के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे शोधकर्ताओं और संरक्षणवादियों को समय के साथ होने वाले परिवर्तनों को ट्रैक करने में मदद मिलती है. परियोजना के अगले चरण में एकत्रित डेटा को कश्मीर में चिनार के पेड़ों के लिए समर्पित वेबसाइट पर अपलोड करना शामिल होगा. अगले साल अधिकारियों ने अतिरिक्त 10,000 चिनार के पेड़ों को जियोटैग करने की योजना बनाई है, जिनमें से प्रत्येक को विस्तृत जानकारी वाला एक स्कैन करने योग्य क्यूआर कोड दिया जाएगा. 

इस्लामी प्रचारकों के मध्य एशिया से कश्मीर आने पर चिनार की उत्पत्ति हुई थी. इतिहासकारों के अनुसार, चिनार को इस्लामी प्रचारकों, मीर सैयद अली हमदानी (आरए) और सैयद कासिम शाह हमदानी ईरान के हमदान क्षेत्र से कश्मीर लाए थे. कश्मीर में मुगल शासन के दौरान चिनार खूब फले-फूले. चिनार का अर्थ है ज्वाला. मुगल बादशाह जहांगीर ने इसका नाम रखा था. मुगलों ने चिनार को शाही पेड़ों की तरह माना और मुगल उद्यानों को राजसी पेड़ों से सजाया.

मुगलों ने बिजबेहरा, बडगाम, कोकरनाग और अनंतनाग के अलावा डल झील के किनारे नसीम बाग में 1100 से अधिक चिनार लगाए. इन जगहों पर अभी भी कुछ चिनार बचे हुए हैं. डोगरा शासक भी चिनार संरक्षण के लिए गंभीर थे. उन्होंने सरकारी संपत्ति घोषित कर चिनार के कटान पर प्रतिबंध लगा दिया था.

जम्मू-कश्मीर वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तारिक भट ने कहा, "चिनार के पेड़ हमारी विरासत के जीवंत प्रमाण हैं, लेकिन शहरी विस्तार और आवास के नुकसान ने खतरे में डाल दिया है." उन्होंने कहा कि पहल का उद्देश्य चिनार के बारे में जागरूकता बढ़ाना और संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना भी है. अधिकारियों के अनुसार 50 साल पहले कश्मीर में 42,000 से ज़्यादा चिनार थे, लेकिन अब तक सिर्फ 29,000 चिनार के पेड़ों का ही सर्वेक्षण किया गया है. सबसे ज्यादा संख्या गंदेरबल में है.

गंदेरबल को कश्मीर में सबसे बड़े चिनार के पेड़ की मेज़बानी का भी गौरव प्राप्त है, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा पेड़ है, जिसकी परिधि 74 फीट है. सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए “चिनार दिवस” (15 मार्च) और “चिनार फॉल फेस्टिवल” (15 अक्टूबर) मनाया जाता रहा है. लेकिन, अब कश्मीर की पारिस्थितिक संपत्ति को संरक्षित करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल पहली बार किया जा रहा है. 

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