Birsa Munda Punyatithi: आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि आज, जानिए- कैसे 25 साल की कम उम्र में बन गए थे 'भगवान'
Birsa Munda: जब भारतीय जमींदारों और जागीरदारों और ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था. तब बिरसा मुंडा ने अत्याचारियों के खिलाफ संघर्ष कर मुंडाओं को उनके जंगल-जमीन वापस कराए.
Birsa Munda Punyatithi: प्रतिष्ठित आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को आज उनकी पुण्यतिथि पर याद किया जा रहा है. मुंडा जनजाति के एक निडर शख्सियत, बिरसा मुंडा ने बंगाल, बिहार और झारखंड की सीमा से लगे क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था. बता दें कि, बिरसा मुंडा एक युवा स्वतंत्रता सेनानी और एक आदिवासी नेता थे. उन्हें 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्त विद्रोह के लिए याद किया जाता है. 15 नवंबर, 1875 को जन्मे बिरसा मंडा ने अपना बचपन अपने माता-पिता के साथ एक गांव से दूसरे गांव में घूमने में बिताया. बिरसा मुंडा छोटानागपुर पठार क्षेत्र के मुंडा जनजाति से तालूक रखते थे.
दरअसल, जब भारतीय जमींदारों और जागीरदारों और ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था. तब मुंडा लोगों के गिरे हुए जीवन स्तर से खिन्न हमेशा ही उनके उत्थान और गरिमापूर्ण जीवन के लिए परेशान रहा करते थे. वहीं 1895 में बिरसा मुंडा ने घोषित कर दिया कि उन्हें भगवान ने धरती पर नेक कार्य करने के लिए भेजा है, ताकि वह अत्याचारियों के खिलाफ संघर्ष कर मुंडाओं को उनके जंगल-जमीन वापस कराए. साथ ही एक बार छोटा नागपुर के सभी परगनों पर मुंडा राज कायम करें.
1895 में जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ी
बिरसा मुंडा के इस आह्वान पर पूरे इलाके के आदिवासी उन्हें भगवान के रूप में देखने के लिए आने लगे. बिरसा मुंडा आदिवासी गांवों में घुम-घूम कर धार्मिक-राजनैतिक प्रवचन देते हुए मुंडाओं का राजनैतिक सैनिक संगठन खड़ा करने में सफल हुए. इसके बाद बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश नौकरशाही का जवाब देने के लिए एक आन्दोलन की नींव डाली. ऐसे में 1895 में बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की लागू की गई जमींदार प्रथा और राजस्व व्यवस्था के साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ दी. उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का ऐलान किया. बता दें कि, यह एक विद्रोह ही नहीं था बल्कि सम्मान और संस्कृति को बचाने की लड़ाई भी थी.
25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा की हुई थी मौत
कहते हैं कि, बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार इसलिए उठाया क्योंकि आदिवासियों का शोषण हो रहा था. एक तरफ अभाव व गरीबी थी तो दूसरी तरफ इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1882 जिसके कारण जंगल के दावेदार ही जंगल से बेदखल किए जा रहे थे. बिरसा मुंडा ने इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तौर पर विरोध शुरु किया और छापेमार लड़ाई की. कम उम्र में ही बिरसा मुंडा की अंग्रेजों के खिलाफ जंग छिड़ गई थी. लेकिन एक लंबी लड़ाई 1897 से 1900 के बीच लड़ी गई. इसके बाद 3 फरवरी 1900 के चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्चार कर लिया, जिसके बाद 9 जून 1900 को 25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा की रांची जेल में मौत हो गई.