Jharkhand: झारखंड में तस्करी रोकने लिए सड़क पर BJP सांसद, बांग्लादेश जा रहे 150 से ज्यादा पशुओं को कराया मुक्त
झारखंड में प्रतिबंध के बावजूद पशु तस्करों ने तस्करी का रास्ता निकाल लिया है. तस्कर पशु हाटों से खरीदे गये पशुओं को बाजार समिति का रसीद कटाकर लीगल बना लेते हैं.
Jharkhand News: झारखंड में पशु तस्करी को रोकने के लिये गोड्डा से बीजेपी (BJP) सांसद को सड़क पर उतरना पड़ा. सरैयाहाट थाना इलाके में बांग्लादेश भेजे जा रहे करीब 150 से अधिक गौ पशुओं को मुक्त कराकर सांसद ने दो तस्करों को पुलिस के हवाले कर दिया. सांसद निशिकांत दुबे (Nishikant Dubey) की कार्रवाई से पशु तस्करों में हड़कंप मचा हुआ है. बता दें कि गौ तस्करी के लिये दुमका जिला एक कॉरिडोर के रूप में देखा जाता है. दुमका के रास्ते पश्चिम बंगाल से पशुओं को बांग्लादेश भेजा जाता है. झारखंड में गौ तस्करी प्रतिबंधित है.
झारखंड से खरीदारी के बाद इस तरह होती पशु तस्करी
पशु हाट से गौ को खरीदकर ट्रकों से पश्चिम बंगाल के रास्ते बांग्लादेश भेजा जाता है. संताल परगना के ग्रामीण क्षेत्रों में हाट के साथ एक पशु हाट भी लगता है. तस्कर पशुओं की खरीददारी के लिये स्थानीय लोगों से संपर्क साधते हैं. खरीदारी के बाद पशुओं को पैदल हांक कर या ट्रकों, ट्रालियों, बसों, कॉन्टेनर के जरिये झारखंड सीमा पार कराया जाता है. पश्चिम बंगाल पहुंचने पर पशुओं को बांग्लादेश भेज दिया जाता है. पशु तस्करी के लिए तस्करों का एक गिरोह काम करता है. गिरोह रास्तों में पड़ने वाले थानों को मैनेज करता है.
सफेदपोश का हाथ होने के कारण तस्करों को नहीं भय
तस्करी में सफेदपोश का हाथ होने के कारण तस्करों को किसी का भय नहीं रहता है. झारखंड में प्रतिबंध के बावजूद पशु तस्करों ने तस्करी का रास्ता निकाल लिया है. तस्कर पशु हाटों से खरीदे गये पशुओं को बाजार समिति का रसीद कटाकर लीगल बना लेते हैं. पशुओं को स्थानीय मजदूर पैदल हांक कर या ट्रकों से दुमका के रास्ते पश्चिम बंगाल प्रवेश कराते हैं और फिर आसानी से बांग्लादेश भेज दिया जाता है. संताल परगना में पशुओं की हो रही तस्करी को देखकर भी पशु चिकित्सा विभाग मौन साधे हुये है. तस्करी में बड़े सफेदपोश नेताओं के साथ कई पदाधिकारियों की संलिप्तता का शक है.
पड़ोसी राज्य के तस्कर बड़ी आसानी से पशुओं की झारखंड से तस्करी कर लेते हैं. पशुओं की देखभाल और रक्षा के लिये झारखंड मे कई समिति बनाई गई है और संस्था भी कार्यरत हैं लेकिन भूमिका नहीं के बराबर है. हाटों से खरीद कर पशुओं को 60 किलोमीटर पैदल हांका जाता है. देखनेवाला कोई नहीं होता है. पशुओं में ज्यादा अनफिट पशु होते हैं. उनको बिना किसी प्रमाण पत्र के ले जाया जाता है. चलने फिरने में असमर्थ पशुओं की बड़ी बेदर्दी से पिटाई की जाती है. पशुओं को सीमा पार कराने की जल्दबाजी में खाना पीना भी नसीब नहीं हो पाता है. ऐसे में कई पशु बीच रास्ते दम तोड़ देते हैं.