Jharkhand Chutni Mahto Padma Shri Award: भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द (Ram Nath Kovind) ने झारखंड (Jharkhand) की सामाजिक कार्यकर्ता छुटनी महतो (Chutni Mahto) को पद्मश्री पुरस्कार (Padma Shri Award) से सम्मानित किया है. सरायकेला खरसावां जिले की रहने वाली छुटनी महतो को कभी डायन (Dayan) बताकर घर से निकाल दिया गया था. इस बुरे वक्त में उनके साथ कोई खड़ा नहीं हुआ था. छुटनी को डायन के नाम पर भयानक प्रताड़नाएं सहनी पड़ी लेकिन, ये वो हौसला था जो कभी नहीं टूटा. छुटनी ने हिम्मत नहीं हारी और डायन विरोधी अभियान की कार्यकर्ता बन गईं.


एक नजर डायन प्रथा पर 
इससे पहले किम हम आपको छुटनी महतो के बारे में बताएं, पद्मश्री पुरस्कार मिलने के बाद उन्होंने क्या कहा ये बताएं उससे पहले ये जान लीजिए कि आखिर ये डायन प्रथा है क्या. डायन प्रथा में ओझा बड़ी बड़ी भूमिका निभाते हैं. साक्षरता दर का कम होना इसकी सबसे बड़ी वजह है. पिछड़े इलाकों में जहां इलाज या स्वास्थ्य सेवाएं नहीं हैं तो ऐसी जगहों पर लोग इलाज के लिए ओझा के पास जाते हैं. अब जब ओझा इलाज करने में नाकाम होता है तो इसका ठीकरा किसी महिला पर फोड़ दिया जाता है और उसे डायन करार दे दिया जाता है. झारखंड में ये कुप्रथा गहरी जड़ें जमा चुकी थी. डायन प्रथा के जड़ें आर्थिक झगड़े, अंधविश्वास और दूसरे सामाजिक संघर्ष भी रहे हैं. छुटनी महतो को भी इस प्रथा का दंश झेलना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने समाज की दिशा को ही मोड़ने की ठान ली और फिर अब वो वक्त आया है जब लोग नई चेतना से जागृत हो रहे हैं.


सख्त कानून बनाना होगा
अब आपको बताते हैं कि पद्मश्री सम्मान मिलने पर छुटनी महतो ने क्या कहा. उन्होंने कहा कि वो इस कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ेंगी भारत सरकार ने उन्हें इस योग्य समझा, ये सौभाग्य की बात है. छुटनी ने कहा कि इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त कानून बनाना होगा और शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई करना होगा. छुटनी ने अपनी भाषा में कहा कि 'मेरे जैसा औरत को प्रधानमंत्री ने इतना बड़ा सम्मान के लिए चुन लिया, इससे पता चलता है कि ‘मुदी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) का नजर चुंटी (चींटी) पर भी रहता है.'


12 साल की उम्र में हुआ ब्याह 
छुटनी महतो झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया के बीरबांस गांव की निवासी हैं. 12 वर्ष की उम्र में उनका ब्याह गम्हरिया थाना के ही महताडीह गांव में धनंजय महतो से हुआ, उन्हें तीन बच्चे हुए. 2 सितंबर 1995 को उसके पड़ोसी भजोहरि की बेटी बीमार हो गई थी. लोगों को शक हुआ कि छुटनी ने ही कोई टोना-टोटका कर दिया है. इसके बाद गांव में पंचायत हुई, जिसमें छुटनी को डायन करार दिया गया. लोगों ने घर में घुसकर उनके साथ हैवानियत करने की कोशिश की. गांव में फिर पंचायत हुई तो उनपर 500 रुपये का जुर्माना लगाया गया. किसी तरह छुटनी ने जुर्माना भरा, लेकिन गांव वालों का गुस्सा कम नहीं हुआ. 


गांव से निकाल दिया गया
गांव के लोगों ने ओझा-गुणी को बुलाया, जिसने छुटनी को शौच पिलाने की कोशिश की. ग्रामीणों में अंधविश्वास था कि मानव मल पीने से डायन का असर समाप्त हो जाता है. छुटनी ने जब इसका विरोध किया तो उसके शरीर पर मल फेंक दिया गया. इसके बाद उन्हें बच्चों समेत गांव से निकाल दिया गया. इस दौरान छुटनी तब के विधायक चंपई सोरेन से भी मिलीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, जिसके बाद उन्होंने आदित्यपुर थाना में रिपोर्ट दर्ज करा दी. कुछ लोग गिरफ्तार हुए, लेकिन छूट गए.


आज भी जारी है छुटनी की लड़ाई 
छुटनी ससुराल छोड़कर मायके बीरबांस में रहने लगीं. मायके में भी लोग उन्हें देखते ही डायन कहते और घर का दरवाजा बंद लेते. छुटनी ने हिम्मत नहीं हारी और मायके में ही घर बनाकर रहने लगीं. यहीं रहकर छुटनी ने 1995 से डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई शुरू की, जिसमें अब तक 200 से अधिक महिलाओं को प्रताड़ना से बचाकर पुनर्वास कराने में सफल रही हैं. आज भी छुटनी इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं और बीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती हैं. 



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