Jammu Kashmir Assembly Election 2024: ऐसा लगता है कि जो बीजेपी हर छोटे-बड़े चुनाव को बड़ी गंभीरता से लेती है, जो बीजेपी हर छोटे-बड़े चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक देती है, जो बीजेपी किसी भी चुनाव में अपने छोटे से छोटे कार्यकर्ता और बड़े से बड़े नेता तक को मैदान में उतार देती है, जो बीजेपी चुनाव जीतने की सबसे बड़ी मशीनरी है, वही बीजेपी जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर पूरी तरह से गंभीर नहीं है. वो भी तब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का जम्मू-कश्मीर पर खास फोकस रहा है.


वो बात चाहे अनुच्छेद 370 को हटाने की हो या फिर जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन की हो या फिर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जम्मू-कश्मीर की छवि सुधारने को लेकर हो, मोदी सरकार ने इसपर खूब काम किया. लेकिन जब बारी चुनाव लड़ने की आई तो बीजेपी ने 90 में से महज 62 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे.


घाटी में कम सीटों पर लड़ रही चुनाव


तो आखिर बीजेपी के सामने ऐसी क्या मजबूरी है कि वो जम्मू रीजन की तो सभी 43 की 43 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन घाटी की 47 में महज 19 सीटों पर ही वो ताल ठोकती नज़र आ रही है. घाटी में उसने 28 सीटें खाली छोड़ दी हैं. आखिर वो कौन सी वजह है, जिसने बीजेपी को घाटी में उम्मीदवार न उतारने पर मजबूर कर दिया है?


दो क्षेत्रों में बंटा है जम्मू-कश्मीर


इस सवाल का जवाब दो चीजों को परखने पर मिल जाता है. पहला बीजेपी की राजनीति और दूसरा घाटी की डेमोग्राफी. बीजेपी पर हमेशा से एक धर्म विशेष की राजनीति करने का आरोप लगता रहा है. जबकि घाटी की डेमोग्राफी बीजेपी के इस बनाए हुए नैरेटिव से बिल्कुल अलहदा है. एक आंकड़े के मुताबिक कश्मीर घाटी में करीब 97 फीसदी जनसंख्या मुस्लिम है. जम्मू-कश्मीर दो क्षेत्रों में बंटा है. जम्मू का क्षेत्र और घाटी का क्षेत्र. 


घाटी में वोट हासिल करना बेहद मुश्किल 
वहीं हिंदू, सिख और बौद्ध आबादी मिलाकर भी 3 फीसदी से कम है. ऐसे में बीजेपी को अपने नैरेटिव के जरिए घाटी में वोट हासिल करना बेहद मुश्किल है और बीजेपी ये बात अच्छे से जानती है. तभी तो हाल में बीते लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने घाटी की तीन लोकसभा सीटों में से एक पर भी अपने उम्मीदवार नहीं उतारे. जबकि जम्मू बीजेपी की राजनीति के लिहाज से मुफीद है, तो वहां बीजेपी ने न सिर्फ दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे बल्कि जीत भी दर्ज की.


इसलिए बीजेपी का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ जम्मू पर है, जहां विधानसभा की कुल 43 सीटें हैं और जम्मू-कश्मीर में किसी भी पार्टी को सत्ता हासिल करने के लिए 46 सीटों की जरूरत है. लिहाजा बीजेपी ने जम्मू पर खुद का ध्यान फोकस कर रखा है, जबकि घाटी में बीजेपी निर्दलीयों और पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस के बागियों के सहारे है, जहां इन पार्टियों का अच्छा खासा वोट है. 


इंजीनियर राशिद को कह रहे हैं बीजेपी की बी टीम 
विपक्ष और खास तौर से फारूक अब्दुल्ला-महबूबा मुफ्ती बार-बार ये कह रहे हैं कि उनके बागियों को बीजेपी ही शह दे रही है और बीजेपी चाहती है कि अगला मुख्यमंत्री जम्मू से हो और हिंदू हो. विपक्ष के इस दावे को बल मिलता है. अनंतनाग से बीजेपी उम्मीदवार रफीक वानी के उस बयान से, जिसमें उन्होंने घाटी के मज़बूत निर्दलीय नेताओं जैसे इंजीनियर राशिद, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी और गुलाम नबी आजाद को अपना बताया था. इसलिए इंजीनियर राशिद की जमानत से फारूक अब्दुल्ला और महबूबा दोनों ही खफा हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि इंजीनियर राशिद जो भी वोट हासिल करेंगे वो या तो नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस के होंगे या फिर पीडीपी के. तो ये दोनों नेता इंजीनियर राशिद को बीजेपी की बी टीम कह रहे हैं.


BJP ने 28 सीटें छोड़ दीं खाली 
क्या 28 सीटें छोड़ने की वजह से बीजेपी के लिए भविष्य की राह मुश्किल नहीं हो जाएगी. क्योंकि यही तो वक्त था जब बीजेपी अपने काम गिनाकर घाटी में भी मज़बूत हो सकती थी. बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता भी यही चाहते थे कि जीत हो या हार, पार्टी को उम्मीदवार उतारने चाहिए, तभी तो घाटी में भी जनाधार बढ़ेगा. इन कार्यकर्ताओं की बात सुनते हुए ही चुनाव की घोषणा से पहले बीजेपी और खास तौर से खुद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी 90 की 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. फिर चुनाव की घोषणा होने के साथ ही बीजेपी को ऐसा क्या हो गया कि उसने 28 सीटें खाली छोड़ दीं और उन पर उम्मीदवार उतारने की भी जहमत नहीं उठाई. इसका जवाब 2014 के चुनावी नतीजों और उसके बाद बनी सरकार में खोजा जा सकता है.


बीजेपी को अपनी सीटें बढ़ने की उम्मीद
2014 में जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए थे तो बीजेपी ने सिर्फ जम्मू रीजन में जीत दर्ज की थी और वहां से उसे 25 सीटें मिली थीं. तो उसने मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ मिलकर सरकार बनाई और सरकार के मुखिया बने मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनके निधन के बाद महबूबा मुफ्ती. अब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने और हालात बदलने के बाद बीजेपी को अपनी सीटें बढ़ने की उम्मीद है और ये उम्मीद भी जम्मू रीजन में ही है. लिहाजा बीजेपी की कोशिश है कि उसे जम्मू की 43 में से 32-35 सीटें भी आ जाएं तो वो घाटी के निर्दलियों के सहारे सरकार बना लेगी. एक बार जब सरकार बन जाएगी तो पार्टी जम्मू से आगे बढ़कर घाटी में भी अपना जनाधार बना ही लेगी.


क्योंकि अनुच्छेद 370 के खात्मे से लेकर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे तक की जो बात है, वो भले ही पूरे देश और पूरी दुनिया में पहुंच गई है, लेकिन घाटी में अब भी इस फैसले को लेकर स्थानीय लोग सहज नहीं हैं. जब तक घाटी के लोगों में अनुच्छेद 370 के खात्मे को लेकर सहजता नहीं आएगी, वो बीजेपी को वोट करेंगे इसकी उम्मीद न के बराबर है और बीजेपी ये बात बखूबी जानती है. लिहाजा देखने में ये भले ही लग रहा है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर का चुनाव पूरी ताकत से नहीं लड़ रही है या फिर इस चुनाव में बीजेपी की दिलचस्पी कम है, लेकिन असल में ऐसा है नहीं. जम्मू-कश्मीर के लोगों में इस चुनाव को लेकर कितनी दिलचस्पी है वो पहले फेज के वोटिंग प्रतिशत ने बता ही दी है.


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