Salaam Tradition on Mahashivratri in Jammu-Kashmir: 90 के दशक में कश्मीर घाटी (Kashmir Valley) से लाखों कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) का पलायन हुआ. उनकी कश्मीर घाटी में वापसी के लिए आज भी मांगें उठती रहती हैं. इस बीच घाटी से लाखों कश्मीरी पंडितों के पलायन और समाज में दूरी आने के बाद अब भी 'सलाम' की परंपरा कायम है. यही कारण है कि अब भी महाशिवरात्रि पर कश्मीर घाटी में मुस्लिम परिवारों की ओर से 157 स्थानों और माइग्रेंट कॉलोनी में रहने वाले अपने पड़ोसी कश्मीरी पंडितों को सलाम की परंपरा के तहत मुबारकबाद देते हैं.


इस दौरान दोनों खुले दिल से एक-दूसरे से मिलते हैं. कश्मीर घाटी में इस परंपरा को महाशिवरात्रि के एक दिन बाद मनाया जाता है. यानी सलाम की परंपरा को आज बुधवार को मनाया गया. इस दिन मुस्लिम समाज के लोग कश्मीरी पंडितों के घर पहुंचकर मुबारकबाद देते हैं और उनके यहां खाना खाते हैं. कश्मीरी पंडितों का कहना है कि घाटी में सब लोग मिल-जुलकर भाईचारे के साथ रहते थे और महाशिवरात्रि का जश्न कई दिनों तक चलता था. इस दौरान मुस्लिम भाई भी इसमें सहयोग करते थे. विस्थापन के बाद इसमें कमी आई है, लेकिन अब भी यह परंपरा कायम है.


"सलाम की परंपरा को नहीं लगा आतंकवाद का ग्रहण"


मुस्लिमों के साथ ही कश्मीरी पंडित समुदाय को भी इस दिन का इंतजार रहता है. श्रीनगर के डाउनटाउन में रहने वाले कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के संजय टिक्कू का कहना है कि आतंकवाद के दौर में भी उन्होंने विस्थापन नहीं किया. उनका कहना है कि सलाम की परंपरा को आतंकवाद का ग्रहण नहीं लगा है. मुस्लिम परिवार अब भी पूरे उत्साह के साथ कश्मीरी पंडितों के घरों पर आकर उनसे शिवरात्रि पूजा के विषय में पूछताछ करते हैं. मुबारकबाद देते हैं और प्रसाद भी ग्रहण करते हैं. उनका कहना है कि कश्मीरी पंडितों को पड़ोसी मुस्लिमों के आने का इंतजार रहता है. इससे भाईचारा और मजबूत होता है.


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