New Year 2025: झारखंड की सियासत में 2024 बेहद उथल-पुथल भरा साल रहा. साल के पहले ही महीने में सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के साथ राज्य की सियासत में हंगामा खड़ा हो गया. इसके बाद पूरे साल घटनाक्रम नाटकीय तरीके से बड़ी तेजी के साथ बदलते रहे. यह झारखंड के इतिहास में पहला साल रहा, जब सीएम पद के लिए तीन बार शपथ ग्रहण समारोह आयोजित हुआ. 


 झारखंड में साल 2024 दलबदल, इस्तीफा और बगावत से जुड़ी घटनाओं ने सियासत में खूब सनसनी मचाई, तो सियासी मंच पर कई नए चेहरों का अवतार भी हुआ. चुनावी साल होने के कारण नेताओं के बीच तल्ख जुबानी जंग भी खूब हुई. 


चुनाव होने तक जारी रहा सियासी उलटफेर 


साल 2024 की पहली जनवरी को जब लोग नए साल के जश्न में डूबे थे, तब गांडेय सीट के झामुमो विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे की खबर आई. उनके इस्तीफे के साथ ही झारखंड के सत्ता शीर्ष में बड़ी तब्दीली की चर्चा ने जोर पकड़ा. दरअसल, सीएम हेमंत सोरेन को आशंका हो गई थी कि जमीन घोटाले में ईडी उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. 


ऐसी सूरत में उन्होंने खुद की जगह पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम की कुर्सी सौंपने का प्लान बनाया. इसी प्लान के तहत सरफराज अहमद ने विधानसभा की सीट खाली की. ताकि उनकी सीट से कल्पना सोरेन को विधायक और फिर सीएम बनाया जा सके. भाभी सीता सोरेन के विरोध की वजह से हेमंत यह प्लान पूरी तरह अंजाम तक नहीं पहुंचा पाए. 


हालांकि, सरफराज अहमद की खाली की गई गांडेय सीट से उपचुनाव लड़कर कल्पना सोरेन पहली बार विधायक बनीं और इसके बाद वह सत्ता के गलियारे में छा गईं. 


31 जनवरी की रात ईडी ने जमीन घोटाले में लंबी पूछताछ के बाद सीएम हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने देर रात ईडी की हिरासत में राजभवन जाकर सीएम पद से इस्तीफा दिया. हेमंत सोरेन पांच महीने तक जेल में रहे, लेकिन इस घटनाक्रम ने उन्हें सियासी तौर पर और मजबूती दी. 


नैरेटिव यह बना कि केंद्र की बीजेपी सरकार के इशारे पर उन्हें जेल भेजा गया. हेमंत सोरेन की छवि केंद्र के आगे न झुकने और संघर्ष करने वाले वाले लीडर की बनी. लोकसभा चुनाव के दौरान वह जेल में बंद रहे. चुनाव के दौरान झामुमो की अगुवाई वाला गठबंधन यह नैरेटिव सेट करने में कामयाब रहा कि आदिवासी होने के कारण हेमंत सोरेन के साथ अत्याचार हुआ है. 


नतीजा यह रहा कि राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. झारखंड हाईकोर्ट ने 28 जून को हेमंत सोरेन को जमानत दी और इसके बाद 5 जुलाई को उन्होंने फिर से सीएम की कुर्सी संभाल ली. 


दरअसल, हेमंत सोरेन ने जेल जाते वक्त झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन को अपना उत्तराधिकारी नॉमिनेट किया था. चंपई सोरेन खुद को ‘हेमंत सोरेन पार्ट-टू’ बताते हुए पांच महीने तक सीएम की कुर्सी पर बने रहे. उन्हें उम्मीद थी कि हेमंत सोरेन के जेल से लौटने के बाद भी वह विधानसभा चुनाव तक इस पद पर बने रहेंगे, लेकिन हेमंत सोरेन के कहने पर उन्हें यह कुर्सी खाली करनी पड़ी. चंपई सोरेन इससे आहत हुए. उन्होंने अपनी तकलीफ सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं की. 


वह हेमंत सोरेन के कैबिनेट में मंत्री के तौर पर शामिल भी हुए, लेकिन डेढ़ महीने बाद उन्होंने ‘अपमान’ का घूंट उगल दिया. झामुमो के साथ चार दशक के अपने सियासी करियर को विराम देते हुए 30 अगस्त को बीजेपी में शामिल हो गए. 


लोकसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर हार के बाद सकते में आई बीजपेी ने चंपई सोरेन को विधानसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन के खिलाफ तुरूप के पत्ते की तरह आजमाने का प्रयास किया, लेकिन इसमें पार्टी को सफलता नहीं मिली. चंपई खुद की सीट जीतने में जरूर कामयाब रहे, लेकिन बीजेपी और उसके गठबंधन को एसटी आरक्षित बाकी सभी 27 विधानसभा सीटों पर मुंह की खानी पड़ी. 


नवंबर महीने में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले बीजेपी ने संगठनात्मक तौर पर एक जोखिम भरा प्रयोग किया. पार्टी ने केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा को क्रमशः प्रभारी और सह प्रभारी बनाकर उन्हें झारखंड में चुनावी अभियान की कमान सौंप दी. हिमंता बिस्वा सरमा बीजेपी की ओर से चुनावी युद्ध में सबसे बड़े सेनापति के रूप में दिखे और पार्टी के राज्य स्तरीय नेता चुनावी अभियान के दौरान बैकड्रॉप में चले गए. प्रचार के दौरान हिमंता बिस्वा सरमा ने जो आक्रामक तेवर अपनाया, उससे यह लगता रहा कि वे सियासी गेम पलटकर रख देंगे, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा. 


हिमंता बिस्वा सरमा के इस रुख से यह हुआ कि पार्टी 2019 के चुनाव परिणाम से भी पीछे रह गई. बीजेपी ने राज्य के संथाल परगना इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया, लेकिन यह नैरेटिव चल नहीं पाया. 


दूसरी तरफ हेमंत सोरेन के फिर से सीएम की कुर्सी संभालने के बाद उनकी पत्नी और उपचुनाव में जीतकर विधायक बनीं कल्पना सोरेन सत्तारूढ गठबंधन के दूसरे सबसे प्रमुख चेहरे के तौर पर उभरीं. चुनाव प्रचार के दौरान उनके ‘स्टारडम’ का जादू चल गया. बेहतरीन अंदाज में भाषण करने और पब्लिक से सीधे कनेक्ट करने में उन्होंने अपना लोहा मनवाया.


गेम चेंजर साबित हुआ मंईयां सम्मान योजना


हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव के ठीक पहले 'मंईयां सम्मान योजना' लागू कर अपना 'गेम चेंजर प्लान' जमीन पर सफलतापूर्वक उतार दिया. 55 लाख से अधिक महिलाओं के बैंक खाते में सीधे राशि भेजने की यह योजना अचूक सियासी नुस्खा साबित हुई. हेमंत की अगुवाई वाले गठबंधन ने 81 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीटें हासिल कर राज्य में सबसे बड़े बहुमत का इतिहास रच दिया. 


JKLM का तीसरी ताकतबर पार्टी के रूप में उदय 


इस साल हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) नामक पार्टी का राज्य में तीसरी सियासी ताकत के तौर पर उदय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम रहा. जेएमएम पार्टी के प्रमुख फायर ब्रांड लीडर जयराम महतो ने डुमरी सीट से जीत दर्ज की. पार्टी के हिस्से भले एकमात्र यही सीट आई, लेकिन उसके उम्मीदवारों ने कम से कम 20 सीटों पर वोटों में बड़ी हिस्सेदारी हासिल की. माना गया कि जेएलकेएम के उम्मीदवारों ने एनडीए के वोट शेयर में खासी सेंधमारी की और यह उसकी हार का एक प्रमुख फैक्टर बना.


हेमंत सोरेन की भाभी झामुमो विधायक सीता सोरेन, इसी पार्टी के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम, कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा एवं उनके पति मधु कोड़ा का बीजेपी में शामिल होना, बीजेपी नेत्री लुईस मरांडी का झामुमो में जाना, बीजेपी विधायक जयप्रकाश पटेल का कांग्रेस में शामिल होना सहित कई नेताओं के दल-बदल की घटनाएं भी सियासी सुर्खियों का हिस्सा बनीं. 


बीजेपी की कमान संभालेंगे रघुवर दास!


साल 2024 के आखिरी हफ्ते में ओडिशा के राज्यपाल के पद से रघुवर दास का इस्तीफा झारखंड के सियासी हलके में एक बार फिर चर्चा का विषय बना है. झारखंड के सीएम रहे रघुवर दास फिर से सक्रिय राजनीति में लौट रहे हैं. वह 27 दिसंबर को पार्टी की सदस्यता लेंगे. माना जा रहा है कि वह राज्य में पार्टी की कमान संभालेंगे.


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