Jammu Kashmir News: जम्मू कश्मीर सरकार और राजभवन में तनानती शुरू हो गई है. मामला दो यूनिवर्सिटी के कुलपतियों का कार्यकाल विस्तार का है. कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को दरकिनार कर दो कुलपतियों का कार्यकाल बढ़ाया गया. सूत्रों के अनुसार, एलजी मनोज सिन्हा ने 13 दिसंबर, 2024 को दो अलग-अलग आदेशों के माध्यम से एकतरफा कार्यकाल बढ़ाया, जो निर्वाचित सरकार और राजभवन के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष को उजागर करता है.
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एसकेयूएएसटी) के कुलपति प्रोफेसर नजीर अहमद गनई का कार्यकाल 16 दिसंबर, 2024 से दो साल के लिए बढ़ा दिया गया है, जबकि जम्मू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर उमेश राय वर्तमान कार्यकाल की समाप्ति पर 5 अप्रैल, 2025 से तीन अतिरिक्त वर्षों के लिए पद पर बने रहेंगे. दोनों विस्तार इन संस्थानों को नियंत्रित करने वाले संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों के तहत दिए गए थे, जो उपराज्यपाल को विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों पर महत्वपूर्ण अधिकार देते हैं. राजभवन के कदम की उमर अब्दुल्ला सरकार ने तीखी आलोचना की है.
राजभवन और सरकार के बीच बढ़ा टकराव
कहा गया कि मुख्यमंत्री से परामर्श नहीं किया गया. हालांकि मुख्यमंत्री इन विश्वविद्यालयों के लिए प्रो-कुलपति की वैधानिक भूमिका निभा रहे हैं. मुख्यमंत्री कार्यालय कथित तौर पर प्रोफेसर गनई के कार्यकाल विस्तार को लेकर विशेष रूप से चिंतित है, क्योंकि उनके खिलाफ सामान्य प्रशासन विभाग में शिकायतें लंबित हैं. विवाद ने अक्टूबर से सत्ता में आई नवनिर्वाचित सरकार और राजभवन के बीच तनाव को और गहरा कर दिया है. अधिकारियों ने विस्तार को प्रोटोकॉल और लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन बताया है.
कुलपतियों के कार्यकाल विस्तार का मामला
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत उपराज्यपाल को व्यापक अधिकार हैं, जो अक्सर निर्वाचित सरकार पर हावी हो जाते हैं. इससे मुख्यमंत्री कार्यालय के पास सीमित अधिकार रह गए हैं, खासकर उन मामलों में जहां पुनर्गठन अधिनियम उपराज्यपाल को अपने विवेक से कार्य करने का अधिकार देता है. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में सुव्यवस्थित शासन को बढ़ावा देने के लिए प्रशासनिक और शैक्षणिक पदों पर पुनर्नियुक्ति, विस्तार और संलग्नक पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया था.
3 दिसंबर को आयोजित एक बैठक में उन्होंने विस्तार की संस्कृति की आलोचना की थी और इस तरह की प्रथाओं को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया था. हालांकि, उपराज्यपाल के ताजा आदेश इस निर्देश का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं, जिससे दोनों कार्यालयों के बीच संबंध और खराब हो गए हैं.
इससे पहले, एडवोकेट जनरल डीसी रैना के पद पर बने रहने, वरिष्ठ नौकरशाहों के तबादले और बिना जांच के सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने के लिए अनुच्छेद 311 के इस्तेमाल को लेकर विवाद उठे थे. अब्दुल्ला सरकार को सत्ता में आए हुए दो महीने पूरे होने वाले हैं. ऐसे में राजभवन के साथ बढ़ते टकराव ने जम्मू-कश्मीर में शासन के ढांचे के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
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