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Jharkhand में जारी है हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष, 8 महीने में 55 लोगों और 10 Elephants हुई की मौत

Ranchi News: झारखंड (Jharkhand) में बीते 8 महीनों में हाथियों के हमले में 55 लोगों ने जान गंवाई है. इतना ही नहीं अलग-अलग वजहों से 10 हाथियों की मौत (Death) हुई है.

Jharkhand Conflict Between Elephants And Humans: झारखंड (Jharkhand) में हाथियों (Elephants) और इंसानों के बीच संघर्ष का सिलसिला थम नहीं रहा. केवल इस साल के बीते 8 महीनों की बात करें तो हाथियों के हमले में जहां 55 लोगों ने जान गंवाई है, वहीं अलग-अलग वजहों से 10 हाथियों की मौत (Death) हुई है. हाल की घटनाएं बताती हैं कि इस संघर्ष के चलते कितना नुकसान हो रहा है. झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व (Palamau Tiger Reserve) के लाटू जंगल से बीते 21 सितंबर को वन विभाग (Forest Department) की टीम ने हाथी का कटा हुआ दांत बरामद किया था. फॉरेस्टर परमजीत तिवारी के मुताबिक टीम को देखते ही तस्कर हाथी दांत फेंककर भागने में सफल रहा था. इसी तरह रामगढ़ जिला अंतर्गत मांडू प्रखंड के डूमरडीह जंगल में बीते 15 सितंबर को एक हाथी मरा पाया गया था. वन विभाग के अफसरों तक जब ये खबर पहुंची, तब तक अपराधी हाथी के दोनों दांत काटकर ले गए थे. हालांकि, 3 दिन बाद वन विभाग ने जंगल से हाथी के दांत बरामद कर लिए, लेकिन इस मामले में किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई. 

लगातार सामने आई हैं घटनाएं 
अगस्त के पहले हफ्ते में पलामू टाइगर रिजर्व एरिया के फुलहर जंगल में एक हाथी मरा पाया गया. बीते 31 जुलाई को लातेहार जिले के बालूमाथ थाना क्षेत्र के रेची जंगल में एक हाथी की लाश मिली थी. कुछ लोग मृत हाथी का दांत काटकर ले गए थे. इसके पहले 17 जुलाई को खूंटी जिले के रनिया प्रखंड अंतर्गत बोंगतेल जंगल में एक हाथी मृत पाया गया. आशंका है कि कोई जहरीला पदार्थ खाने से उसकी मौत हुई. जुलाई महीने में रांची केइटकी के केवदबेड़ा जंगल में एक हाथी मरा पाया गया था. वन विभाग इन सभी घटनाओं की जांच कर रहा है. मौत के कारणों के बारे में अब तक कोई स्पष्ट रिपोर्ट नहीं आई है.

हादसों में गई हाथियों की जान 
मई के तीसरे हफ्ते में चक्रधरपुर रेलमंडल अंतर्गत बांसपानी-जुरुली रेलवे स्टेशन के बीच मालगाड़ी की चपेट में आकर 3 हाथियों की मौत हो गई थी. इनकी मौत से गमजदा डेढ़ दर्जन हाथी लगभग 12 घंटे तक ट्रैक पर जमे रहे थे. बताया गया था कि करीब 20 हाथियों का झुंड बांसपानी-जुरूली के बीच बेहेरा हटिंग के पास रेल लाइन पार कर रहा था, तभी तेज गति से आ रही एक मालगाड़ी ने इन्हें टक्कर मार दी थी. इसके पहले के पहले हफ्ते में गिरिडीह जिले में चिचाकी और गरिया बिहार स्टेशन के बीच ट्रेन की टक्कर में एक हाथी की मौत हो गई थी.

हाथी मचा रहे हैं उत्पात 
गुस्साए गजराज भी राज्य के 15 से ज्यादा जिलों में जमकर आतंक मचा रहे हैं. पिछले 2-3 वर्षों में हजारीबाग जिले में हाथियों ने सबसे ज्यादा उत्पात मचाया है. यहां इस साल अब तक हाथी 15 लोगों की जान ले चुके हैं. इसी तरह गिरिडीह में 9, लातेहार में 8, खूंटी में 6, चतरा, बोकारो और जामताड़ा में 3-3 लोग हाथियों के हमले में मारे गए हैं. हाल की घटनाओं की बात करें तो सितंबर के दूसरे हफ्ते में गुमला बड़ातुरिअम्बा गांव निवासी 30 वर्षीय बाइक सवार कृष्णा हजाम को अमलिया जंगल के पास हाथी ने कुचलकर मार डाला था. रामगढ़ जिले के गोला के सरला गांव में 9 सितंबर को किसान सावन महतो को 2 हाथियों ने कुचल डाला. 28 जुलाई को हजारीबाग जिले के सदर प्रखंड के मोरांगी नोवकी टांड़ निवासी जितेंद्र राम को हाथियों के झुंड ने कुचल कर मार डाला था. इसके एक दिन पहले 27 जुलाई को खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड के कमला पोढो टोली गांव में हरसिंह गुड़िया नाम के एक दिव्यांग को झुंड से बिछड़े एक जंगली हाथी ने कुचलकर मार डाला था. 22 जुलाई को इसी जिले के कर्रा में जंगली हाथियों को भगाने के लिए पहुंची वन विभाग की टीम पर ही हाथियों ने हमला बोल दिया, जिसमें एक वनरक्षी जसबीन सालगर आईंद की मौत हो गई थी. वन विभाग के दावे चाहे जो भी हों, लेकिन लगातार हो रहीं घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि विभाग के अफसरों की भूमिका हाथियों की मौत के बाद उनके शवों का पंचनामा करने और हाथियों के हमले में मारे गए इंसानों के लिए मुआवजे की फाइल तैयार करने तक सीमित रह गई है.

हाईकोर्ट भी जता चुका है नाराजगी 
झारखंड हाईकोर्ट ने इस साल मार्च महीने में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए वन विभाग की उदासीनता और लापरवाही पर सख्त टिप्पणियां की थीं. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की बेंच ने यहां तक कहा था कि जंगलों में वन्य प्राणियों की संख्या लगातार घटती गई, लेकिन इसके बदले वन विभाग में अफसरों की तादाद लगातार बढ़ती गई. कोर्ट ने पिछले साल अगस्त-सितंबर में लातेहार में 2 हाथियों की मौत पर स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था और वन विभाग के सचिव और राज्य के मुख्य वन संरक्षक को कोर्ट में हाजिर होकर जवाब देने को कहा था. अफसरों ने कोर्ट में जो जवाब दिया था, उसपर भी कोर्ट ने गहरा असंतोष जताया था.

मंत्री ने कही थी ये बात 
झारखंड विधानसभा के बीते बजट सत्र में वन विभाग के प्रभारी मंत्री चंपई सोरेन ने हाथियों के उत्पात से जुड़े एक सवाल के जवाब में बताया था कि वर्ष 2021-22 में हाथियों द्वारा राज्य में जानमाल को नुकसान पहुंचाए जाने से जुड़े मामलों में वन विभाग ने एक करोड़ 19 लाख रुपये के मुआवजे का भुगतान किया है. उन्होंने अपने जवाब में कहा था कि हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ने के कई कारण हैं. जनसंख्या बढ़ने के कारण वन्यजीव का प्रवास क्षेत्र प्रभावित हुआ है. गांवों में मादक पेय पदार्थ बनाए जाते हैं, जिसकी महक हाथियों को आकर्षित करती है. इस कारण भी हाथियों की आदतों और भ्रमण के मार्ग में बदलाव आया है.

ये भी जानें 
हाथियों के व्यवहार पर शोध करने वाले डॉ तनवीर बताते हैं कि जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सेटेलाइट सर्वे के आधार पर ये तथ्य स्थापित हुआ कि हाथी अपने पूर्वजों के मार्ग पर सैकड़ों साल बाद भी दोबारा अनुकूल वातावरण मिलने पर लौटते हैं. अगर मार्ग में आवासीय कॉलोनी या दूसरी मानवीय गतिविधियां मिलती हैं तो उनका झुंड उसे तहस-नहस करके ही आगे बढ़ता है. हाथियों के उग्र होने का मुख्य कारण अपने रास्ते के लिए उनका बेहद संवेदनशील होना भी है. जुलाई से सितंबर के दौरान हाथी प्रजनन करते हैं. इस समय हाथियों के हार्मोन में भी बदलाव आता है जिससे वो आक्रामक हो जाते हैं.

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