Jharkhand CM Hemant Soren Mining Lease Allotment Case: झारखंड (Jharkhand) के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने अपने वकील की अनुपलब्धता का हवाला देते हुए खनन पट्टा आवंटन मामले (Mining Lease Allotment Case) में चुनाव आयोग (Election Commission) के समक्ष पेश होने के लिए और समय मांगा है. सोरेन को मंगलवार को या तो व्यक्तिगत रूप से या फिर अपने वकील के माध्यम से चुनाव आयोग के सामने पेश होना था. मुख्यमंत्री को पहले 31 मई को चुनाव आयोग के सामने पेश होने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने और समय मांगा था, जिसके बाद उनकी पेशी के लिए 14 जून की तारीख निर्धारित की गई थी.


सीएम ने मांगा अतिरिक्त समय
घटनाक्रम से वाकिफ सूत्रों ने बताया कि झारखंड के मुख्यमंत्री ने चिकित्सकीय कारणों से अपने वकील की अनुपलब्धता का हवाला देते हुए एक बार फिर चुनाव आयोग के समक्ष पेश होने के लिए अतिरिक्त समय मांगा है. मई में चुनाव आयोग ने सोरेन को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9ए को ध्यान में रखते हुए नोटिस जारी किया था, जो सरकारी अनुबंधों को लेकर किसी विधायक की अयोग्यता से संबंधित है.


क्या कहती है धारा
ये धारा कहती है कि, ''कोई भी व्यक्ति अयोग्य करार दिया जाएगा, यदि और जब तक कोई ऐसी संविदा विद्यमान है, जो उसने समुचित सरकार के साथ अपने व्यापार या कारोबार के अनुक्रम में उस सरकार को माल की आपूर्ति करने या उस सरकार द्वारा लिए गए किसी कार्य के निष्पादन के लिए की है.''


चुनाव आयोग के समक्ष पेश हुए थे हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन 
चुनाव आयोग ने प्रथम दृष्टया पाया था कि सोरेन ने धारा 9ए के प्रावधानों का उल्लंघन किया है. मुख्यमंत्री के जवाब पर नजर दौड़ाने के बाद आयोग ने सोरेन को उसके सामने पेश होने का निर्देश दिया था. हाल ही में हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन धारा 9ए के तहत नोटिस दिए जाने के बाद अपने वकील के माध्यम से चुनाव आयोग के समक्ष पेश हुए थे. बसंत सोरेन के वकील ने दावा किया था कि एक खनन कंपनी का सह-मालिक होने के कारण झारखंड मुक्ति मोर्चा (झमुमो) के विधायक को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर दायर याचिका सुनवाई के योग्य नहीं है. उन्होंने इस मामले की सुनवाई के चुनाव आयोग के अधिकार पर सवाल उठाए थे.


ये भी पढ़ें:


Jharkhand High Court में रांची हिंसा की NIA जांच की मांग वाली याचिका दायर, 2 लोगों की हुई थी मौत


Ranchi Violence: सीएम हेमंत सोरेन बोले रांची युद्ध का मैदान नहीं, संविधान और लोकतंत्र को बचाने की जरूरत है