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Exclusive: झारखंड को आदिवासी मुख्यमंत्री ही क्यों चाहिए? जानिए क्या है इसके पीछे की Inside Story

Jharkhand Politics: झारखंड निर्माण के बाद से ही झारखंडियों ने अदिवासियों के विकास का सपना देखा था जिसके तहत 2000 से अब तक आदिवासी चेहरा ही सीएम पद का दावेदार बना.

Jharkhand News: 15 नवंबर 2000 को लंबे संघर्ष और इंतजार के बाद बिहार (Bihar) से अलग होकर झारखंड राज्य का निर्माण हुआ था. आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर झारखंड भारत का 28वां राज्य बना था. झारखंड में कुल 32 जनजातियां पाई जाती हैं जिनकी जनसंख्या लगभग 86,45,042 है. देखा जाय तो झारखंड निर्माण के बाद से ही झारखंडियों ने अदिवासियों के विकास का सपना देखा था, जिसके तहत झारखंड राज्य बनने के बाद झारखंड को एक आदिवासी मुख्यमंत्री के तौर पर बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) मुख्यमंत्री के रूप में मिले.

यहां के निवासियों का मानना था कि आदिवासी मुख्यमंत्री ही यहां के गरीब और पिछड़े लोगों का दर्द समझ सकता है. इसके बाद से विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने लोगों को आदिवासी चेहरा देना शुरू कर दिया. दरअसल, झारखंड में आदिवासियों की कुल संख्या 3.3 करोड़ है और यह राज्य की जनसंख्या का लगभग एक चौथाई है. 2000 में अलग राज्य बनने के बाद से यहां बनी 9 सरकारों में सभी 5 सीएम बाबूलाल मरंडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा और हेमंत सोरेन आदिवासी समुदाय से रहे हैं. बता दें कि, बाबूलाल मरांडी ने 15 नवंबर  2000 से 18 मार्च 2003 तक कार्यकाल संभाला.

अर्जुन मुंडा कब बने सीएम?

इनके बाद बीजेपी ने अर्जुन मुंडा को आदिवासी का चेहरा बताया, जिसके बाद लोगों ने अपना प्यार और आशिर्वाद अर्जुन मुंडा को देकर 18 मार्च 2003 को मुख्यमंत्री बना दिया. मगर अर्जुन मुंडा को तीन साल से अधिक समय पद पर नहीं रहने दिया गया. 2 मार्च 2005 तक वे मुख्यमंत्री बने रहे जिसके बाद झारखंड के गुरुजी माने जाने वाले शिबू सोरेन जोकि तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पिता है. उन्होंने 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली मगर उनका भी कार्यकाल ज्यादा दिन नहीं चल पाया और 12 मार्च 2005 तक ही वे मुख्यमंत्री बने रहे. जिसके बाद अर्जुन मुंडा फिर एक बार सामने आए और 12 मार्च 2005 से 18 सितंबर 2006 तक कार्यकाल संभाला.

झारखंड में क्यों लागू हुआ राष्ट्रपति शासन?

इसके बाद निर्दलीय मुख्यमंत्री के तौर पर एक आदिवासी चेहरा सामने आया वह चेहरा था मधु कोड़ा का, जिन्होंने  18 सितंबर 2006 से 28 अगस्त 2008 तक शासन किया. इसके बाद आदिवासियों के मसीहा माने जाने वाले शिबू सोरेन को एक बार फिर मौका मिला. 28 अगस्त 2008 से 18 जनवरी 2009 तक झारखंड के मुख्यमंत्री पद पर रहे. इसी दौरान झारखंड की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए झारखंड में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया जो कि 19 जनवरी 2009 से 29 दिसंबर 2009 तक झारखंड में लागू रहा. इसके बाद फिर से एक बार शिबू सोरेन मुख्यमंत्री पद के लिए चुने गए, जिसके बाद 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक वो मुख्यमंत्री के तौर पर रहे. इसके बाद झारखंड का राजनीतिक पारा एक बार फिर से गड़बड़ होने लगा जिसके बाद झारखंड में फिर राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. जो 18 जनवरी 2013 से 13 जुलाई 2013 तक चला.

रघुवर दास को करना पड़ा हार का सामना

इसके बाद झारखंड में एक नए आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शपथ ली. जोकि 13 जुलाई 2013 से दिसंबर 2014 तक मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रहे. इसके बाद झारखंड में बीजेपी ने राजनीतिक उलटफेर करते हुए गैर आदिवासी चेहरे को मौका दिया, जिसके बाद रघुवर दास झारखंड के मुख्यमंत्री बने. रघुवर दास का कार्यकाल झारखंड में 5 सालों का रहा. वे 28 दिसंबर 2014 से 28 दिसंबर 2019 तक झारखंड के मुख्यमंत्री के पद पर रहे, मगर इस बार बीजेपी का यह उलटफेर जनता को पसंद नहीं आया और चुनाव में रघुवर दास को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए उन्होंने 29 दिसंबर 2019 को शपथ ली और आज भी सत्ता में है.

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