जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव: गुलाम नबी आजाद बोले, 'इसकी मैं पुरजोर मुखालफत करता हूं कि...'
Jammu Kashmir Election 2024: जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव कराए जाने का विरोध करते हुए गुलाम नबी आजाद ने कहा कि चुनाव न होने के कारण राज्य पीछे चला गया है.
Jammu Kashmir Assembly Election 2024: जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने कहा कि सत्ता में बैठे नेताओं को केवल शहर में चहल-पहल दिखती है, जबकि दूरदराज के इलाके विकास से दूर हैं. आजाद ने अपने कार्यकाल को याद करते हुए कहा कि उनके दौर में जम्मू-कश्मीर में कई अस्पताल और स्कूल बनाए गए, लेकिन अब अस्पतालों में डॉक्टर नहीं है और स्कूलों में शिक्षकों की कमी है.
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में आजाद ने कहा, ''10 साल के बाद चुनाव हो रहे हैं. इसकी मैं पुरजोर मुखालफत करता हूं. अभी तक दो चुनाव होने चाहिए थे. 2019 में और आज, संसद के तीन चुनाव हुए और हम दूसरी ही लड़ रहे हैं. चुनाव न होने के कारण रियासत बहुत पीछे चला गया. शायद शासीय नेताओं को शहरों में चहल-पहल दिखती होगी, लेकिन हमारे जिले डोडा में किश्तवाड़, रामबन, कठुआ, सांबा और कश्मीर में दूरदराज के कुपवाड़ा, बारामुला, अनंतनाग, राजौरी पुंछ ये बहुत पीछे चले गए.''
गुलाम नबी आजाद ने आगे कहा, ''विकास के लिहाज से जो मैंने स्कूल और अस्पताल सैंकड़ों के तादात में बनाए थे. प्राइमरी हेल्थ सेंटर, सब डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल स्कूल हाई स्कूल सीनियर सेकेंड्री स्कूल बने थे. सबमें टीचर और डॉक्टर भी थे. 15-17 साल पहले मैंने छोड़ा था. हाई स्कूल में 20 टीचर होते थे आज एक टीचर होते हैं. 15 की जगह अस्पताल में 2 डॉक्टर हैं. तंगधार और गुरेज में तो एक भी डॉक्टर नहीं है. खासकर हमारी बेटियां हर रोज मर रही हैं क्योंकि वहां डॉक्टर नहीं है. छह महीने रोड ब्लॉक रहता है.''
#WATCH | Doda: Chairman of the Democratic Progressive Azad Party, Ghulam Nabi Azad says, "I strongly oppose the fact that elections were held after ten years. Till now there should have been two elections, one in 2019 and one now. Three elections were held for the Parliament and… pic.twitter.com/qV5G5riASc
— ANI (@ANI) September 16, 2024
गांव की समस्या पर गुलाम नबी आजाद ने दिलाया ध्यान
आजाद ने कहा , ''जब मैं सीएम था तो शहर में तो सामान बाजार में मिल जाते, लेकिन गांव में क्या होगा. हफ्ते भर से केवल लोग बर्फ से निकालकर मूलियां खा रहे थे. हमने छह महीने अनाज मुफ्त कर दिया. फिर बर्फ के कारण एक गांव से दूसरे गांव जाना मुश्किल हो जाता था तो बर्फ उठाने वाले को पैसा देते थे. यह शायद पहली बार हुआ था कि बर्फ उठाने वाले को पैसा देते थे. ये हमारे शहर के नेताओं की समझ से बाहर है.''
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