Jammu Kashmir Delimitation:  जम्मू और कश्मीर (Jammu Kashmir)  विधानसभा के तहत निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से तैयार करने के लिए परिसीमन आयोग, अपने प्रस्ताव का पहला मसौदा लेकर आया है, जिसमें जम्मू संभाग के लिए छह अतिरिक्त सीटों और कश्मीर घाटी के लिए एक सीट की सिफारिश की गई है. इस प्रस्ताव के बाद 90 सदस्यीय विधानसभा में जम्मू में 43 सीटें और कश्मीर में 47 सीटें हो जाएंगी. वहीं जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव भी रखा गया है.


दरअसल दिल्ली में जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) पर परिसीमन आयोग की बैठक हुई थी जिसमें केन्द्रीय मंत्री डॉक्टर जितेन्द्र सिंह (Jitendra Singh), बीजेपी सांसद जुगल किशोर, नैशनल कांफ्रेंस (National Conference) अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) और सांसद हसनैन मसूदी और अकबर लोन शामिल हुए थे. इनके अलावा आयोग की अध्यक्ष आर पी देसाई औल चुनाव आयोग के अधिकारी शामिल हुए.


सदस्यों को प्रस्ताव पर अपनी प्रतिक्रिया 31 दिसंबर तक देनी हैं


बता दें कि “प्रस्ताव को आयोग द्वारा सहयोगी सदस्यों के साथ शेयर किया गया था. सदस्यों को प्रस्ताव पर अपनी प्रतिक्रिया 31 दिसंबर तक देनी होगी."गौरतलब है कि आयोग ने जम्मू संभाग मे कठुआ, सांबा, उधमपुर, रियासी, राजोरी और किश्तवाड़ जिलों में एक-एक विधानसभा सीट और कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में एक सीट बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. परिसीमन आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त जज रंजना प्रकाश देसाई कर रही हैं, मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर चुनाव आयुक्त केके शर्मा पैनल में दो पदेन सदस्य हैं.


बता दें कि जम्म-कश्मीर में पहले 87 विधानसभा सीट थी, इनमें 4 सीटें लद्दाख में थी.चूंकि अब लद्दाख भी केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. इसलिए वहां कोई सीटें नहीं होगी. इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर में अब 83 सीटे हैं. आयोग द्वारा 7 सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है. अगर ऐसा हो जाता है तो 90 सीटें हो जाएंगी. इनमें जम्मू में 43 सीटें और कश्मीर घाटी में 47 सीटें हो जाएंगी.


र अब्दुल्ला ने जताई आपत्ति


 वहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम रहे उमर अब्दुल्ला ने इस पर सवाल खड़े करते हुए आपत्ति जताई है. उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर पोस्ट में लिखा है कि, “ यह बेहद निराशाजनक है ऐसा लगता है कि आयोग ने भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को अपनी सिफारिशों को तय करने की अनुमति दी है, न कि आंकड़ों पर, जिस पर केवल विचार किया जाना चाहिए था. वादा किए गए "वैज्ञानिक दृष्टिकोण" के विपरीत यह एक राजनीतिक दृष्टिकोण है.”






 


पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने भी जताया विरोध


वहीं जम्मू-कश्मीर के पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने भी इस पर विरोध जताया है. उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है कि, “परिसीमन आयोग की सिफारिशें पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं, वे पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं. लोकतंत्र में विश्वास रखने वालों के लिए यह कितना बड़ा झटका है.”






 जम्मू-कश्मीर में परिसीमन होने की क्या है वजह


5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द कर दिया गया था और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था. गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भी है इस कारण यहां चुनाव के लिए सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यश्रता में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. आयोग द्वारा इसी साल 5 मार्च तक अपनी रिपोर्ट दी जानी थी लेकिन करोना महामारी की वजह से ऐसा नहीं हो पाया था. जिसके बाद आयोग का कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया दया था. अब इस आयोग को 6 मार्च 2022 तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है.


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