J&K News: कड़ाके की ठंड के बीच कश्मीर के गांदरबल जिले के शादीपोर में 3000 साल पुराने प्रयाग राज मंदिर के संगम पर भक्त पूजा अर्चना और पिंडदान के लिए एकत्र हुए हैं. प्राचीन प्रयागराज मंदिर के बारे में मान्यता है की यहां पर अस्थियों का विसर्जन करना हरिद्वार के बराबर है. देशभर से श्रद्धालु अपने पूर्वजों के पिंडदान के लिए यहां आते हैं. अगले 11 दिनों तक यहां पर हजारो की संख्या में भक्त पहुंचेंगे. ख़ास तौर पर दक्षिण भारत के राज्यों से जिन के लिए इस मंदिर की ख़ास मान्यता. वहीं कश्मीरी पंडितो के लिए भी यह स्थान काफी महत्व रखता है.


दक्षिण भारतीय ब्राह्मण यहां अस्थियां विसर्जित करना काशी के बराबर मानते हैं


आंध्र प्रदेश के तिरुपति से  तीर्थ यात्रा के लिए यहां आई एक भक्त के लिए यहां आना काफी महत्वपूर्ण है. दरअसल उनके परिवार के दो सदस्यों की मृत्यु पिछले दस सालो में हुई थी ऐसे में उनकी अस्थियों को संगम में विसर्जित करने के लिए उनका इंतजार अब जाकर समाप्त हुआ है. वह कहती हैं कि,"मैं ने अपनी दादी और दादा की अस्थिया आज विसर्जित कर दी! दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों के लिए यह काशी में विसर्जन के बराबर है."


मान्यता है कि मृत परिजनों की अस्थियां यहां विसृजित करने से उन्हें स्वर्ग मिलता है


श्रीनगर से 25 किलोमीटर दूर गांदरबल के शादिपोर में मशहूर इस तीन हज़ार साल पुराने प्रयाग राज मंदिर की स्थापना सिंधु और वितस्ता (जेहलम) नदी के संगम पर हुई है. हरिद्वार में गंगा, जमुना और सरस्वती के संगम की ही तरह कश्मीर के प्रयाग संगम के बारे में यह मान्यता है की यहां पर परिजनों की अस्थियों के विसर्जन करने से उनको स्वर्ग मिलता है.


ठंड के बावजूद आज 7 हजार भक्तों ने शादिपोरा में प्रवित्र स्नान किया


पिछले दो दिनों के दौरान करीब 12000 श्रद्धालु उत्सव में शामिल हो चुके हैं. ठंड के मौसम के बावजूद कल 4812 भक्तों ने शादिपोरा में पवित्र स्नान किया. कुछ एक घंटे तक पानी में रहे. वहीं आज, 7000 भक्तों ने डुबकी लगाई और मृतक के लिए प्रार्थना की. यहां आन वाले ज्यादातर श्रद्धालु दक्षिण भारत के तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व  मुंबई आदि स्थानों से हैं.


 
मंदिर के साथ लगे चिनार के पेड़ की भी बहुत मान्यता है


शादिपुर के संगम पर बने प्रयाग राज मंदिर के साथ यहां लहे चिनार का पेड़ की भी अपनी मान्यता है और इस चिनार को गुप्त सरस्वती नदी का रूप माना गया है. कश्मीर के इस संगम के बारे में निलमत पुराण में भी वर्णन है. और पुराने ज़माने से ही यहाँ पर लोग अपने परिजनों की अस्थिया विसर्जन के लिए लाते है, खास तौर पर कश्मीरी पंडित जिन के लिए ये जगह प्रयागराज है.   


जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की अस्थियां भी यहीं विसर्जित की गई थी


गौरतलब है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अस्थियां भी यहाँ विसर्जन के लिए लायी गयी क्यूंकि दोनों के पूर्वज कश्मीरी मूल के हिन्दू थे.  पिछली बार यह पुष्कर मेला 2009 में आयोजित किया गया था और इस से पहले करीब 24 साल के अंतराल के बाद 1998 में मनाया गया था. कश्मीर की पुष्कर समिति (पीसीके) के अध्यक्ष भरत रैना बताते हैं कि "पुष्कर हर साल देश के विभिन्न स्थानों जैसे हरिद्वार, आदि में मनाया जाता है. जहां भी नदियों का 'संगम' होता है. कश्मीर में, यह आखिरी बार 2009 में मनाया गया था जब लगभग 35 हजार भक्तों ने भाग लिया था. बाद में, यह 12 साल बाद फिर से कश्मीर में आयोजित किया जाएगा. ”


राज्य पर्यटन विभाग और कुछ स्थानीय हिन्दू संगठनों ने इस पुरानी परंपरा को फिर से जीवित करने के लिए विशेष इंतिज़ाम भी किये है. हालांकि अभी यहां पर भक्तों के लिए पूरे इंतजाम नहीं हैं पर आस्था के सामने सारी कमियां भूला ही दी जाती हैं.


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