Jharkhand Congress Satyagrah Politics: झारखंड (Jharkhand) की सरकार में साझीदार कांग्रेस (Congress) के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है. राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) में कांग्रेस के कम से कम 9 विधायकों ने पार्टी लाइन को अलग क्रॉस वोटिंग की थी, यो सच पहले ही सामने आ चुका है. अब पार्टी के कार्यक्रमों से कई विधायकों ने किनारा कर लिया है जिसके चलते तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. राज्य की सरकार और इसमें शामिल अपनी ही पार्टी के मंत्रियों से कांग्रेस के कई विधायकों की नाराजगी भी मौके-बेमौके सामने आ रही है. ऐसे में आगामी 29 जुलाई से शुरू होने वाले झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस विधायकों के स्टैंड और एक्टिविटीज पर सबकी निगाह रहेगी.
सत्याग्रह में शामिल हुए 11 विधायक
कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय प्रमुख सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में मंगलवार को पार्टी की प्रदेश इकाई ने रांची में सत्याग्रह का आह्वान किया था. रांची के मोरहाबादी मैदान में गांधी प्रतिमा के सामने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर की अगुवाई में हुए सत्याग्रह में पार्टी के 18 विधायकों में से 11 गैरमौजूद रहे. इसपर सत्याग्रह में मौजूद कई कांग्रेसियों ने हैरानी जाहिर की.
नहीं पहुंचे विधायक
हालांकि, प्रदेश कांग्रेस का कहना है कि कुछ विधायकों ने क्षेत्र में अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम और व्यस्तता की सूचना दी थी, मंत्री रामेश्वर उरांव उस दिन दिल्ली में थे. महगामा की विधायक दीपिका पांडेय सिंह भी बीते कई दिनों से दिल्ली में हैं. रांची में आयोजित सत्याग्रह में झारखंड सरकार में शामिल कांग्रेस के 4 मंत्रियों में से बादल पत्रलेख और बन्ना गुप्ता ने मौजूदगी दर्ज कराई. विधायकों में नमन विक्सल कोनगाड़ी, उमा शंकर अकेला, राकेश कच्छप, ममता देवी और शिल्पी नेहा तिर्की भी सत्याग्रह में मौजूद रहे, लेकिन बाकी विधायकों के नहीं पहुंचने से पार्टी के अंदर-बाहर सवाल खड़े हो रहे हैं.
टूट सकती है कांग्रेस?
झारखंड उन गिने-चुने राज्यों में है, जहां कांग्रेस सत्ता में शामिल है. ऐसे में यहां की प्रदेश इकाई से ये अपेक्षा रहती है कि वो राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से तय किए गए कार्यक्रमों में ज्यादा 'ताकत' दिखाएगी, लेकिन मंगलवार को ऐसा नहीं दिखा. इसके पहले राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा जब रांची में कांग्रेस विधायकों-सांसदों के साथ बैठक करने पहुंचे थे, तब भी मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव सहित 3 विधायक व्यक्तिगत व्यस्तता का हवाला देकर नहीं पहुंचे थे. इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव में कम से कम 9 कांग्रेस विधायकों ने पार्टी की गाइडलाइन को दरकिनार कर एनडीए प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट डाला था. कांग्रेस नेतृत्व समझ नहीं पा रहा है कि ऐसे विधायकों को कैसे चिन्हित किया जाए? कांग्रेस की आंतरिक स्थिति से वाकिफ लोग जानते हैं कि अगर इसे आधार बनाकर पार्टी ने अपने विधायकों पर कार्रवाई की तो पार्टी में टूट हो सकती है.
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विधायकों में इरफान अंसारी, दीपिका पांडेय सिंह, पूर्णिमा नीरज सिंह, उमाशंकर अकेला और मंत्री बन्ना गुप्ता तक कई बार अलग-अलग मुद्दों पर अपनी ही सरकार के स्टैंड पर नाराजगी जता चुके हैं. दो-तीन दफा विधायकों ने नई दिल्ली में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलकर अपनी नाराजगी भी रखी है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से कोई प्रभावी कार्रवाई ना होने से उनमें नाराजगी है. कांग्रेस के कई विधायक निजी बातचीत में कहते हैं कि हमारी सरकार में ही हमारी भरपूर अनदेखी हो रही है. पार्टी फोरम पर बातें रखने के बावजूद कोई हल नहीं निकल रहा. ऐसे में ज्यादातर विधायकों में मायूसी है.
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