Article 370: पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को भगवान राम और उनके रघुवंश का जिक्र करते हुए कहा कि 1947 में भारतीयों द्वारा जम्मू कश्मीर के मूल निवासियों से किया गया वादा सुप्रीम कोर्ट में परीक्षण से गुजर रहा है.


जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने शीर्ष अदालत के लॉन में मीडिया से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट जिस मामले की सुनवाई कर रहा है वह भारत के लोगों से संबंधित है. उन्होंने कहा, ‘‘इस देश को बहुसंख्यकवाद पर नहीं चलाया जा सकता. यह देश संविधान के अनुसार चलेगा.’’ उन्होंने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का मुद्दा भारत के लोगों और 1947 में कश्मीर के मूल निवासियों से किए गए वादे से संबंधित है.


मुफ्ती ने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि देश के संस्थानों का क्या हुआ है. सौभाग्य से हमें अभी भी इस देश के सुप्रीम कोर्ट पर कुछ भरोसा है. मैं उनसे अपील करना चाहती हूं कि देश रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए के सिद्धांत पर विश्वास करता है.’’


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मुफ्ती ने कहा कि वह संतुष्ट हैं कि...
पीडीपी नेता ने कहा, ‘‘मैं उन लोगों के बारे में बात नहीं कर रही हूं जो ‘जय श्रीराम’ के नाम पर हत्या करते हैं और ‘जय श्रीराम’ के नाम पर पीटकर मारने का काम करते हैं. मैं उन बहुसंख्यक समुदाय के लोगों के बारे में बात कर रही हूं जो ‘रामचंद्र जी’, उनके वचन ‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए’ में विश्वास करते हैं. इसलिए मुझे लगता है कि वचन आज सुप्रीम कोर्ट में परीक्षण का सामना कर रहा है.’’


मुफ्ती ने कहा कि यह शीर्ष अदालत और भारतीय नागरिकों को देखना है कि देश संविधान के अनुसार चलेगा या ‘‘किसी विशेष पार्टी के विभाजनकारी एजेंडे के अनुसार.’’


मुफ्ती ने कहा कि वह संतुष्ट हैं कि अदालत ने केंद्र की इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर में स्थिति में सुधार हुआ है. मुफ्ती ने दावा किया कि पिछले पांच वर्षों में कई कश्मीरी पंडित घाटी छोड़ने को मजबूर हुए.


मुफ्ती ने कहा कि केंद्र सरकार ने दावा किया है कि उसने कश्मीर में आतंकवाद खत्म कर दिया है. उन्होंने कहा कि यह सेना द्वारा किया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि आतंकवाद खत्म करने के नाम पर केंद्र ने जम्मू कश्मीर को बर्बाद कर दिया है.


जब 1947 में पाकिस्तान द्वारा जम्मू कश्मीर पर हमला किया गया था, तब वहां के निहत्थे मूल निवासियों ने भारतीय सेना की मदद से हमलावरों से मुकाबला किया था.


मुफ्ती शीर्ष अदालत परिसर तब पहुंचीं, जब प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ पीडीपी की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन की दलीलें सुन रही थी.


जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म
दो अगस्त को, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला शीर्ष अदालत आए थे और कहा था कि उन्हें किसी भी अन्य भारतीय नागरिक की तरह इससे न्याय की उम्मीद है. शीर्ष अदालत ने उस दिन तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी.


केंद्र ने पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की अधिसूचना जारी की थी, जिससे पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म हो गया था.


अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने तथा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया था. इन याचिकाओं में पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किए जाने को चुनौती दी गई है.