Dumka grain distribution: सरकार ने गरीबों को भूख से बचाने के लिए अन्न योजना बनाई है. जिसके तहत गरीबों को हर महीने 35 किलो चावल अनाज के रूप में देना है. लेकिन झारखंड की उप राजधानी दुमका में अधिकारियों की लापरवाही के कारण इस योजना का लाभ गरीबों को नहीं मिल पा रहा है. सरकार के अधिकारी भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं.


पिछले दो महीने से अनाज का नहीं हो रहा वितरण


दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड में पिछले दो महीने से अनाज का वितरण नहीं किया गया है. ऐसा नहीं है कि अनाज गोदाम में नहीं है लेकिन अनाज गोदाम में शोभा बढ़ा रही है. जबकि भारत सरकार द्वारा विलुति के कगार पर पहुंचे आदिम जाति को लाभान्वित करने के लिए विशेष तौर पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पीटीजी डाकिया योजना (जिसे डाकिया योजना कहा जाता है) के तहत घर-घर जाकर 35 किलो चावल पहुंचाना है. इसकी शुरुआत तत्कालीन रघुवर सरकार ने झारखंड के इचाक प्रखंड के सिजुआ और तिलरा नावाडीह आदिम जनजाति गांव से की थी. लेकिन वर्तमान की हेमंत सरकार के कार्यकाल में पिछले दो माह जनवरी और फरवरी महीने के दौरान बाद भी इन आदिम जनजातियों को इसका लाभ नहीं मिला है. जबकि कोरोना के संक्रमण काल में लोग बुरी तरह प्रभावित हैं. उन्हें भूख से बचाने और इस जनजाति को राहत देने के लिए खाद्यान्न घर तक पहुंचाने के लिए विशेष तौर पर अधिनियम पारित किया है. बावजूद इसके खाद्यान्न रहते हुए भी लोगों को पिछले दो माह से भोजन उपलब्ध कराने के लिये चावल उनके घर तक नहीं पहुंचाया गया है.


कौन है पहाड़िया जनजाति


यह जनजाति पहाड़ों पर निवास करती है. ये जनजाति विलुप्ति के कगार पर खड़ी है. सरकार इस जाति को बचाने और उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग-अलग योजना लाती है. प्रत्येक वर्ष भारत सरकार राज्य सरकार के माध्यम से करोड़ों रूपये खर्च करती है. लेकिन पदाधिकारियों की लापरवाही के कारण इन जनजातियों को समुचित लाभ नहीं मिल पाता है. सरकार की बनाई गई योजना इन जनजातियों तक नहीं पहुंचने से ये लोग लाभ से वंचित हो जाते हैं.


गौरतलब है कि भारत सरकार और राज्य सरकार कोरोना के संक्रमण काल में पहाड़िया जनजाति को भूख से बचाने के लिए प्रत्येक माह में दो बार चावल का लाभ दिये जाने की योजना बनाई थी. जिसमें एक बार 35 किलोग्राम और दूसरी बार उस परिवार के प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम के हिसाब से चावल दिया जाना है. पूरे जिले में 8474 पहाड़िया परिवार पीटीजी योजना से जुड़े हैं. जबकि शिकारीपाड़ा प्रखंड में करीब 657 पहाड़िया परिवार को इस योजना से जोड़कर लाभान्वित किया जाना है.


क्या कहते हैं पहाड़िया लाभुक


एबीपी न्यूज़ ने ग्राउंड जीरो पर इसका हाल जानने के लिये जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड के दो गांव मुरलीपहाड़ी और कुशपहाड़ी पहाड़िया टोला गांव का दौरा किया. जहां पहाड़िया जनजाति के लोगों की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. बदहाली की स्थिति में ये जनजाति किसी तरह एक वक्त का भोजन जूता पा रहे हैं. हमने लाभुकों से सरकार द्वारा मिलने वाली योजनाओं के संबंध में जानकारी ली तो उन्होंने इस लाभ से खुद को वंचित बताया. उन्होंने कहा कि रोजगार तो दूर की बात है सरकार द्वारा मिलने वाली पिछले दो माह से अन्न योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा है. किसी तरह जंगल से पत्ता और सुखी लकड़ियों को हाट बाजारों में बेचकर जिंदगी का गुजारा करते हैं. यदि हाटों में सामानों की बिक्री हुई तो ठीक अन्यथा भूखे पेट सो जाना पड़ता है.


आरजेडी के जिला अध्यक्ष अमरेंद्र कुमार ने कहा कि राज्य की गठबंधन की सरकार असहाय, गरीब और वृद्ध लोगों को लाभान्वित करने के लिए खाद्यान्न योजना चला रही है. अगर पहाडिया जाति को इसका लाभ नहीं मिला तो यह गंभीर मामला है और इसकी जांच के लिए सरकार को कहेंगे ताकि जो दोषी होंगे उसपर सीधी कार्रवाई करे.


क्या कहते हैं पदाधिकारी


शिकारीपाड़ा के सीओ और एमओ के अनुसार सरकार के द्वारा पहाड़िया के लिए बनाई गई पीटीजी डाकिया योजना का लाभ इन गरीब और असहाय पहाड़िया जनजाति लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. एफसीआई से ही चावल का आवंटन कम उपलब्ध होने के कारण शिकारीपाड़ा में पिछले दो माह जनवरी और फरवरी महीने में इसका वितरण नहीं किया गया है. जिले के डीएसओ संजय कुमार दास के मुताबिक जिले के सभी पहाड़िया परिवार को इसका लाभ दिया जा रहा है. अगर शिकारीपाड़ा में ऐसा नहीं किया गया है तो यह गंभीर मामला है. ऐसे में लापरवाही बरतने वाले पदाधिकारी पर कार्रवाई करने की बात कही है.


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