लोहरदगा से लेकर पलामू तक…, 10 महीने में 3 की मौतें; झारखंड में बार-बार क्यों भड़क रही सांप्रदायिक हिंसा?
झारखंड में अप्रैल 2022 से अब तक 3 बड़ी सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी है. एनसीआरबी के मुताबिक साल 2021 में राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के 100 मामले सामने आए हैं.
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झारखंड के पलामू जिले के पांकी में महाशिवरात्रि के पोस्टर और तोरण द्वार को लेकर बुधवार को हिंसा भड़क गई. इलाके में तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए पुलिस ने धारा 144 लगा दी है और रविवार तक इंटरनेट बंद रखने का आदेश दिया है. पुलिस ने एक बयान में कहा है कि हालात काबू में है और महाशिवरात्रि के बाद ही इंटरनेट सेवा में ढील दी जाएगी.
पलामू के डीआईजी राजकुमार लाकड़ा ने पीटीआई को बताया कि 17 फरवरी को शुक्रवार की नमाज के दौरान स्थानीय मस्जिदों में भीड़ जुटती है. उसके अगले दिन महाशिवरात्रि है और कई इलाकों में भगवान शिव की बारात निकलती है. माहौल और अधिक न बिगड़े इसके लिए हमने पूरी तैयारी कर रखी है.
पलामू के पुलिस अधीक्षक चंदन सिन्हा ने पत्रकारों से बताया कि अब तक 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 100 लोगों पर नामजद और 1000 से अधिक अज्ञात लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई है. घटना के बाद जो भी वीडियो सामने आए हैं, उससे दोषियों को पहचान कर गिरफ्तारी की कार्रवाई की जा रही है.
पलामू में हिंसा की शुरुआत कैसे हुई?
पलामू के पांकी बाजार में एक मस्जिद के सामने महाशिवरात्रि को लेकर तोरण द्वार बनाया जा रहा था. स्थानीय लोगों ने इसका विरोध करते हुए 14 फरवरी को थाने में शिकायत दी. थाना प्रभारी ने तोरण द्वार बनाने के लिए जिला समिति से अनुमति लेने के लिए कहा. कुछ देर के लिए आयोजन समिति से जुड़े लोगों ने यहीं पर हंगामा किया.
15 फरवरी की सुबह एक बार फिर कुछ लोग तोरण द्वार बनाने आए, जिस पर दोनों गुटों में झड़प हो गई. झड़प होने के बाद पत्थरबाजी हुई और फिर यह आगजनी में बदल गया. हिंसा में एसडीपीओ समेत सुरक्षाबल के 5 जवान भी घायल हो गए.
विपक्षी पार्टी बीजेपी ने हिंसा के बाद सरकार पर हमला किया है. बीजेपी विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी ने कहा कि सरकार तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है, इसलिए हिंसा भड़की.
10 महीने में तीसरी बड़ी सांप्रदायिक हिंसा
झारखंड में पिछले 10 महीने में 3 बड़ी सांप्रदायिक हिंसा हुई है. इनमें अप्रैल 2022 में लोहरदगा, जून 2022 में रांची और अब पलामू की हिंसा शामिल हैं. सांप्रदायिक हिंसा की वजह से 3 लोगों की जान भी जा चुकी है.
लोहरदगा में हिंसा- अप्रैल 2022 में रामनवमी के जुलूस पर पथराव लेकर दो समुदायों के बीच हिंसा भड़क गई. इस हिंसा में एक लोगों की मौत हो गई, जबकि दर्जन भर से अधिक जख्मी हुए. हिंसा के बाद एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक जिले में धारा 144 लागू रही.
पुलिस ने इस मामले में 20 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. बाद में पुलिस की कार्रवाई पर सवाल भी उठा था और एक समुदाय ने प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था.
रांची में हिंसा- बीजेपी प्रवक्ता नुपूर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर दिए गए बयान के खिलाफ रांची में जून 2022 में हिंसा भड़क गई. हिंसा में 2 लोगों की मौत हो गई, जबकि दर्जनों लोग घायल हुए.
पुलिस ने इस मामले में कुल 18 केस दर्ज किए, जिसमें 22 नामजद सहित आठ-दस हजार अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया. रांची में हिंसा की वजह से 10 दिनों तक धारा 144 लागू रहा. 3 दिन तक इंटरनेट सेवा भी बाधित रहा.
सांप्रदायिक हिंसा मामले में झारखंड टॉप पर
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2021 में देशभर में हुए सांप्रदायिक हिंसा को लेकर एक रिपोर्ट जारी किया. रिपोर्ट में कहा गया कि झारखंड में सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए हैं.
NCRB के मुताबिक राज्य में एक साल में सांप्रदायिक हिंसा की 100 घटनाएं सामने आई. इसी दौरान महाराष्ट्र में 77 और राजस्थान में 22 घटनाएं घटीं. सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा की सिर्फ एक घटना सामने आई है.
रिपोर्ट में कहा गया कि झारखंड में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोप में 2000 ज्यादा लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया. सिर्फ 20 फीसदी आरोपी ही अभी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. राज्य में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ने के लिए जेएमएम बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा चुकी है.
कारोबार पर भी असर
सांप्रदायिक हिंसा की वजह से जहां जन-जीवन प्रभावित रहता है, वहीं दूसरी ओर कारोबार पर भी असर पड़ता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जून 2022 में रांची में 3 दिन के इंटरनेट बंद होने की वजह से करीब 500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ. पूरे झारखंड में एक साल में हिंसा की वजह से करीब 15 दिनों तक इंटरनेट बंद रह चुका है.
2020 में ग्लोबल इंटरनेट शटडाउन की रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट बैन की वजह से भारत को करीब 2300 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. इंटरनेट बैन का नुकसान ई-कॉर्मस कंपनियों को सबसे ज्यादा होता है.
आखिर बार-बार क्यों उबल रहा है झारखंड?
बिहार से टूटकर नवगठित झारखंड 23 साल में ही सांप्रदायिक हिंसा मामले में शीर्ष पर पहुंच चुका है. आइए जानते हैं, इसके पीछे वजह क्या है?
1. ध्रुवीकरण की राजनीति- 3 करोड़ 29 लाख की आबादी वाले झारखंड में करीब 15 फीसदी मुसलमान रहते हैं. राज्य के पाकुड़ और साहिबगंज जिले में मुसलमान कुल आबादी का करीब 30 फीसदी हैं. इसके अलावा देवघर, जामताड़ा, लोहरदगा और गिरिडीह जिलों में यह औसत 20 फीसदी है.
संख्या के हिसाब से देखें तो राज्य के 6 जिलों में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है. वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क कहते हैं- 2019 में जेएमएम और कांग्रेस की सरकार बनने के बाद पशु तस्करी पर पुलिसों को मिले निर्देश के बाद ही स्थितियां बिगड़ने लगी थी. इस आदेश में पुलिस वालों से कहा गया था कि पशु तस्करी करने वालों पर सख्ती न की जाए. झारखंड से पशुओं की तस्करी सीमा पार बांग्लादेश में होती है.
ओम प्रकाश अश्क कहते हैं, 'सरकार के इस आदेश के बाद दो समुदायों के बीच खाई और बढ़ गई, जिसका नतीजा हजारीबाग समेत कई जगहों पर देखने को मिला. हिंदू समुदाय को लगता है कि हेमंत सोरेन की सरकार आने के बाद उसकी आवाज को प्रशासन के जरिए दबा दिया जाता है'.
क्या ध्रुवीकरण की वजह से ही झारखंड में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ रही है? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार और द टेलीग्राफ के प्रमुख संवाददाता रहे विजय देव झा बताते हैं, '2014 के बाद झारखंड में ध्रुवीकरण तेजी से हुआ है और इसके लिए बीजेपी और जेएमएम दोनों जिम्मेदार है. वर्तमान सरकार आदिवासी और मुस्लिम फॉर्मूले के जरिए राजनीति करना चाहती है. ऐसे में लाजिम है कि एक विशेष समुदाय को छूट दिया जा रहा है'.
2. पुलिस का ढील ढाल रवैया- हिंसा रोकने की जिम्मेदारी पुलिस पर होती है, लेकिन झारखंड में कई मौकों पर शुरुआत में पुलिस इसे रोकने में विफल रही है. विजय देव झा कहते हैं कि झारखंड में पुलिस पूरी तरह से सांप्रदायिक हिंसा रोकने में नाकाम रही है. इसी वजह से सांप्रदायिक हिंसा मामले में झारखंड एनसीआरबी की रिपोर्ट में टॉप पर पहुंच गई है.
झा का कहना है कि पुलिस पुराने मामले से सीख न लेते हुए उसे दबाने में जुट जाती है. रांची हिंसा ताजा उदाहरण है, जहां गृह विभाग ने तुरंत ही जांच के लिए दो एजेंसी को जिम्मा दे दिया. इतना ही नहीं एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा का भी तबादला कर दिया, जो मामले के गवाह थे. बाद में हाईकोर्ट ने इस पर सवाल भी उठाया.
ओम प्रकाश अश्क इसे राजनीतिक दबाव बताते हैं. उनके मुताबिक पुलिस पर कार्रवाई नहीं करने का राजनीतिक दबाव होता है. ऐसे में पुलिस कैसे कार्रवाई कर सकती है?
3. इंटेलिजेंस का फेल्योर- झारखंड के संथाल परगना और रांची के आसपास के इलाके सांगठनिक अपराध और आतंकी मॉड्यूल की वजह से चर्चा में रहा है. 2013 में पटना में नरेंद्र मोदी की सभा में बम विस्फोट हुआ था. उसका लिंक रांची के ध्रुवा इलाके से निकला था. यह विस्फोट इंडियन मुजाहिद्दीन के हैंडलरों ने कराया था.
इस हिंसा में 6 लोगों की मौत हो गई थी. हिंसा में शामिल 4 आतंकियों को 2021 में निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी.
2019 में अलकायदा के इंडियन मॉडल का तार भी झारखंड के जमशेदपुर से निकला था. उस वक्त एटीएस ने खूंखार आतंकी मोहम्मद कलीमुद्दीन को गिरफ्तार किया था. कलीमुद्दीन 2016 से ही झारखंड में वेश बदलकर रह रहा था और अपने मिशन को आगे बढ़ा रहा था.
2022 में रांची हिंसा के चार्जशीट में पुलिस ने लिखा कि दंगा कराने की साजिश के तहत पत्थर जुटाकर लोगों को बुलाया गया था. इसके लिए साजिशकर्ताओं ने व्हाट्स ऐप पर अभियान भी चलाया था.
पत्रकार विजय देव झा कहते हैं- झारखंड में इंटेलिजेंस की चूक भी सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने का बड़ा कारण है. न तो समय पर इंटेलिजेंस इनपुट दे पाती है और ना ही पुलिस एक्शन ले पाती है.
साहेबगंज समेत कई जिलों में अब भी संगठन बनाकर अपराध को अंजाम दिया जाता है. अपराधी पर जब कार्रवाई नहीं होती है, तो उसका मनोबल बढ़ता है. कई बार दूसरे समूह से भी उलझ जाता है, जिस वजह से हिंसा भड़कती है.
सरकार ने हाल ही में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अजय सिंह को पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया है. अजय सिंह ने पदभार संभालने के बाद सांगठनिक अपराध को खत्म करने को पहली प्राथमिकता बताई है.
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