Jharkhand Naxalite Area Watermelon Production: नक्सली हिंसा (Naxalite Violence) के चलते जिस इलाके की जमीन कभी खून से लाल हो जाती थी, अब उस जमीन पर उपज रहे तरबूज (Watermelon) की लाली ने सैकड़ों किसानों (Farmers) की जिंदगी में खुशहाली बिखेर दी है. ये कहानी झारखंड (Jharkhand) के हजारीबाग (Hazaribagh) जिला अंतर्गत चुरचू और डाड़ी ब्लॉक की है. यहां सैकड़ों एकड़ में तरबूज की बंपर खेती हो रही है. पूरे सीजन में एक-एक किसान लाख-दो लाख से लेकर 18-20 लाख रुपये तक तरबूज की फसल घर बैठे बेच देता है. झारखंड के शहरों से लेकर देश के कई महानगरों के थोक कारोबारी और आढ़तिये यहां के किसानों के खेतों से फसल उठा रहे हैं. पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मुर्शिदाबाद-कोलकाता की मंडियों से यही तरबूज बांग्लादेश (Bangladesh) तक जा रहा है. 


ऑनलाइन डील में आसानी होती है
दरअसल, कृषि मंत्रालय के पोर्टल ई-नाम ने किसानों को ये सहूलियत उपलब्ध कराई है कि वो खेतों में तैयार फसल ऑनलाइन देश भर की मंडियों में बेच सकते हैं. चुरचू-डाड़ी और आस-पास के ब्लॉक में पिछले पांच-छह वर्षों में किसानों के डेढ़ दर्जन से भी ज्यादा एफपीओ (फार्मर्स प्रोड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन) बन गए हैं. प्रत्येक एफपीओ से पांच सौ से लेकर दो-ढाई हजार किसान जुड़े हुए हैं. एफपीओ के जरिए ई-नाम पोर्टल पर ऑनलाइन डील में आसानी होती है.


महिला किसानों का है अहम किरदार
खास बात ये है कि तरबूज की खेती और उसके कारोबार में महिला किसानों का किरदार बेहद अहम है. चूरचू नारी ऊर्जा फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी की चर्चा तो देश के स्तर पर है. बीते साल 17 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित लाइवलीहुड समिट में चुरचू नारी ऊर्जा र्को लघु श्रेणी केएफपीओ में बेस्ट एफपीओ ऑफ द ईयर आंका गया और एफपीओ इंपैक्ट अवार्ड 2021 से सम्मानित किया गया था. इस कंपनी में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से लेकर सदस्य और किसान सभी महिलाएं हैं. चेयरमैन सुमित्रा देवी और निदेशक लालमुनी मरांडी हैं. इस एफपीओ ने भी पिछले साल 92 लाख रुपये से ज्यादा की फसलों का कारोबार ई-नाम के जरिए किया. तरबूज के साथ-साथ अन्य फसलें भी ऑनलाइन बेची गईं.




युवाओं को भी प्रेरित कर रही है किसानों की कामयाबी
किसानों की कामयाबी इलाके के उन पढ़े-लिखे युवाओं को भी प्रेरित कर रही है, जो बाहर के शहरों में कॉरपोरेट और बड़ी कंपनियों में नौकरी करते हैं. चुरचू के रबोध गांव निवासी विनोद महतो पुणे में एक बड़े बैंक में 15 साल से अफसर थे. पत्नी राधिका कुमारी भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में कॉरपोरेट इंजीनियर थीं. कोविड की अनिश्चितताओं के बीच करीब 2 साल पहले दोनों गांव लौटे तो तय किया कि नई तकनीक के साथ खेती में हाथ आजमाया जाए. पिछले साल 10 एकड़ से ज्यादा जमीन पर तरबूज की खेती की और लगभग 10 लाख रुपये का कारोबार किया. हजारीबाग के वरिष्ठ पत्रकार प्रसन्न मिश्र बताते हैं कि तरबूज की वैज्ञानिक तरीके से खेती के जरिए पूरे जिले में 5 हजार से भी ज्यादा किसानों के जीवन में खुशहाली की दस्तक आई है.


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