कश्मीरी पंडित महिलाओं से नहीं छीना जा सकता प्रवासी का दर्जा, HC की अहम टिप्पणी
Jammu Kashmir News: हाई कोर्ट ने कश्मीरी पंडित महिलाओं को लेकर अहम टिप्पणी की है. अदालत ने दो महिलाओं द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की.
Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने दूरगामी परिणामों वाले एक फैसले में कहा है कि कश्मीरी पंडित महिलाएं गैर-प्रवासियों से शादी करने पर भी प्रवासी का दर्जा बरकरार रखेंगी. प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत चयनित दो महिलाओं के पक्ष में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के आदेश को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की गई है.
सीमा कौल और विशालनी कौल नाम की दो महिलाओं ने 2018 में हाई कोर्ट का रुख किया था, जब आपदा प्रबंधन विभाग में कानूनी सहायक के पद पर उनका अनंतिम चयन इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि गैर-प्रवासी व्यक्तियों से शादी करने के कारण उन्होंने अपना प्रवासी दर्जा खो दिया है. दोनों महिलाओं को 1 दिसंबर, 2017 को कश्मीरी प्रवासियों के लिए पीएम पैकेज के तहत पुनर्निर्माण के तहत नियुक्त किया गया था.
क्या दी दलीलें?
अदालत के समक्ष एक सार्वजनिक रूप से महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या एक महिला जिसे उसके और उसके परिवार द्वारा झेली गई पीड़ा के कारण प्रवासी का दर्जा दिया गया है, जिसके कारण उन्हें कश्मीर घाटी में अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. क्या वह केवल इस तथ्य के कारण उक्त दर्जा खो सकती है कि उसने एक गैर-प्रवासी से विवाह किया था?
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और मोहम्मद यूसुफ वानी की खंडपीठ ने पिछले महीने सात पन्नों के आदेश में कहा, "यहां प्रतिवादी महिलाएं हैं और उन्हें बिना किसी गलती के कश्मीर घाटी में अपने मूल निवास स्थान को छोड़ना पड़ा, उनसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे केवल प्रवासी के रूप में कश्मीर घाटी में नौकरी पाने के लिए अविवाहित रहें." यह भी मानना उचित है कि पलायन के कारण, हर प्रवासी महिला को ऐसा जीवनसाथी नहीं मिल पाएगा जो खुद प्रवासी हो.
अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में, यह मानना कि महिला केवल इसलिए प्रवासी के रूप में अपनी स्थिति खो देगी क्योंकि उसे परिवार बनाने की स्वाभाविक इच्छा के कारण मौजूदा परिस्थितियों के कारण गैर-प्रवासी से विवाह करना पड़ा, घोर "भेदभावपूर्ण और न्याय की अवधारणा के विरुद्ध होगा". कोर्ट ने ये भी कहा, "यह भेदभाव और भी निर्लज्ज हो जाता है जब एक पुरुष प्रवासी इस तथ्य के बावजूद प्रवासी बना रहता है कि उसने गैर-प्रवासी से विवाह किया है. ऐसी स्थिति केवल पितृसत्ता के कारण उत्पन्न हुई है मानव जाति में यह सर्वोपरि है."
'भेदभाव बर्दाश्त नहीं'
कोर्ट ने 16 मई के कैट आदेश के खिलाफ संघ राज्य क्षेत्र द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हालांकि, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के अंतर्गत रोजगार से संबंधित मामलों में इस तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.
2008 में घोषित प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत चयन के बाद लगभग 4,000 कश्मीरी प्रवासी पंडित कश्मीर में विभिन्न विभागों में काम कर रहे हैं, जिसके दो प्रमुख घटक हैं. एक समुदाय के युवाओं के लिए 6,000 नौकरियों के प्रावधान से संबंधित है और दूसरा भर्ती किए गए कर्मचारियों के लिए 6,000 आवास इकाइयों के प्रावधान से संबंधित है.
कोर्ट ने न्यायाधिकरण के आदेश को "न्यायसंगत और उचित" बताते हुए कहा कि अपीलकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत यह तर्क कि इस तथ्य का खुलासा नहीं किया गया कि प्रतिवादी विवाहित थे, कोई महत्व नहीं रखता.
इसलिए खारिज किया तर्क
पीठ ने कहा, "निस्संदेह, विज्ञापन नोटिस तथ्यों/वैवाहिक स्थिति के गैर-प्रकटीकरण या अनुचित प्रकटीकरण के कारण उम्मीदवारी को रद्द करने का प्रावधान नहीं करता है। इसके अलावा, अपीलकर्ता यह दिखाने में सक्षम नहीं हैं कि इस तरह के गैर-प्रकटीकरण के कारण जो लोग अन्यथा चयनित नहीं हो सके, उनके साथ किस तरह से अन्याय हुआ है. इसलिए, यह तर्क भी खारिज किया जाता है."
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