Jammu Kashmir Assembly Election 2024: जो कभी अलगाववाद की बात करते थे अब वे भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा बनते दिख रहे हैं. अगर ये जीतकर आ गए तो उन्हें भारत के संविधान की भी शपथ लेनी होगी. तो क्या वर्षों से अलगाववाद की मार झेलने वाला कश्मीर वास्तव में बदल रहा है? जिस तरह से अलगाववादी नेता चुनाव में उतर रहे हैं यह इशारा तो उसी ओर कर रहा है.
साल 1987 के बाद जमात के लोगों ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था, लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में अलगाववादी नेताओं को मौजूदगी दिख रही है. साउथ कश्मीर जमात का गढ़ माना जाता है. अभी दो दिन पहले इन्होंने रैली साउथ कश्मीर के कुलगाम में की थी. जमात-ए-इस्लामी जम्मू और कश्मीर पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा रहा रखा है, लेकिन इसके नेता निर्दलीय मैदान में हैं.
घाटी की तकरीबन 14 सीटों पर जमात के नेता चुनाव लड़ रहे हैं. जमात के पूर्व प्रमुख के बेटे डॉ. कलीमउल्ला कुपवाड़ा से चुनाव लड़ रहे हैं. डॉ. तलत पुलवामा से चुनाव लड़ रहे हैं. एक अन्य सदस्य कुलगाम से चुनाव लड़ रहे हैं. ये वह हैं जिनके घर पर एनआईए की रेड भी पड़ चुकी है.
जमात पर प्रतिबंध, इसके नेता चुनावी मैदान में
बता दें कि भारत सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू और कशमीर पर प्रतिबंध लगाया हुआ है. सरकार ने प्रतिबंध लगाते हुए कहा था कि ये अलगाववाद को बढ़ावा देती है और अब इसके नेता भारत के लोकतांत्रिक पर्व का हिस्सा बन रहे हैं.
जमात पर दर्ज हैं 47 केस
भारत सरकार ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू और कश्मीर के खिलाफ दर्ज 47 मामलों की एक लिस्ट जारी की थी जिसमें हिंसक और अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए धन इकट्ठा करने की बात कही गई थी. एनआईए के मुतबिक, ये राजनीतिक दल अपने फंड का इस्तेमाल हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी समूहों के गुर्गों द्वारा सार्वजनिक अशांति भड़काने और सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए करते थे.
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