राशिद इंजीनियर के भाई की जीत हुई या हार? जानें अलगाववादी नेताओं का कैसा रहा रिजल्ट
Jammu Kashmir Election Result: जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में इंजीनियर रशीद की पार्टी अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) के अलावा जमात-ए-इस्लामी भी कोई खास असर नहीं डाल सकी.
Jammu Kashmir Election Result 2024: जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी 90 सीटों पर मंगलवार (8 अक्टूबर) को नतीजे घोषित कर दिए गए. यहां नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को बहुमत हासिल हुई. इस बीच यहां विधानसभा चुनाव के नतीजों में अलगाववादी उम्मीदवारों को लोगों ने नकार दिया है.
इंजीनियर रशीद ने जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद विधानसभा चुनाव को लेक प्रचार करते हुए पार्टी के लिए मेहनत की थी. उनके प्रयासों के बावजूद उनकी पार्टी अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) चुनाव में कोई खास प्रभाव नहीं डाल सकी. जमात-ए-इस्लामी भी इस चुनाव में कोई खास असर नहीं डाल पाई.
राशिद इंजीनियर के भाई की जीत
कुलगाम से जमात-ए-इस्लामी के ‘प्रॉक्सी’ उम्मीदवार सयार अहमद रेशी और लंगेट से चुनाव लड़ने वाले शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद के भाई खुर्शीद अहमद शेख का प्रदर्शन कुछ अलग रहा. कुलगाम में रेशी को हार का सामना करना पड़ा, वहीं खुर्शीद अहमद शेख ने लंगेट से जीत हासिल की. उन्हें कुल 25 हजार 984 वोट मिले. उन्होंने 1602 वोटों के अंतर से चुनाव में जीत हासिल की.
#WATCH | Handwara, J&K: Winning Awami Ittehad Party (AIP) candidate from Langate assembly seat, Khurshid Ahmad Sheikh says, "... We thank the Election Commission of India for organising fair elections... But we will discuss why we lost 2000-3000 votes..." pic.twitter.com/UY4M3wz6HN
— ANI (@ANI) October 8, 2024
खुर्शीद अहमद शेख ने क्या कहा?
लंगेट विधानसभा सीट से विजयी निर्दलीय उम्मीदवार खुर्शीद अहमद शेख ने कहा, "हम निष्पक्ष चुनाव आयोजित करने के लिए भारत के चुनाव आयोग को धन्यवाद देते हैं. लेकिन कुछ लोगों की वजह से हमें 2000 से 3000 वोटों को नुकसान हुआ. मैं LG, आईजी और डीआईजी साहब से अपील करते हैं कि दूसरी पार्टी के MLA ने किस तरह से गुंडागर्दी की. हम लोगों का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्होंने हमें वोट किया और कामयाबी दिलाई. हमें अच्छा वोट शेयर मिला.
स्टेटहुड के सवाल पर उन्होंने कहा, ''आपने खुद देखा होगा कि इंजीनियर रशीद साहब ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कहा कि आप तबतक हुकूमत न बनाइए जब तक स्टेटहुड वापस न आए. 370 को लेकर पार्टी ने एक मैनिफेस्टो जारी किया है.''
अलगाववादी नेताओं का कैसा रहा रिजल्ट?
इस चुनाव में अलगाववादी उम्मीदवारों का प्रदर्शन खराब ही रहा. समूहों से जुड़े अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई, जो वोटर्स की साफ तौर से अस्वीकृति को दर्शाता है. अफजल गुरु के भाई ऐजाज अहमद गुरु को सोपोर विधानसभा सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा, उन्हें मात्र 129 वोट मिले जो ‘इनमें से कोई नहीं’ (नोटा) विकल्प के लिए डाले गए 341 वोटों से काफी कम है.
इंजीनियर रशीद की एआईपी ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. हालांकि, एआईपी प्रवक्ता फिरदौस बाबा और कारोबारी शेख आशिक हुसैन सहित प्रमुख चेहरे चुनावी मुकाबले में नाकाम रहे और कई की जमानत भी जब्त हो गई. जमात-ए-इस्लामी ने चार उम्मीदवार उतारे थे और चार अन्य का समर्थन किया था, लेकिन रेशी के अलावा, सभी न्यूनतम समर्थन भी हासिल करने में असफल रहे.
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक निराशाजनक नतीजों के बावजूद, आशावादी दृष्टिकोण अपनाए रेशी ने कहा, ‘‘यह प्रक्रिया की शुरुआत है. हमारे पास प्रचार के लिए सीमित समय था, लेकिन मुझे विश्वास है कि हम भविष्य में बदलाव ला सकते हैं.’’ इसी तरह, पुलवामा से जमात के एक अन्य उम्मीदवार तलत मजीद ने अपनी हार का कारण जमात कार्यकर्ताओं से समर्थन की कमी को बताया. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ उनके जुड़ाव की धारणा ने उनकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है.
मजीद ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि जमात पर लगा प्रतिबंध हटाया जाए ताकि हम उस गौरव को पुनः प्राप्त कर सकें जो इसके संस्थापकों ने लोगों की मदद करके हासिल किया था.’’ व्यापारी और इंजीनियर रशीद के करीबी सहयोगी शेख आशिक हुसैन केवल 963 वोट प्राप्त करने में सफल रहे, जबकि नोटा को 1,713 वोट मिले.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए मिले भारी समर्थन को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह महज एक लहर नहीं है. लोगों ने निर्णायक रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए मतदान किया है. अब हम यह देखने के लिए इंतजार कर रहे हैं कि वे अपने जनादेश के बदले में क्या देते हैं.’’
एक अन्य चेहरा, ‘आजादी चाचा’ के नाम से चर्चित सरजन अहमद वागय को भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार के खिलाफ बड़ी हार का सामना करना पड़ा. वागय बीरवाह में अपनी जमानत बचाने में बमुश्किल कामयाब रहे. विश्लेषकों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर का चुनाव परिणाम राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव और अलगाववादी राजनीति को खारिज किए जाने का एक तरह से संकेत है.
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