Jharkhand News: जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियों में हलचल तेज हो गई है. चुनाव में अपना दबदबा कायम करने के लिए कई बदलाव के साथ जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं. ऐसा ही कुछ झारखंड प्रदेश भाजपा में भी देखने को मिला. दरअसल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश (Deepak Prakash) को पार्टी ने अध्यक्ष पद से हटाते हुए नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम का अनाउंसमेंट कर दिया है. भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) को इस बार प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई है. अब देखने वाली बात यह होगी कि बाबूलाल मरांडी इस पर कितना खरा उतर पाते हैं. 2024 का ये चुनाव इस बार बाबूलाल के लिए 'आग के दरया' की तरह है, क्योंकि इस बार उनके कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी दी गई है.


क्या आदिवासियों के नजदीक जा पाएगी भाजपा?


लंबे समय से भाजपा एक ऐसे अध्यक्ष की तलाश में थी जो आदिवासी के साथ झारखंड के लोगों के करीब हो. अगर राजनीतिक जानकारों की माने तो बाबूलाल को अध्यक्ष चुनने का कारण यह भी है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश में महज दो सीटों पर कब्जा कर पाई थी. अगर संताल परगना की बात करें तो वहां कोई भी आदिवासी नेता जीत दर्ज नहीं कर सका था, जिस वजह से बीजेपी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा था. आगामी चुनाव में भाजपा यह गलती दोहराना नहीं चाहती. बाबूलाल मरांडी संताल परगना से आते हैं और उनको वहां के आदिवासी भी अपना मानते हैं. कहीं न कहीं पार्टी बाबूलाल को आदिवासियों और भाजपा को जोड़ने की कड़ी मान रही है.


प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बाबूलाल का ही चेहरा क्यों?


बाबूलाल मरांडी के जीवन में राजनीतिक छवि शुरुआत से धूमिल नहीं हुई. उनके खिलाफ कभी भी भ्रष्टाचार या प्रशासनिक अक्षमता जैसे आरोप नहीं लगे. उन्होंने 2006 में बीजेपी पार्टी छोड़ दी थी, जिसके बाद वे किसी भी सरकार का हिस्सा नहीं बने. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बनने का ताज भी उनके सर ही है. आज भी बतौर मुख्यमंत्री उनके कार्यो की सरहाना की जाती है. आज बाबूलाल सिर्फ आदिवासियों के लिए ही नहीं, गैरआदिवासियों में भी काफी लोकप्रिय है. जिसका सबूत कोडरमा, रामगढ़ और राजधनवार जैसे गैर आरक्षित सीटों पर जीत बयां करती है. साथ ही झारखंड की वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार पर भ्रष्टाचार के जितने भी आरोप लगे हैं उसमें अधिकतर मामलों को बाबूलाल मरांडी ने ही उठाया था. फिर चाहे वह पूजा सिंघल से जुड़ा मामला हो, साहेबगंज का एक हजार करोड़ रुपये घोटाले का मामला हो या रांची के पूर्व डीसी छवि रंजन का ही मामला हो बाबूलाल ने खुले मंच से इनके खिलाफ आवाज उठाई वे हेमंत सरकार पर लगातार हमलावर रहे. जिस कारण खनन घोटाले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी पूछताछ की गई. जितना बाबूलाल खुलकर मीडिया के सामने आए और हमलावर रहे उतना पूर्व अध्यक्ष दीपक प्रकाश भी नहीं कर सके.


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