Jharkhand: भगवान ने सपने में दिया दर्शन, अब 40 लाख रुपये खर्च कर प्रभु श्रीकृष्ण का मंदिर बनवा रहा यह मुस्लिम शख्स
हामिदपुर के रहने वाले नौशाद शेख के दिल में भगवान कृष्ण के प्रति आस्था उमड़ पड़ी है. वे 40 लाख रुपये खर्च कर प्रभु श्रीकृष्ण का मंदिर बनवा रहे हैं. जानें उनके मन में मंदिर बनाने का विचार कैसे आया?
Jharkhand: झारखण्ड के दुमका में एक मुस्लिम शख्स 40 लाख रुपये खर्च कर मंदिर बनवा रहा है. मंदिर में महाभारतकाल की तरह में एक दिव्य रथ में सवार पार्थ अर्जुन के सारथी कृष्ण और रक्षा करने वाले हनुमान की मूर्ति स्थापित की गई है. मंदिर का कार्य अंतिम चरण में है. 14 फरवरी को इसका भव्य उदघाटन होगा. बताया जाता है कि नौशाद बंगाल के मायापुर घूमने गये थे जहां स्वपन में भगवान कृष्ण ने कहा कि आप मुझे कहां ढूंढ रहे हो. मैं तो वहीं हूं. बस इस शख्स ने मायापुर से लौटकर रानेश्वर प्रखंड के महिषाबथान गांव में मंदिर बनाना शुरू कर दिया. करीब 40 लाख की लागत से बन रहे मंदिर का उद्घाटन 14 तारीख को वैलेंटाइन दिन पर होगा.
नौशाद शेख के दिल में भगवान कृष्ण के प्रति आस्था उमड़ पड़ी
दरअसल रानीश्वर प्रखंड के हामिदपुर के रहने वाले उपप्रमुख नौशाद शेख के दिल में भगवान कृष्ण के प्रति आस्था उमड़ पड़ी है और मायापुर से लौटने के पश्चात इलाके में पार्थ सारथी मंदिर बनवाना शुरू कर दिया, हालांकि कहा जाता है कि नौशाद से पहले इसी पार्थसारथी का पूजन को चार दशक पहले कादिर शेख, अबुल शेख व लियाकत शेख ने तब चालू कराया था, जब किन्ही कारणों से तीन सौ साल से भी अधिक पुरानी यहां की यह पूजा बंद हो गयी थी. नौशाद रानीश्वर के उप प्रमुख हैं. समान रूप से वे सभी धर्म में आस्था रखते हैं. उनके द्वारा 2019 में इस मंदिर का निर्माण तब प्रारंभ कराया गया था, जब वे घूमने के सिलसिले में मायापुर गये थे, वहां उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि प्रभु ही उनसे कह रहे है कि वे तो स्वयं उनके इलाके में विराजमान हैं. वह यहां क्यों आया, वहीं पहुंचे. ऐसे स्वप्न से नौशाद के दिल में कृष्ण प्रेम जगी और उन्हें लगा कि इस नेक कार्य को करना चाहिए क्योंकि लंबे समय से यह पूजा खुले आसमान के नीचे होती थी या पंडाल-तिरपाल लगाकर. ऐसे में उन्होंने ठाना कि वे स्वयं मंदिर बनवायेंगे. मंदिर बनाने से लेकर उसके समस्त अनुष्ठान का आयोजन भी वे करेंगे. 14 फरवरी को भव्य अनुष्ठान कर इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करायी जायेगी. 108 महिलायें पीले वस्त्र में कलश यात्रा निकालेंगी. 101 महिलाओं का जत्था ढाक बजायेगा. 11 गांव के 51 पुरोहित ब्राह्मण इस अनुष्ठान को पूरे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संपन्न करायेंगे. नौशाद की परिकल्पना है कि मंदिर परिसर में ही लोग हवन आदि अनुष्ठान कर सकें. कीर्तन शेड बन रहा है. भोग-प्रसाद तैयार करने के लिए रसोईघर बन रही और मंदिर में नियमित पूजा कराने वाले पुरोहित के लिए छोटा सा कमरा भी तैयार हो रहा है.
सभी धर्म के प्रति आस्था रखते हैं नौशाद
नौशाद कहते हैं कि इस्लाम धर्म कहता है कि दीन-दुखियों की सेवा करो. हर धर्म की इज्जत करो. दूसरे धर्म में भी ऐसी ही बातें कही गयी है. नौशाद के ही तरह यहां के कई लोग सर्वधर्म समभाव को मानते हैं और श्रीकृष्ण के उपासक हैं. वे मानते है कि ईश्वर एक हैं. रूप अलग-अलग हैं. जो हमें नेक राह दिखाते हैं. इनका मानना है कि पार्थ सारथी रूपी श्रीकृष्ण को हम जितना शीघ्र अपना सारथी बना लें, उतनी ही जल्दी हम उनके आज के पार्थ बन सकेंगे. आज उन्हें अनन्त पार्थों की आवश्यकता है क्योंकि कौरव अनन्त अनन्त हो गए हैं. भगवत गीता के संदेश हमें मानवता और धर्म की वास्तविकता से परिचय कराते हैं.
हेतमपुर इस्टेट के महाराज ने शुरू करायी थी यह पूजा
जानकार बताते हैं कि लगभग 300 साल पहले हेतमपुर इस्टेट के पूति महाराज ने यहां पार्थ सारथी पूजा शुरू करायी थी. उस समय रानीश्वर के इस स्थल महिषबथान में हेतमपुर स्टेट की कचहरी हुआ करती थी. तब यह जंगल महल नाम से जाना जाता था. वीरभूम जिला के मुख्यालय सिउड़ी के बड़ा बागान में भी तब पार्थ सारथी मेला हुआ करती थी. लेकिन हेतमपुर स्टेट के राजा ने उस मेला के समांतर यहां पार्थ सारथी मेला शुरू करायी थी. जमींनदारी उन्मूलन के पश्चात यहां मेला बंद हो गया था. जिसे कादिर शेख सरीखे लोगों ने चालू कराया. उनके निधन के बाद 1990 से नौशाद खुद इस परंपरा को बरकरार रखने में अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं.
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