Jammu And Kashmir Assembly Elections: जम्मू-कश्मीर में चुनावी का बिगुल बज गया है. केंद्र शासित प्रदेश में 18 सितंबर से एक अक्टूबर के बीच तीन चरणों में विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे. वहीं, वोटों की गिनती चार अक्टूबर को की जाएगी. यहां जिस महीने और तारीख को चुनाव कराए जाएंगे और जिस तारीख को मतगणना होगी, उसका जम्मू कश्मीर के इतिहास में काफी महत्व रहा है.


जम्मू-कश्मीर में 4 अक्टूबर का दिन काफी अहम रहा है. इस दिन जब रिजल्ट आएंगे तो पाकिस्तान के मुंह पर ये तमाचे की तरह होगा. 4 अक्टूबर, 1947 को लाहौर में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अंतरिम सरकार का गठन किया गया था. 4 अक्टूबर को 1947 को लाहौर में पीओके की सरकार बनी थी. 


सितंबर और अक्टूबर 1947 में, हिंदू मिलिशिया और डोगरा सैनिकों ने जम्मू के मुसलमानों पर हमला किया था, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे. पुंछ में पाकिस्तान की सीमा पर विद्रोहियों ने 'आजाद (मुक्त) जम्मू कश्मीर' (AJK)  नामक एक स्वतंत्र राज्य बनाया. उस समय की जनगणना रिपोर्टों और बाद के शोध के अनुसार, 2 लाख से अधिक मुसलमान मारे जा चुके हैं और इतनी ही संख्या में शरणार्थी बन गए हैं.


इसे 'जम्मू नरसंहार' के नाम से भी जाना गया. उसके बाद जम्मू एक हिंदू-बहुल क्षेत्र बन गया. इस बीच, डोगराओं ने उत्तर में गिलगित बाल्टिस्तान प्रांत पर नियंत्रण खो दिया. अपने नेता शेख अब्दुल्ला के जेल में होने के कारण, एनसी निष्क्रिय बनी रही. भारतीय कांग्रेस नेताओं ने डोगराओं पर भारत में शामिल होने और अब्दुल्ला को रिहा करने का दबाव डाला.


डोगरा महाराजा स्वतंत्र रहना चाहते थे और उन्होंने पाकिस्तान के साथ एक स्टैंडस्टिल समझौते पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन भारत ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. 22 अक्टूबर, 1947 को अफरीदी और अन्य पश्तून समूहों के सदस्य सीमा पर जुटना शुरू किया और कश्मीरियों की सहायता के लिए बारामूला में प्रवेश करते हैं, लेकिन बिना किसी स्पष्ट नेतृत्व के लड़खड़ा जाते हैं.


अब्दुल्ला को आपातकालीन प्रशासक बनाया गया. 26 अक्टूबर को भारतीय सैनिक श्रीनगर पहुंचे और अगले दिन महाराजा संधि पर हस्ताक्षर किया. फिर कश्मीर को लेकर पहला भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया.


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