Jharkhand की गंभीर समस्या है Anemia, जानें क्या कर रही है सरकार और क्या कहते हैं आंकड़े
Ranchi News: झारखंड में 6 महीने से लेकर 59 महीने तक की आयुवर्ग के 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. 65.3 प्रतिशत महिलाएं और 30 प्रतिशत पुरुष भी खून की कमी वाली इस बीमारी की चपेट में हैं.
Anemia Problem in Jharkhand: झारखंड (Jharkhand) देश के उन 3 टॉप राज्यों में शुमार है जहां की धरती पर आयरन के सबसे बड़े भंडार हैं, लेकिन हैरत की बात ये है कि, 'आयरन' की कमी के चलते होने वाली बीमारी एनीमिया (Anemia) ने यहां बड़ी आबादी को अपनी गिरफ्त में ले रखा है. एनएफएचएस (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे)-5 के आए नतीजे बताते हैं कि झारखंड में 6 महीने से लेकर 59 महीने (यानी पांच वर्ष से कम) तक की आयुवर्ग के 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. राज्य की 65.3 प्रतिशत महिलाएं और 30 प्रतिशत पुरुष भी खून की कमी वाली इस बीमारी की चपेट में हैं.
एनीमिया झारखंड की गंभीर समस्या है
झारखंड के 5 जिलों लातेहार, पश्चिम सिंहभूम, चतरा, सिमडेगा और साहिबगंज में कुपोषण और एनीमिया के खिलाफ राज्य सरकार ने 'समर' नाम का एक हजार दिनों का विशेष अभियान शुरू किया है. इसके तहत डोर टू डोर सर्वे कर कुपोषित एवं एनीमिया से पीड़ित महिलाओं-बच्चों को चिन्हित कर उन्हें उचित पोषण एवं उपचार उपलब्ध कराया जाएगा. अभियान के बाद कुपोषण मुक्त होने वाली पंचायतों को एक-एक लाख रुपए दिए जाएंगे. कुपोषण और एनीमिया झारखंड की गंभीर समस्या है.
नहीं मिल पाता है पूरक आहार
विशेषज्ञ बताते हैं कि झारखंड के शिशुओं में कुपोषण की सबसे बड़ी वजह उन्हें पूरक आहार नहीं मिलना है. जन्म के 6 महीने की आयु पूरी करने पर ये बच्चों को मिलना चाहिए, लेकिन राज्य में केवल 7 प्रतिशत बच्चों को यानी 10 में सिर्फ एक बच्चे को ही आयु के अनुपात में समुचित आहार मिल पाता है.
एनीमिया के मामले बढ़े हैं
एनीमिया के मामले में जिन जिलों की स्थिति सबसे खराब आंकी गई, उनमें देवघर सबसे ऊपर है. यहां एनीमिक महिलाओं का प्रतिशत 55.3 से बढ़कर 70.1 पहुंच गया. इसी तरह दुमका में ये प्रतिशत 63.7 से बढ़कर 73.4, गढ़वा में 60.1 से बढ़कर 62.7 और साहिबगंज में 51.2 से बढ़कर 63.6 हो गया. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 24 में से 10 जिलों में एनीमिया के मामले बढ़े हैं. राज्य के आदिवासी बहुल कोल्हान और संताल परगना प्रमंडल में सबसे ज्यादा खराब स्थिति है. महिलाओं के एनीमिक होने का असर अन्य स्वास्थ्य सूचकांकों में भी दिखता है. प्रसव के दौरान मृत्यु, कुपोषण, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की स्थिति में गिरावट जैसे परिणाम साफ दिखते हैं.
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