Contract Workers Will Now Be Permanent in Jharkhand: देश में एक तरफ जहां सेना में जाने को इच्छुक युवकों ने नौकरी के स्थायीकरण को लेकर बड़ा आंदोलन किया तो वहीं दूसरी ओर झारखंड (Jharkhand) के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने एक बड़ा एलान कर सबको चौंका दिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि, ''अग्निपथ योजना के अंतर्गत अग्निवीरों के माध्यम से देश को जलाने की योजना तैयार की गई थी, मगर झारखंड में जितने भी संविदाकर्मी (Contract Workers) है उनके स्थायीकरण को लेकर सरकार चिंतित है.'' उन्होंने कहा कि, ''राज्य के अधिकारी जब चाहे संविदा कर्मियों की तबादला कर दिया करते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, सरकार ने सभी को नियमित करने के लिए नियम बनाने का निर्देश दिया है.'' फिलहाल, सीएम के इस एलान के बाद झारखंड में राज्य सरकार के अलग-अलग दफ्तरों में संविदा यानी कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मियों की मांगें जल्द पूरी होती दिख रही हैं.
मांगी गई प्रोफाइल
इस मामले में विकास आयुक्त केके खंडेलवाल ने अहम बैठकें भी शुरू कर दी हैं, जिसके अंतर्गत नियमित करने वाली कमेटी की ओर से तमाम सरकारी कार्यालयों में काम कर रहे संविदा कर्मी की पूरी प्रोफाइल तलब की गई है. विकास आयुक्त की अध्यक्षता में संविदा पर काम कर रहे लोगों को नियमित करने वाली कमेटी की बैठक भी हुई जिसमें संर्विदा में काम कर रहे लोगों की सूची तलब की गई है. विकास आयुक्त ने विभागों को अपने-अपने कार्यालयों में रिक्त पदों की सूची बनाने को भी कहा है.
लाखों में है संख्या
बता दें कि, झारखंड का सरकारी सिस्टम पूरी तरह से संविदा कर्मियों के हवाले है. राज्य गठन के बाद से जब-जब जिसकी भी सरकार आई उस दौरान जमकर संविदा पर लोगों को रखा गया. अब हालात ये हैं कि झारखंड सचिवालय से लेकर सरकार के प्रखंड कार्यालय तक बड़ी संख्या में संविदा कर्मी कार्यरत हैं. अगर आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो राज्य में ऐसे कर्मियों की संख्या लाखों में है.
सुप्रीम कोर्ट ने भी जारी था आदेश
सुप्रीम कोर्ट 10 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत अस्थाई कर्मियों की सेवा स्थाई करने का आदेश पहले ही दे चुका है. समय-समय पर इस संबंध में अलग-अलग फैसला भी आ चुका है, जिसका लाभ संविदा कर्मियों को मिल रहा है. मगर, अब झारखंड सरकार की तरफ से संविदा कर्मियों की स्थायीकरण की जो बाते सामने आ रही उससे कहीं ना कहीं इन कर्मियों ने राहत की सांस ली होगी.
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